मानव सभ्यता उन्नति करते हुए आज २१वीं सदी तक आ पहुंची है। वास्तव में मानव समाज ने काफ़ी प्रगति की है। इस प्रगति के मापदंड सबके लिए भिन्न होंगे, पैमाने भी सबके अलग-अलग होंगे। पाषाण काल से आज तक का सफर देखें तो वास्तव में हमने बहुत तरक्की की है -ज्ञान , विज्ञान, तकनीक, भूगोल, हर क्षेत्र में। जब से मानव का सृष्टि में उद्भव हुआ तब से निरंतर उसके मस्तिष्क का विकास हुआ और साथ ही मानव ने उस विकसित मस्तिष्क से हर क्षेत्र में विकास कॆ पदचिन्ह फैलाए हैं।
पाषाण काल में देखें तो पत्थर, पेड़-पत्तों या पशुओं की हड्डियों से अपनी रक्षा हेतु अस्त्र-शस्त्र बनाना मनुष्य के विकास का परिचय ही था। फिर समय के साथ अग्नि की खोज करना, पहिए का आविष्कार अपने आप में आज के समय में चांद पर पहुंचने जैसा ही था। उस युग में जब औपचारिक शिक्षा नहीं थी तब भी मनुष्य ने अग्नि की खोज या पहिए का आविष्कार किया। अतः समाज के विकास में केवल एक तत्व जो स्थिर है वह है ज्ञान।
साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि शिक्षा ही महत्वपूर्ण या अनिवार्य तत्व नहीं है, किंतु एक सभ्य समाज के लिए सही शिक्षा अति अनिवार्य है। यदि इस तथ्य को पकड़ लें तो यह कहना असत्य ना होगा कि आज का मानव समाज पहले के किसी भी काल की अपेक्षा ज्यादा सभ्य है क्योंकि किसी भी वर्ष की तुलना में आज साक्षरता की दर अधिक ही है। यह तथ्य किसी भी राष्ट्र, समाज या समूह विशेष के लिए कही जा सकती है। साक्षरता दर को किसी भी राष्ट्र के विकास का विकास को मापने का एक मुख्य घटक माना जाता है और इस बात से किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
शिक्षा नि:संदेह, मानव जीवन को बेहतर बनाने का माध्यम है। कदाचित शिक्षा ही एकमात्र वह कुंजी है जिससे प्रत्येक प्रकार की समस्याओं का हल मिलता है, सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से। समाज में पनपती हर कुरीति के अंधकार को कम या दूर मात्र ज्ञान के प्रकाश से ही किया जा सकता है, जो शिक्षा की लौ से ही प्रज्वलित होता है। उदाहरण के तौर पर आप किसी भी कुरीति का नाम ले सकते हैं - दहेज प्रथा, बाल- विवाह, कन्या भ्रूणहत्या , लिंग-भेद, स्त्री अशिक्षा या कोई भी समस्या, प्रत्येक कुरीति की दर को कम करने में यदि किसी समाज या राष्ट्र ने सफलता पाई है तो वह केवल शिक्षा के ताकतवर शास्त्र से संभव हो पाया है। अतः शिक्षा का ध्येय क्या होना चाहिए? क्या किसी व्यक्ति को केवल रोजगार पाने के योग्य बनना ही शिक्षा का ध्येय है? कदाचित नहीं। रोजगार के साथ-साथ किसी भी व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन भी प्रदान कराना भी शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए। और यह सम्भव होगा जब शिक्षा के प्रकाश से सब एक दूसरे को, एक दूसरे के अधिकारों को सम्मान देंगे। शिक्षा से ही सब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकते हैं, अपने समाज तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकते हैं। जब सब एक दूसरे के जीवन का आदर करना अपना मनुष्य धर्म समझेंगें तो स्वत: ही मानवता की पताका फहराएगी और चारों ओर सुख, शान्ति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण होगा।
सौहार्दपूर्ण जीवन मात्र एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान देने भर से सम्भव नहीं है, साथ ही अत्यंत आवश्यक है कि समाज में फैली अराजकता, मनुष्य में राग-द्वेष, हिंसात्मक प्रवृत्ति का हनन हो और ऐसे कुविचारों को एकमात्र सुशिक्षा से ही हराया जा सकता है। शिक्षा व ज्ञान के प्रकाश से ही वैमनस्य के तिमिर को दूर किया जा सकता है।
आज हम मंगल ग्रह या सूरज की दूरी को शून्य करने में सफल हो गए हैं तकनीकी ज्ञान की तरक्की से, यह अति हर्ष का विषय है, किंतु वसुंधरा को स्वर्ग नहीं बना पा रहे क्योंकि चारों ओर युद्ध, आतंकवाद, अशांति, हिंसा ने पांव फैलाए हुए हैं।आज आवश्यकता है विश्व शांति की; प्रत्येक राष्ट्र में आपसी सद्भाव की; वसुधैव कुटुंबकम को चरितार्थ करने की। गत दो वर्षों से रूस-यूक्रेन युद्ध बिना विराम निरंतर चल रहा है, हमास का फिलिस्तीन पर हमला भी विश्व झेल चुका है। कभी चीन, ताइवान पर कब्जा करता प्रतीत होता है तो कभी ईरान से युद्ध की खबर व्यथित करती है। संक्षेप में कहें तो विश्व के प्रत्येक कोने में समय-समय पर अशांति का साया मंडराता रहता है । ऐसे में कोई भी राष्ट्र चाहे वह विकसित हो या विकासशील अपने नागरिकों को सुरक्षा एवं भय मुक्त जीवन का आश्वासन कैसे दे सकता है? ओंग सैन सयू की के शब्दों में आजादी का अर्थ है भय मुक्त जीवन। शिक्षा का सदुपयोग मानव, अपने,
समाज एवं अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए करे। हम संसाधनों को सही दिशा में लगाएं, मानव हित में लगाएं, जिसमें सबका हित निहित हो तथा सबका कल्याण हो। तकनीकी ज्ञान को हम विध्वंसात्मक गतिविधियों की अपेक्षा सकारात्मक, विकास के कार्यों में लगाएं जिससे हम अपने ही राष्ट्र का नहीं अपितु दूसरों के लिए भी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकें।
जब चारों ओर अशांति एवं भय का वातावरण हो तो भला कोई भी आजादी किस काम की? अर्थात यदि मनुष्य एक सुंदर, संतुष्ट, शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण जीवन जीना चाहता है जो सही अर्थ में मनुष्य जीवन का सार्थक होना कहा जा सकता है। तो वह तभी संभव है जब हम शिक्षा के चिराग से सबके हृदय से अज्ञानता का अंधकार मिटा पाएं, तभी शिक्षा का सही ध्येय सार्थक होगा और मनुष्य मानव कहलाने योग्य बनेगा। आज शिक्षा से कागज की डिग्रियों की नहीं अपितु ऐसे समाज की स्थापना आवश्यक है जहां तकनीकी ज्ञान रखने वाले इंसान इंसानियत भी जानें ताकि तकनीक का मानव कल्याण के लिए उपयोग हो सके। नि:संदेह विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए तकनीक की मदद चाहिए किंतु तकनीक के सदुपयोग के लिए मानवता से सींचा मनुष्य भी चाहिए। जिस दिन शिक्षा अपने सही ध्येय को हासिल करने में सफल हो जाएगी उस दिन यह विश्व राम राज्य की महक से सुगंधित हो उठेगा और मानव समाज उस दिन सही अर्थों में सभ्य कहलाने योग्य बनेगा।