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दिन के तपिश को ,
मानस की व्यथा को ,
दूर करने प्रकृति,
गोधूली का श्रंगार करती।
घर लौटते वक्त
मानस मे जितने विचार उत्पन्न होते,
मानो प्रकृति उन रंगों से अंबर को रंगती।
प्रथम स्वेत वर्ण से नारंगी वर्ण में ढलती,
उस नारंगी वर्ण में लालीमा की कुमकुम छिड़कती,
मानो कोई अपना सुखद प्रसंग याद कर रहा हो,
और उसमे हास्य विभोर की लालीमा झटकी हो।
फिर अंबर यू गुलाबी रंग में ढलती
मानो कोई अपनी प्रेमिका से,
मिलने को शर्मा रहा हो
अंत में अंबर के सतरंग,
तमस में विलुप्त हो जाते,
वैसे ही जैसे मन शांत होने पर,
हम सारे विचारों का त्याग कर देते है
और परम शांति का आनंद लेते।