हिन्दू - मुस्लिम एकता की मिसाल ।

भारत में हिन्दू और मुस्लिम दोनों एक साथ तो रहते हैं मगर एक नहीं रहे पाते है आखिर वो कौन सी कमी है जो इस एकता को कुचल देती हैं एकसाथ रहने के बावजूद ये दूरी क्यों हुई है और हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का नारा गुम क्यों हो गया है क्यों दोनों एक दूसरे को न तो जानना चाहते है ना समझना चाहते है बस हवा में तीर सभी चलना जानते है भारत में हिन्दू और मुसलमान दोनों समाज के लोग हजारों साल से साथ में रहते चले आए हैं लेकिन दोनों ही समुदाय के लोग अभी तक एक दूसरे को न तो समझ सके है और न ही समझना चाहते है भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता के खूब नारे लगते हैं और खूब कोशिश भी होती है लेकिन नतीजा वहीं जस का तस रहता है आप तो माहौल आज देख रहे है वह कोई नया माहौल बनकर तैयार नहीं हुआ है बल्कि भारत में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाजो के बीच खाई बहुत पहले से है हिन्दू मुस्लिम की एकता का नारा भी कोई आज का नारा नहीं है बल्कि ये तो मुगलों से भी पहले का नारा है कहानी बहुत लंबी है हिन्दू मुस्लिम एकता के बारे में ।

अंग्रेजों ने सबसे पहले भारत की इस एकता में फुट डाली हिन्दू को मुसलमान और मुसलमान को हिंदू से लड़व दिया और एक दूरी पैदा कर दी। ये अपने में दुखद है कि हिन्दू मुस्लिम के बीच की दूरियां लगतार बढ़ती जा रही है। अंग्रेज़ इतने पर भी नहीं रुके, हिन्दू मुसलमान को अलग थलग करने के बाद हिन्दू समाज में ब्राह्मण दलित और मुस्लिम समाज में शिया - सुत्री का मतभेद भी पैदा कर दिया, भारतीय नागरिक हमेशा से ही धार्मिक रहे है जिसका फायदा अंग्रेज सरकार के अधिकारियों ने खूब उठाया। वर्ष 1857 में भारत की आज़ादी के लिए पहला यूद्ध हुआ जिसे भारतीय विद्रोह कहा जाता हैं उस लड़ाई की सबसे खास बात ये रही कि हिन्दू मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग सिर्फ भारतीय बन गए थे, इसी एकता ने अंग्रेजों के माथे पर पसीना लाकर रख दिया था। 

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यह एकता आज़ादी के वक़्त तक बनी रही , लेकिन भारत की आज़ादी वाले दिन ही भारत का एक टुकड़ा पाकिस्तान में तब्दील हो गया ये एक नया घाव था जिसका असर अभी मौजूद है ये एक बड़ी वजह है भारत में हिन्दू मुसलमान के बीच बढ़ती नफ़रतो का असर बहुत गलत होता जा रहा हैं भारत में दोनों ही समुदाय एक साथ तो रहते है मगर एक दूसरे के धर्म के बारे में सिवाय झूठ के और कुछ नहीं जानते है हिन्दू कहता है मुसलमान पत्थर दिल का होता है बेरहम है , जानवर का और बेगुनाहों का खून बहता है, औरतों को कैद करके रखते हैं, उसके पास दिल नहीं होता है ना ही वह विश्वास के लायक होता है। वहीं मुसलमान हिन्दू के खिलाफ ये धारणा रखता है कि ये हर किसी को भगवान मानते है , पत्थर से लेकर जानवर तक को पूजते है , जाति के आधार पर छोटी जातियों को पैर के जूतियों की नोक पर रखते है। ऐसी हजारों धारणाओं को एक दूसरे के खिलाफ रखते हैं जिसका कोई तात्पर्य ही नहीं है लेकिन कहा क्या जाए इनकी मानसिकता दिवालियापन को, आखिर ये खाई कैसी बनी हुई है।

धर्म लोगोंको जोड़ने का काम करता है तो यह लोग टूटे हुए कैसे है दोनों की ही धार्मिक पुस्तके को पढ़ा जाए तो अहिंसा की शिक्षा दोनों ही किताबो में दी गई हैं फिर हम हिंसात्मक कैसे हो जाते है धर्म कोई भी बुरा नहीं है बल्कि उस धर्म की चादर ओढ़ कर कुछ लोग धार्मिक बटवारा करते हुए नजर आते है। हिन्दू मुस्लिम की बीच बढ़ती नफरत का पैमाना क्या है और इसपर लगाम कब लगेगी इसका तो अभी दूर दूर तक कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करने वाले भी अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देते है जबकि कभी कभी हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का नारा गूंजा करता था सवाल ये नहीं कि इस नफरत का अंत क्या होगा बल्कि सवाल यह है कि आखिर ये नफरत बढ़ती क्यों चली जा रही है।

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