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बदल बोले दुष्ट फल से,
सूरज के पृथक स्थल पे।
बदल समझे करे वार हम,
सूरज समझा ये अहंकार है।
सूरज बोला अपने मान से,
क्यों लड़ू एक चूषक तान से।
बात चिड़ी बदल के बाल पे,
लगी शर्त बिथार प्रबल पे।
बदल बोला यहीं बात है,
कौन वरिष्ठ अधिवक संचार हैं।
सुरज बोला चलो स्वीकार हैं,
नियम तो तुम्हे ज्ञात हैं।
चांद बोली तुमको आभास है,
यह सब करना गलत बात है।
बदल बोला ध्रीस्त आवाज में,
क्या तुम्हे निर्लजता स्वीकार है।
चांद बोली ये कैसी बात है,
पोषण जो करवाए वोह सर्व महान हैं।
आदमी चला जा रहा है,
उससे मोहित करो तो बात है।
बदल तो तरकीब का मारा ,
ठंडी हवा का छोखा मारा ।
ठंडी ठंडी वण्ड से घेरा,
आदमी तुरंत दुबाक के भागा।
वही सुरज ने किरण मारा,
आदमी तुरंत निर्मल हो जाता।
बेहतर वो ख़ुद को पाता,
खिल खिलाता चला जाता।
चांद तो सुरज से मोहित थी ही,
ना जाने बीच में बदल आता।
बोला कि चांद अगर तू न आती,
तो सर्व श्रेष्ठ स्वयम् कहलाता।
चंद बोली सुरज से की,
मुझे तुमपे इतना नाज़ क्यों आता।
सूरज बोला मत करों ऐसी बात तुम,
सबके सामने न दो इतना दुलार तुम।
समझ में सही ग़लत मुझको ना आता,
बादल जो बोले वोह मुझको क्यों ना भाता।
चंद हुई नराश इस बात पर,
चली वोह दूर अंधकार पर।
सोची की दूरी पर न कर सकू,
अपने सुरज से में मिल न सकू।
वही बादल बोल कुछ न पाया,
विनती की तुम्हे मैने मिलाया।
चंद ने समाज से कहाँ,
सूर्या को ग्रहण किसने लगाया?