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नहीं रहा जिंदा किसीका जमीर,
बस सबको बनना है जल्दी से अमीर।
नही रही किसीमे इंसानियत,
बस पैसे और मतलब मे होती है सबकी नियत।
नहीं हाँ करते शादी के लिए दम्पत्ति,
चाहिये होती है उन्हे पहले बहोत सारी संपत्ती।
नहीं है किसिको कोई बात का होश,
हर बात मे करते रहते है आक्रोश।
नहीं अपनाना है किसिको गांधीजी का जीवन,
जीना चाहते है जीवन, जैसा भी हो चलन।
नहीं दिखाते कोई अन्याय और अंधश्रद्धा के खिलाफ होशियारी,
साक्षर होने की दिखाते रहते है सिर्फ हुशारी।
नही बचा है किसिको किसीके लिए सरोहकार,
गिनाते रहते है किये हुये उपकार।
नही बची है न्याय मांगने की शक्ति,
बढा ली है सभीने सहनशक्ति।
नहीं रहिये हमेशा किसीपे निर्भर,
इंसान है बन सकते है हम आत्मनिर्भर।
नहीं है किसिकी आखें खुली, है सभी सोये,
मोबाईल की दुनिया मे हमेशा है खोये।
नहीं लेना चाहिये किसीसे रिश्वत,
करनी चाहिये खुदसे हमेशा मेहनत।
नहीं है किसीमे कोई बात के लिये संयम,
किसिको भी नहीं चाहिये जीवन मे कोई नियम।
नहीं लेता कोई कचरा कम करने का संकल्प,
क्योंकी कचरा बढ़ाने के हो गये है बहोत सारे विकल्प।
नहीं चाहिये किसको जीवन मे कोई बंधन,
सभी को जीने के लिये मिल रहे है बहोत सारे साधन।
इसलिए नहीं बना सकते ये युग को हम सतयुग,
क्योंकी अंधकार से भरा हुआ है ये कलियुग।