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वेदों, उपनिषदों में कहा गया यह श्लोक अनादि काल से ही प्रचलित है। इसका अर्थ है - सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है अर्थात् शिव ही शाश्वत है।

शिव को शास्वत या शाश्वत कहा जाता है, क्योंकि वे हिंदू धर्म में सृष्टि, संहार और परिवर्तन के प्रतीक हैं। शिव अनादि, अनंत और कालातीत माने जाते हैं, जो समय और स्थान से परे हैं। उनकी शाश्वतता का तात्पर्य है कि वे सदैव से हैं और सदैव रहेंगे। शिव को अनंत रूपों में पूजा जाता है, और वे सदैव कल्याणकारी और विनाशकारी दोनों रूपों में पूजनीय हैं।

वस्तुतः शिव के स्वरूप को मूल प्रकृति के साक्ष्य के रूप में स्वीकारा गया है। प्रकृति संपूर्ण ब्रह्माण्ड का मूल व सार्थक स्वरूप है । यह समय-समय पर विनाशकारी अवश्य है पर नश्वर नहीं। पृथ्वी पर जन्म लेने वाले जीवों के लिए उनकी रक्षक है, प्राणदायिनी है।

यानी सृष्टि की साक्षात रक्षक और भक्षक दोनों ही रूपों में सदा से सदा के लिये विराजमान है। ठीक वैसे ही जैसे शिव सृष्टिकर्ता और संहारकर्ता दोनों ही रूपों में सदा से सदा के लिये विराजमान हैं।

शिव, जिन्हें महादेव भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें त्रिदेवों में से एक माना जाता है, जिनके अन्य दो स्वरूप ब्रह्मा और विष्णु हैं। शिव की विशेषता है कि वे शास्वत हैं, अर्थात् अनादि, अनंत और अपरिवर्तनीय। इस निबंध में हम शिव के शाश्वत स्वरूप, उनकी महत्ता और उनकी पूजा के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेंगे।

शिव का शाश्वत स्वरूप

शिव का शाश्वत स्वरूप उन्हें समय और स्थान की सीमाओं से परे ले जाता है। वे सृष्टि के प्रारंभ से ही उपस्थित हैं और सृष्टि के अंत तक बने रहेंगे। शिव का यह अनंत और अपरिवर्तनीय स्वरूप ही उन्हें शाश्वत बनाता है। उनका यह स्वरूप अजर-अमर है, जिसमें वे कालातीत हैं और किसी भी परिवर्तन से परे हैं। शिव का शाश्वत स्वरूप यह दर्शाता है कि वे सृष्टि, पालन और संहार के चक्र में निरंतर और अपरिवर्तनीय भूमिका निभाते हैं।

शिव की महत्ता

शिव को नटराज के रूप में भी पूजा जाता है, जिसमें वे अपने तांडव नृत्य से सृष्टि का संहार करते हैं। यह संहार केवल विनाश नहीं है, बल्कि यह नव सृजन का भी प्रतीक है। शिव के त्रिशूल, डमरू और नाग उनकी शक्तियों और उनके विविध रूपों को दर्शाते हैं। शिव के मस्तक पर गंगा और चंद्रमा की उपस्थिति उनकी जीवनदायिनी और शांत स्वभाव को दर्शाती है।

शिव को उनके विभिन्न नामों से भी जाना जाता है जैसे कि भोलेनाथ, शंकर, महेश और रुद्र। उनके विभिन्न स्वरूपों में से प्रत्येक स्वरूप उनकी अनंत शक्तियों और गुणों का प्रतीक है। शिव की महत्ता का एक और महत्वपूर्ण पहलू उनका योगी स्वरूप है। वे ध्यान, योग और समाधि के प्रतीक हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महान बनाता है।

शिव की पूजा

शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, जो उनके अनादि और अनंत स्वरूप का प्रतीक है। शिवरात्रि, विशेष रूप से महाशिवरात्रि, शिव की आराधना का महत्वपूर्ण पर्व है, जब भक्त उपवास रखते हैं और रात भर जागरण करते हैं। शिव मंदिरों में उनकी मूर्तियों और शिवलिंग की पूजा की जाती है, जहां भक्त भस्म, बेलपत्र, जल और दूध से उनका अभिषेक करते हैं।

शिव की पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनके आदर्शों और शिक्षाओं का पालन भी महत्वपूर्ण है। शिव के भक्त उनके अनुयायी बनकर सत्य, तपस्या, और योग का मार्ग अपनाते हैं। शिव की पूजा से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

निष्कर्ष

शिव की शाश्वतता उन्हें हिंदू धर्म के एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण देवता बनाती है। उनका अनंत और अपरिवर्तनीय स्वरूप, उनकी महानता और उनकी पूजा के विविध स्वरूप उन्हें विशेष और पूजनीय बनाते हैं। शिव का शाश्वत स्वरूप यह संदेश देता है कि सच्चा ईश्वर समय और स्थान की सीमाओं से परे होता है और उसकी महिमा अनंत होती है। शिव की पूजा और उनके आदर्शों का पालन जीवन में सकारात्मकता और शांति लाता है, जिससे हम अपने आध्यात्मिक और धार्मिक पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।

"शिव ही शाश्वत है" - इस कथन को कवयित्री की निम्नलिखित पंक्तियाँ सार्थकता प्रदान करती है:

शिव शाश्वत, अनादि अनंत, काल के पार, समय के संत।
सृष्टि के आधार, सृष्टि के सार, त्रिनेत्रधारी, महाकाल।
विनाशक भी, सृजनहार, शिव के चरणों में संसार।
जटा में समाहित पतित पावनी गंगा
गले में विभूषित विषधर भुजंगा
भूतभावन, संहारकर्ता, ध्यान में लीन, योगी शिव।
अग्नि-त्रिशूल, डमरू की धुन,
दसों दिशाओं में गुंजित शिव की महिमा,
ओंकार के नाद में शिव का वास,
शाश्वत सत्य, अमर प्रकाश।
अध्यात्म के पथ पर, जो चले शिव के साथ,
पाए मुक्ति, पाए अनंत।
शिव की कृपा से, हो सबका कल्याण,
हर ह्रदय में, बसे शिव का ज्ञान।
नमन है शिव को, अद्वितीय, अनंत,
शिव शाश्वत, शिव अजर, अमर, अनंत।

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