Photo by hossein azarbad on Unsplash
लोग कहते हैं आखिर अपना खून अपना ही होता है ऐसा क्यों?
आजकल अगर देखा जाए तो हर जगह पेरेंट्स अपना बच्चा इस दुनिया में लाने के लिए कितनी जद्धो जहत से गुजरते हैं। आजकल इतनी टेक्नोलॉजी आ गई है कि पता नहीं कितने लाख को रुपए खर्च करके सब अपने हारमोंस अपने स्पर्म का बच्चा लाना चाहते हैं यही सोचकर की इतने पैसे खर्च करने के बाद आखिर हमें अपना बेटा तो मिलेगा या अपनी औलाद तो मिलेगी।
आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनना चाहती हूं आर्टिकल के जरिए जो शायद मेरे दिल के बाद जो मैं आपको समझाना चाहती हूं वह आप समझ पाए।
अश्विन नाम का एक लड़का था वह एक अनाथ आश्रम का बच्चा है कौन उसे वहां पर छोड़ कर गया किसी को कुछ नहीं पता है किसकी औलाद है कौन सा जात नात क्या है किसी को कुछ नहीं पता उसके बारे में।
खानदान क्या है कौन से कल से है कोई आईडिया नहीं है किसी को पर उसे अनाथ आश्रम के ट्रस्टी को वह बच्चा कूड़ेदान से मिला था जो पॉलिथीन में लिपटा हुआ था अगर वह शायद वक्त पर न पहुंचने तो वह जिंदा नहीं होता आज इस वक्त।
उसके मां-बाप कौन थे वह कहां से हैं उसे नहीं पता था इसीलिए उसने तो उसे अनाथ आश्रम को ही अपना फैमिली बना लिया था।
उसकी परवरिश करने वाला कोई नहीं था पर वह जहां जो देखा था उससे वह कुछ ना कुछ सीखता था। कहीं बाहर उसे अच्छे एक्सपीरियंस होते थे तो उसे उसके अंदर पॉजिटिविटी आ जाती थी और कहीं बार लोग उसे ऐसे ट्वीट करते थे कि उसे बहुत ज्यादा बुरा लगता था और उसके अंदर नेगेटिविटी आ जाती थी पर पॉजिटिव नेगेटिव के चक्कर में आज वह 25 साल का हो गया है।
अश्विन ने आज तक जो कुछ भी अनाथ आश्रम में महसूस किया है वह उसके लिए एक बहुत ही अहम भूमिका है उसकी जिंदगी में।
वह समझता था कि जिसका कोई नहीं होता है उसके लिए पूरी दुनिया उन्हें की होती है और यही सोच रखते रखते वह बड़ा हो रहा था और उसी के साथ उसने अपनी जिंदगी में सब लोगों को अपना मानकर सबकी मदद करना शुरू कर दिया था।
यहां पर एक और फैमिली थी शाह फैमिली जिन्होंने बहुत ही मनाता से भगवान के पास अपने खून की औलाद अपनी कल के लिए प्रार्थना की थी और बहुत वक्त के बाद उनकी प्रार्थना मेडिकल टेक्नोलॉजी के जरिए पूरी भी हुई और उन्हें जुड़वा बच्चे पैदा हुए पता नहीं जुड़वा बच्चे और अपने खून के लिए उन्होंने कितने लाख को रुपए लगाए होंगे और जैसे-जैसे वह लोग बड़े हो रहे थे वह अपने बच्चों को हर वह ख्वाहिश पूरी करने लगे जिसकी वह डिमांड करते थे।
आज वह भी 25 साल के हो गए हैं। उन लोगों के पास बहुत पैसे थे और उसी के साथ उनकी औलाद है उतने नाजो से पड़ी थी कि उन्हें मेहनत करना पसंद नहीं था।
एक तरफ़ अश्विन था एक जगह जहां उसके जिंदगी में मेहनत के अलावा और कुछ था ही नहीं वह अपनी मेहनत और लगन से एक सरकारी स्कूल में पड़कर अपनी पढ़ाई कंप्लीट की और आगे चलकर अच्छे नंबर से पास हुआ तो उसे स्कॉलरशिप पर कॉलेज में भी एडमिशन मिल ही गया। उसने अपनी जिंदगी में अपने बलबूते पर एक मुकाम हासिल करने का सोचा और उसने बहुत ही ज्यादा सक्सेसफुल बन कर सबकी मदद करने का ने ख्याल और नेक मकसद बनाया था अपनी जिंदगी में।
वह ग्रेजुएशन के साथ सबको ट्यूशन करवाना और साथ ही में कुछ चीज वह बेचना खरीदना यही सब कुछ करके वह अपना गुजारा चलाता था। उसके पास दो वक्त की रोटी बहुत मुश्किल से आई थी इसलिए अगर कोई भूखा उसके पास आता तो वह अपनी रोटी उसे दे देता था क्योंकि उसे पता है कि भूखा रहना क्या होता है और उसकी कीमत क्या होती है।
यहां पर देखते ही देखते अश्विन एक बिजनेसमैन बन जाता है अपनी लगन से और अपनी मेहनत से और यहां पर जो शाह परिवार है उन्होंने अपने बेटों को बना बनाया बिजनेस सौंप दिया था जिनको उन्हें सिर्फ आगे ले जाना था बड़ी यूनिवर्सिटी में उनकी पढ़ाई करवाई ताकि वह भी कुछ कर पाए।
दोनों बच्चों ने बिजनेस टेकओवर कर लिया। शाह परिवार और इन दोनों बच्चों के पिता थे अरविंद शाह जो अब बुढ़ापे पर दस्तक दे रहे थे और उसी के चलते एक दिन उन्होंने फैसला लिया कि मेरी तबीयत कुछ ज्यादा ठीक नहीं रहती तो मैं अपनी जायदाद बना देता हूं।
उन्होंने दोनों बच्चों को इक्वली अपनी प्रॉपर्टी जायदाद में दे दी। दोनों बच्चे बहुत ही ज्यादा खुश हो गए और अरविंद को लगा कि मैं मेरे होते ही दोनों में मनमुटाव ना हो इसलिए मेरी आंखों के सामने में बंटवारा कर दूं और उसी के चलते दोनों बच्चे बहुत शान से अब अपने अपने बंगले में अपने-अपने फैमिली के साथ रहते हैं।
अरविंद ने कुछ पैसे अपने पास रखे थे अपने और अपनी वाइफ के लिए ताकि वह अपना गुजारा भी कर पाए पर अरविंद को बुढ़ापे में एक ऐसी बीमारी हो गई जिसका इलाज करने के लिए उसके पास जितने पैसे थे वह सारे खर्च हो गए और उससे और भी पैसों की जरूरत थी अरविंद की जरूरत है कम थी इसलिए उसने ज्यादा नहीं पैसे रखे थे अपने पास। उसने अपने बेटों से मदद मांगी उसकी वाइफ ने दोनों बेटे से कहा तो उन दोनों बेटों ने उन्हें ट्रीटमेंट करवाने से मना कर दिया।
एक ने कहा कि मैं बिजनेस में इन्वेस्ट कर दिया है अभी मेरे पास पैसे नहीं है और दूसरे ने कहा कि इतने साल तो जी लिया अब और कितना जिएंगे उसमें इतना पैसा क्यों लगाना है।
अरविंद और उनकी वाइफ पायल शाह दोनों यह सुनकर हैरान हो गए कि जिन बच्चों को पैदा करने के लिए हमने इतने लाखों रुपए लगा दिए कितनी मिन्नते मांगी रात दिन एक करके उनके लिए इतना सब कुछ इकट्ठा किया ताकि उनका करियर उनकी जिंदगी अच्छे से गुजरे उन्हें वह हर खुशी मिले जो वह चाहते हैं।
और अब उनके बूढ़े मां-बाप के इलाज के पैसे नहीं है उनके पास उनका कहना है कि अब और कितना जीना है बहुत जी लिया यह सुनकर दोनों की रूह कांप गई।
अरविंद अपना मुंह लटकाए पायल के साथ अस्पताल पहुंचा और तभी उसने इलाज करवाने से मना कर दिया और डॉक्टर को बचाव बताने पर उसने एक कार्ड दिया और बोला आप यहां पर चले जाइए मदद जरूर मिलेगी।
अरविंद तुरंत उसे कार्ड के एड्रेस पर चला गया और एक छोटे से बंगले में जो बहुत प्यारा लग रहा था वहां पर पहुंच कर उन्होंने बात बताई तो उन्हें सीधा अंदर जाने दिया और वह किसी और का नहीं अश्विन का घर था।
अरविंद ने सारी बातें अश्विन को बताई यह नहीं बताया कि उनके बच्चे उनकी मदद के लिए तैयार नहीं है बस इतना बताया कि उन्हें इलाज की जरूरत है और उन्हें कुछ पैसे चाहिए वह कैसे भी उन्हें बाद में लौटा देंगे और तभी अश्विन ने उन्हें बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे पैसे दे दिए।
अरविंद बार-बार उसे पैसे दे देंगे ऐसा बोल रहा था और अश्विन ने कहा आपको कोई जरूरत नहीं है पैसा देने की आप बस जल्दी से ठीक हो जाइए और आप सिर्फ और सिर्फ मुझे आशीर्वाद दीजिए मेरे लिए उतना काफी है।
आज अरविंद के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था पर इस वक्त कुछ ना कह कर वह पैसे लेकर उनके सर पर हाथ रखकर वहां से चले वह और पायल डॉक्टर के पास आए और अपना इलाज कराया।
उसके बाद अश्विन उन्हें अस्पताल में मिलने आया और उसने देखा कि अब अरविंद ठीक थे और उसने बात की कैसे हो अंकल अब तो आप ठीक है ना।
अरविंद:" मैं बिल्कुल ठीक हूं बेटा थैंक यू सो मच तुमने मेरी मदद की और उसकी वजह से आज मैं जिंदा हूं तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं सच में और तुम्हारे मां-बाप बहुत अच्छे लोग हैं कि तुम उसके बेटे हो बहुत किस्मत वाले हैं वह। एक बार तुम्हें दिक्कत ना हो तो मैं भी उनसे मिलकर उन्हें शुक्रिया कहना चाहूंगा कि उन्होंने इतने काबिल और अच्छे इंसान को जन्म दिया है।"
पायल:" हां बेटा तुम्हारे जैसे लोग अगर इस दुनिया में रहेंगे तो इंसानियत जिंदा रहेगी। तुमने हमारे साथ कोई रिश्ता ना होकर भी बहुत कुछ किया हमारे लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया बहुत खुशकिस्मत होगी वह मां इसके पेट से तुमने जन्म लिया है।"
अश्विन:" आपका बहुत-बहुत शुक्रिया अंकल पर मैं आपको उनसे नहीं मिलता पाऊंगा क्योंकि मैं खुद नहीं जानता कि मेरे मां-बाप कौन है। मैं एक अनाथ हूं मैं जिस अनाथ आश्रम से हूं उनके ट्रस्टी को मैं कूड़ेदान में मिला था। जैसे ही मैं बड़ा हुआ उन्होंने मुझे बस इतना ही कहा कि यह अनाथ आश्रम और पूरी दुनिया तुम्हारा परिवार है तो बस जैसे उन्होंने मेरी मदद की वैसे मैं हो सके उतना हर जरूरतमंद इंसान की मदद करता हूं।
अगर आसान भाषा में मैं अगर आपको बता पाऊं तो इतना कह सकता हूं कि हर उस हेल्प लेस इंसान के अंदर मुझे खुद की परछाई दिखती हे। जिसकी अगर किसी ने मदद नहीं की होती तो शायद आज जिंदा नहीं होता।
मेरे मां-बाप को मैं नहीं जानता इसलिए हर बुजुर्ग इंसान को अपना मां-बाप समझता हूं।
मैं प्यार भुख मदद अपनापन रिश्ते इन सब का सही मतलब जिंदगी से सीख चुका हूं।"
मेरा एक एनजीओ है। जिसमें हम यही सब करते हे। उनकी मदद जिनकी मदद कोई नहीं करता।
बहुत इंसान ऐसे मिले जिन्होंने हमसे ताल्लुक रखता यह हमारे जैसे लोगों को अपने साथ कोई रिश्ता बनाना भी मंजूर नहीं था हमारी मदद करना तो दूर जैसे ही मैंने यह बोला की मेरा कोई खानदान नहीं है या मेरे मां-बाप नहीं है मेहनत हूं सबका नजरिया ही चेंज हो जाता था।
कहां पर ऐडमिशन लेने जाए तो वहां पर भी सबसे पहला सवाल यही पूछते हैं मां-बाप का नाम क्या है अगर जॉब लेने जाओ तो वहां पर भी रिज्यूम प्रोफाइल देखकर यही कहते हैं तुम्हारे मां-बाप कौन है।
कदम कदम पर यह एहसास दिलाया है लोगों ने कि तुम्हारा कोई नहीं है। और तभी बहुत ही कम लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने हमारा हाथ थामा और हमें रिश्तों का सही मतलब सिखाया।
सबने नात जात खून परवरिश संस्कारों से जज करके हमसे रिश्ता रखने पर सौ बार सोचते थे। कदम कदम पर यही एहसास होता था कि हमारा कोई नहीं है पर तभी मेरे सामने मेरे भगवान और हमारे अनाथ आश्रम के ट्रस्टी मिस्टर रघुवीर चौधरी उनका चेहरा सामने आ जाता है कि भगवान ने उनके जैसे लोग भी बनाए हैं इस दुनिया में जिन्होंने हम सब का साथ दिया और हमारी मदद की।
मैं भी उनके जैसा ही बनना चाहता हूं मैं भी वह हर उसे इंसान की मदद करना चाहता हूं जिनकी मदद कोई नहीं करता।"
अश्विन की बातें सुनकर अरविंद चौक गया और पूरी जिंदगी उसने जिस बात पर घमंड किया उनका खंडन उनके बच्चे उनके खून जिनकी मिन्नते मांग कर भगवान से लड़ गए थे वह। और आज तक अरविंद ने खुद जैसा अश्विन ने कहा वैसे ही उनके जैसे लोगों को जज किया था पर आज सही मायनों में जहां पर खून तो खून ही होता है वहां पर आज उन्हें ऐसे शख्स से उन्हें उनकी जिंदगी का तोहफा मिला था जिनका खून खानदान से कोई लेना देना नहीं है।
अरविंद और पायल की आंखों में आंसू आ गए और अरविंद ने सिर्फ एक ही चीज कहीं,
अरविंद:" भगवान तुम जैसे लोगों को बनाते रहे बस और तभी रिश्तो की सही पहचान और इंसानियत जिंदा रहेगी वरना हम जैसे लोग तो खून खानदान में ही रह जाएंगे। पर अच्छा हुआ जिंदगी ने बहुत अच्छा सबक सिखाया है हमें।"
मेरा सवाल है उन हर वह शख्स से जिनके बच्चे नहीं होते हैं या फिर बहुत मुश्किल से होते हैं।
क्या लाखों रुपए खर्च करने पर जिन खून और खानदान की सिफारिश करते हुए आप इस दुनिया में उन बच्चों को लाते हैं जिनका भविष्य आपके हाथों में बिल्कुल नहीं है वह बड़े होकर क्या करेंगे क्या नहीं उसे पर आपका कोई बस नहीं रहेगा।
जरूरत क्या है लाखों रुपए खर्च करने की?
अगर आपके बच्चे नहीं होते हैं या फिर आपका एक बच्चा है और अगर आप दो बच्चे अफोर्ड कर सकते हैं तो क्या आप उन बच्चों के मां-बाप नहीं बन सकते जिनके मां-बाप नहीं होते क्या उसमें कुछ गलत है?
बच्चे ना होने का एहसास हर मां-बाप को होता है। मेरा सवाल है उन मां-बाप से कि उन्हें यह एहसास क्यों नहीं होता है कि जिनके मां-बाप नहीं होते हैं उन्हें क्या एहसास होता है उन पर क्या बितती है।
आज के जमाने में अपना खून कितना अपना होता है या फिर अपना कितना अपना होता है वह सब जानते हैं।
आपको बच्चे चाहिए और उन्हें मां-बाप साथ में मिलकर आप अपनी फैमिली क्यों नहीं बना सकते क्या सच में आप अभी भी यह कहेंगे कि अपना खून सिर्फ अपना ही होता है?