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मां और पिता हैं हमारे दाता
उनसे बड़ा न कोई भाग्य विधाता
बड़े भाग्य से आशीष मिल पाता 
और गर्व हमे महसूस कराता
जीवन भर हम सेवा करते
कभी न कर्म से पीछे हटते
कहलाए जैसे राम लखन दोऊ भ्राता
जननी जनक से ऐसा है नाता
सुबह सवेरे हमे उठाते
जीवन का नित कर्म कराते
और हमे पाठशाला पहुंचाते
फिर पहुंचते खुद की कार्यशाला
जननी जनक से है ऐसा नाता 
कैसे कैसे कष्ट उठाते
पर न हमें वो महसूस कराते
कभी जो गिर जाने पर मुझको
खुद की बाहों में झूले झूलाते 
कंधे पर बैठा कर मुझको
कितना बड़ा है लाल बताते
फिर गलती करने पर मुझको
दिखावे की वो डांट लगाते
ख़ुद की खुशियां भूल उन्होंने
मेरी खुशियों को अपनाया
मुझे खुश होता देख कर
उनका भी है मन हर्षाया 
गिरते जब हम कभी दौड़ में 
कहते वो मजबूत बनो
देश प्रेमी और समाज सेवा कर
एक नया इतिहास रचो
कर ऊंचा सर फिर तुम आना
अपनो का सदैव साथ निभाना
जीवन का तुम भार उठाना 
और यह पाठ नित याद कराना 
कुछ ही शब्दों में लिखकर रचना
पढ़ना इसे पर बहुत है समझना
क्या कहें उन्हें हम इससे ज्यादा 
मां पिता हैं मेरे जीवन की संरचना

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