हम देखेंगे,
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे।

फैज़ अहमद फैज़ की ये गज़ल 2020 मे लोगों के जहन मे एक नए मतलब के साथ उतरी। इसमें मांगी जाने वाली आज़ादी के मायने अब बदल चुके थे। जनवरी की सर्द रातों मे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक ये गज़ल गा रहे थे। और अपने हक की आज़ादी मांग रहे थे।

दिसम्बर 2019 मे, केंद्र मे दूसरी बार चुन कर आयी भाजपा सरकार द्वारा लाए गए एक अधिनियम, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कारण देश भर मे विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। काफी जगहों पर इन प्रदर्शनों ने दंगों की शक़्ल भी ली। इन्हीं प्रदर्शन स्थलों मे से एक था दिल्ली का शाहीन बाग, जहां ये गज़ल दोहरायी गयी। आज चार साल बाद एक बार फिर शाहीन बाग मे सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है। पुलिस की टुकड़ियां दिल्ली और देश के अन्य सम्वेदनशील इलाक़ों मे गश्त लगा रही है। ये सब इस लिए क्योंकि 11 मार्च को भारत सरकार ने ये कानून देश भर में लागू कर दिया है।

क्या है CAA?

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 भारतीय संसद द्वारा 11 दिसम्बर 2019 को पारित किया गया। इस बिल के द्वारा नागरिकता कानून ,1955 को संशोधित किया जाएगा। नए कानून के तहत 31 दिसम्बर, 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन, पारसी, और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। ये बिल सिर्फ उन्हीं लोगों को नागरिकता देगा जो भारत मे 5 साल से ज्यादा समय से रह रहे हैं। इस बिल मे किसी की भी नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है।

क्यों हो रहा है विरोध?

उत्तर भारत मे मुख्य रूप से मुस्लिम वर्ग ने इस बिल के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए थे। इसकी एक बड़ी वजह थी बिल मे मुस्लिमों को शामिल ना किए जाना। इसके जवाब में सरकार ने कहा था कि वो इन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देंगे जो धर्म के आधार पर प्रताड़ित है। चूंकि ये तीनों देश मुस्लिम बाहुल्य है, इसलिए यहा मुसलमानों के साथ भेदभाव का कोई सवाल नहीं है। अब जब ये कानून लागू हो चुका है, सरकार द्वारा जारी अधिसूचना मे कहीं भी ये बात दोहरायी नहीं गयी है।

2020 मे हुए व्यापक विरोध की एक वजह सूचना की कमी भी हो सकती है। जानकारी के अभाव मे समुदाय विशेष मे डर की स्थिति थी। 2020 मे CAA के साथ NRC की भी बात हो रही थी, जो कि मोटे तौर पर नागरिकों का एक रजिस्टर था। इसके विरोध मे भी उस दौरान “हम काग़ज नहीं दिखाएंगे” जैसे नारे लगे थे। हालांकि इस वक्त सिर्फ CAA को लागू किया गया है और NRC का कोई ज़िक्र नहीं है।

विरोध की वजह सिर्फ बिल ही नहीं था। इसकी एक वजह केंद्र मे स्थापित भारतीय जनता पार्टी की छवि भी है। मुस्लिम समाज मे भाजपा के लिए अविश्वास है। CAA और NRC के बारे मे हर नागरिक ना के बराबर जनता था। ऐसे मे लोग और जानकारी आने का इंतजार भी कर सकते थे। लेकिन समाज के वर्ग विशेष ने विरोध करना चुना। ये समाज के एक वर्ग के भीतर की असुरक्षा को दर्शाता है।

उत्तर पश्चिम भारत मुख्यतः असम मे भी दंगे देखने को मिले। लेकिन यहां दंगों की वज़ह थोड़ी अलग थी। यहां लोग किसी भी धर्म के प्रवासियों को नागरिकता देने के खिलाफ थे। उनका मानना है कि ये उनकी भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।

कानून सही या गलत!

इस कानून पर एक समुदाय विशेष को लक्षित करने के आरोप लगते रहे है। कानून को सही या गलत ठहराने के लिए लोगों के पास अपने अपने मत है। इसके पक्षधर अक्सर ये तर्क देते है कि महात्मा गांधी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आने वाले अल्पसंख्यकों को भारत मे नौकरी और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहते थे। 2003 मे विपक्ष के रूप मे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बांग्लादेश जैसे देशों से प्रताड़ित होकर आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की मांग की थी। उस समय भाजपा सरकार मे गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने भी उनका समर्थन किया था।

हालांकि, इस कानून के कारण भारत के पड़ोसी मुल्कों, खासतौर पर कानून मे वर्णित 3 देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय सम्बंध खराब हो सकते है। कानून अप्रत्यक्ष रूप से ये सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है कि ये 3 देश अपने अल्पसंख्यक नागरिकों का उत्पीड़न करते हैं।

पाकिस्तान के लिए ये बात भले ही भारत मे जहाँ-तहाँ होती रहती है। लेकिन अफगानिस्तान और खासतौर से बांग्लादेश जिसके साथ हमारे रिश्ते काफी हद तक अच्छे है, उनके सन्दर्भ मे ये बात हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंधो के लिए दिक्कत खड़ी कर सकती है।

वही दूसरी तरफ ये कानून सिर्फ मुस्लिम बाहुल्य देशों के लिए है। पड़ोसी देशों की बात की जाए तो श्री लंका मे तमिल, म्यांमार मे हिन्दू रोहिंग्या के साथ भी काफी भेदभाव हुआ है। अगर बात पाकिस्तान की ही करे तो वहाँ भी अहमदिया मुस्लमान (जो कि मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग है, लेकिन पाकिस्तान मे अल्पसंख्यक है) के साथ भी बर्बरता के काफी किस्से हिन्दुस्तान तक पहुँचे हैं। फिर भी इन लोगों के लिए कानून मे कोई प्रावधान नहीं है।

भविष्य मे पड़ने वाले प्रभाव

मौजूदा आकड़ों के मुताबिक, 30 हज़ार से अधिक प्रवासियों को इस नीति का लाभ मिलने की उम्मीद है। लेकिन 100 करोड़ से भी अधिक की जनसंख्या वाले देश के सामने ये आकड़ा कुछ भी नहीं। भारत मे फैली भ्रष्टाचार की समस्या ने इस संख्या को कम करने मे काफी योगदान दिया है। सरकारी अफसरों की मेज़ों पर वजन रखकर कई प्रवासियों ने भारत मे अपने पहचान पत्र बनवा लिए है। इस कानून के लागू होने के बाद भारत की जनगणना मे कुछ बड़ा बदलाव होने की आशंका नहीं है।

हालांकि, 2024 मे आम चुनाव से पहले इस कानून को लागू करना भाजपा सरकार का बड़ा कदम है। लेकिन इससे उनके वोट बैंक पर कुछ खास असर नहीं पड़ना चाहिए। भाजपा को वोट मुख्य रूप से हिन्दुओं से आता है, जो कहे-अनकहे रूप से शुरू से ही इस कानून के समर्थन में थे।

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References:

  • https://www.jagran.com/
  • https://hindi.news18.com/
  • https://navbharattimes.indiatimes.com/
  • https://www.aajtak.in/

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