भारत जैसे विविधता से भरे देश में, पुत्र मोह एक गहरी जड़ें जमाई हुई सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या है। यह मानसिकता केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों में भी पाई जाती है।परंपरागत रूप से, बेटे को परिवार के नाम और विरासत को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है। बहुत से परिवारों में यह विश्वास है कि केवल पुत्र ही परिवार की सम्पत्ति और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है।
उदाहरण: भारत के कई गांवों में, लोग यह मानते हैं कि बेटा ही परिवार की जमीन और सम्पत्ति का सही हकदार है।ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, बेटे को बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करने वाला माना जाता है। यह विश्वास भी है कि बेटे बड़े होकर कमाई करेंगे और माता-पिता की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
उदाहरण: कई गरीब परिवारों में, माता-पिता यह उम्मीद करते हैं कि बेटा बड़ा होकर नौकरी करेगा और उन्हें आर्थिक मदद प्रदान करेगा।कुछ धार्मिक मान्यताओं में यह विश्वास है कि केवल बेटा ही माता-पिता के मृत्युपरांत संस्कार सही तरीके से कर सकता है। जैसे, हिंदू धर्म में पुत्र द्वारा किए गए अंतिम संस्कार को महत्वपूर्ण माना जाता है।
उदाहरण: हिंदू धर्म के कई अनुयायी मानते हैं कि बेटे द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म आत्मा की शांति के लिए आवश्यक है।पुत्र मोह के कारण लिंगानुपात में असंतुलन बढ़ता है। बेटियों के जन्म को अक्सर अस्वीकार कर दिया जाता है और गर्भपात की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
उदाहरण: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम थी।बेटियों को कई बार शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रखा जाता है। उन्हें बोझ के रूप में देखा जाता है और उनकी संभावनाओं को सीमित किया जाता है।
उदाहरण: ग्रामीण इलाकों में कई परिवार बेटियों की शिक्षा पर खर्च करने से बचते हैं और उनकी जल्दी शादी कर देते हैं।महिलाओं पर बेटे को जन्म देने का भारी दबाव होता है। अगर कोई महिला बार-बार बेटियों को जन्म देती है, तो उसे परिवार और समाज की आलोचना का सामना करना पड़ता है।
उदाहरण: कई बार, महिलाएं केवल बेटे को जन्म देने के दबाव के कारण मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार हो जाती हैं।लोगों को पुत्र मोह के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। शिक्षा के माध्यम से समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व को समझाना आवश्यक है।
उदाहरण: कई गैर-सरकारी संगठन (NGOs) ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियानों के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों पर जोर दे रहे हैं।सरकार को लिंग चयन और भ्रूण हत्या पर सख्त कानून लागू करने चाहिए और उनके उल्लंघन पर कड़ी सजा सुनिश्चित करनी चाहिए।
उदाहरण: भारत में पहले से ही लिंग चयन को अवैध घोषित करने वाले कानून हैं, लेकिन उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है।समाज को बेटियों के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। बेटियों को भी बेटों के समान अवसर और अधिकार दिए जाने चाहिए।
उदाहरण: कई जगहों पर "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" जैसे अभियानों से समाज में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है और बेटियों के प्रति दृष्टिकोण में सुधार हो रहा है।