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फसल खड़ी लहरा रही जैसे नटी पतंग
बौराये अमवा पर कूके रस बरसाते कंत
महुआ अमलतास और टेसू दिखलाएं यूं रंग
जैसे पुरवइया समीर में घुलकर बहती भंग
भाल गुलाल मलै अंबर पर इंद्रधनुषी खगवृन्द
फाग राग के स्वर में मच रही हुरियारी हुड़दंग
दुख, वियोग, नैराश्य चित्त के बींधै सारे अंग
लोभ, मोह, मद में फंस-करके जो जीवन बदरंग
रंगहीन निसर्ग तत्व में भरता अखिलज्ञ रंग
इन तत्वों की काया से है जग में व्याप्त उमंग।

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