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मंदिर जाओ याँ जाओ मस्जिद
दोनो एक समान हैं
ईश्वर कहो या अल्लाह कहलो
बस एक ही तो भगवान है
दुनिया के रखवाले ने
सुंदर ये संसार बनाया था
न हिंदू बनाया न मुसलमान बनाया
बस इंसान बनाया था
बिखर गई ये सुंदर धरती
जब मज़हब की आग जली
प्यार भरे दिल घायल हुए
जब नफ़रत की आरी चली
जाति- धर्म के नाम पर
दंगे फसाद होते रहे
इंसान बना इंसान का दुश्मन
दिलों के बटवारे होते रहे
क्यों बनाया ये मज़हब हमने
जिसने हमे ही तोड़ दिया
छीन कर इंसानियत हमसे
मंदिरों-मस्जिदों में जोड दिया
दफ़न हो रहा इंसानियत आज तो
बस धर्म अमर हो रहा
धर्म के नाम पर कई छोड गए दुनिया
और धर्म खड़ा हँसता रहा
दिल से दिल को जोड़ता है जो
वही तो सच्चा धर्म है
नफ़रत करना सिखाए जो
धर्म नहीं वह अधर्म है
हर धर्म के रास्ते अलग सही पर
मंजिल तो वो ईश्वर है
गीता पढ़ो या कुरान पढ़लो
हर ग्रंथ का सार वही ईश्वर है
हाथ जोडकर प्रार्थना करलें
याँ हाथ खोल करलें दुआ
याद तो करना है दिल से ईश्वर को
फिर क्या प्रार्थना क्या दुआ
सच की राह जो दिखलाए
कर्म को जो सत्कर्म बनाए
प्यार करना जो हमें सिखलाए
सच्चा धर्म वही कहलाए
न मुसलमान बुरा न हिन्दू अच्छा
सारे एक समान हैं
धर्म से नहीं जो कर्म से बड़ा हो
वही सच्चा इंसान है
न कोई मज़हब बहती हवा का
न कोई मज़हब बरिश का
गर होता कोई मज़हब इनका तो
सोचो क्या हाल होता धरती का !
क्यों न आज़ाद परिंदे से हम
पंख फेला कर उड़ जाएँ
जाति-धर्म के पिंजरे से आज़ाद होकर
आसमान में स मा जाएँ

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