नारी सहती है कितने अपमान
कितने देती है जीवन मे बलिदान
फिर भी हमेशा रखती है चेहरे पे मुस्कान
नारी से ही होती है घर परिवार की शान
आये मेहमान तो नहीं होती कभी परेशान
बनाती है परिवार के लिए स्वादिष्ट पकवान
शिशु को जन्म देकर बनाती है नया खानदान
हमेशा कर्म करती है, फिर भी नहीं होती उसे थकान।
नर होता है संस्कारी नारी की संतान
फिर कैसे बन जाता है नारी के लिए शैतान
मिलता क्यू नहीं नारी को सभी से सन्मान
नहीं है वो कठपुतली, उसमे भी है जान
क्यू नहीं समजते है उसे इंसान
हर द्रौपदी के लिए क्या आयेंगे कृष्ण भगवान
ऐसी लंका को कब अग्नि लगायेंगे श्री हनुमान
सभी को होना चाहिये नारी पर अभिमान।
वर्तमान नारी के है अरमान
रहना नहीं चाहती बेजूबान
बनाना चाहती है वह अपनी पहचान
चंद्रयान मे भी दिया है अपना योगदान
राह नहीं है आसान, फिर भी छूती है आसमान
एक ही जीवन मे करती कितने पूरे आह्वान
शुक्र है नारी के जीवन मे हो रहा है कुछ उत्थान
यही है नारी की जीवन की दास्तान।