राजा भरत के वंश में आगे चलके एक महान प्रतापी राजा का जन्म हुआ, जिसका नाम शान्तनु था। उनके पिता का नाम प्रतीप था। अपने पिता के निधन के बाद शान्तनु ने हस्तिनापुर के गद्दी संभाले। वे एक धर्म पारायण और न्यायप्रिय शासक थे। एक दिन उनकी मुलाकात देवी गंगा से हो जाती है। जिसपे वे अनुरक्त हो जाते हैं और शादी का प्रस्ताव रखते हैं, लेकिन गंगा राजा के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कुछ शर्त रखते हैं। शान्तनु किसी भी स्थिति में उससे शादी करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उनकी शर्त स्वीकार कर लिया और शादी करके गंगा को साथ लेकर राजमहल में आ गए।
कुछ दिन बाद गंगा पुत्रों को जन्म देना प्रारंभ किया, लेकिन शर्त के मुताबिक जैसे हीं जन्म देती, तुरंत मार डालती। वे वचनबद्ध होने के कारण कुछ बोल नहीं पाते थे। इसप्रकार लगातार सात पुत्रों को मारने के बाद आठवां बच्चे को मारने वाली थी, वे उन्हें रोके। वचन के मुताबिक गंगा राजा को छोड़कर अपने स्थान चली गई। उन्होंने जने से पूर्व राजा को कहा, "बच्चा अभी छोटा है, जैसे हीं लायक होगा, आपको दे देंगे।"
इस प्रकार गंगा उनका लालन-पालन किया और उनका नाम देव्रत रखा। देव्रत बहुत तेजस्वी और धनुर्धारी हो गए। एक दिन शांतनु की मुलाकात देव्रत से हो गई, जिनसे प्रभावित होकर उनका परिचय जानना चाहा। तभी गंगा प्रकट होकर उन्हें, शांतनु को समर्पित किया। इस प्रकार वे देव्रत को पाकर बहुत खुश हुए और अपनी राजधानी आ गए। इस प्रकार कुछ दिन बीत गए।
इधर गंगा के जाने के बाद राजा उदास रहने लगे। एक दिन उन्होंने शिकार पर जाने की योजना बनाई और अपने सिपाहियों को साथ लेकर निकल गए। अचानक उन्होंने एक खूबसूरत हिरण देखा और उसका पीछा किया, जिससे उनके अन्य साथियों से साथ छूट गया। वे काफी दूर निकल गए। अंततः,आकर नदी के किनारे एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। ठीक उसी समय राजा का ध्यान एक नाव पर गई जिसे एक लड़की चला रही थी। वे नदी के पास पहुँचे और उस लड़की को अवाज लगाई। उन्होंने कहा, "मुझे उस पार जाना है।"तब लडकी राजा को नाव में बैठकर चल पड़ी,किन्तु उन्हें बातचीत के क्रम में लड़की ने मुग्ध कर दिया,जिससे उन्हें कहाँ जाना है क्या करना है कुछ भी याद नहीं रहा। इस दृश्य को देखकर लड़की ने कहा "महाराज,आप किधर जाना चाहते हैं? "तब राजा ने कहा,"और आगे चलो। " इस प्रकार कई बार पूछने पर भी वे यही बात बता रहे थे।तब लड़की राजा की स्थिति को जान गई और पूछा, "महाराज, आप क्या चाहते हैं?"तो राजा ने उससे सारी सच्चाई बता दी। लड़की राजा से विवाह करना पसंद किया, लेकिन उसने कहा," महाराज, इसके लिए आपको हमारे अभिभावक से मिलना होगा। उनके अनुमति के बिना हम शादी नहीं कर सकते।" उस लड़की का नाम सत्यवती थी।
राजा उनके अभिभावक के बारे में जानकारी प्राप्त की और उनसे मिलने के लिए चल पड़े। उनके झोपड़ी पहुँचकर राजा ने मच्छुआरे को बुलाया। वो राजा का यथोचित सम्मान किया और आने का कारण पूछा। राजा सारी बात उन्हें बता दी। मच्छुआरे ने कहा, "यह तो मेरा सौभाग्य है, लेकिन मेरी एक शर्त है जिसे आप स्वीकार करेंगे, तभी शादी हो पाएगी।" उन्होंने आगे कहा, "महाराज, मेरे इस लड़की से जो राजकुमार उत्पन्न होगा, वही हस्तीनापुर का राजा होगा।" राजा को तुरंत देव्रत की याद आ गई, जिससे उन्होंने शर्त स्वीकार नहीं की और चुपचाप वापस लौट आए।
इस घटना का राजा पर असर यह हुआ कि उनका स्वास्थ्य गिर गया और वे बेचैन रहने लगे। देव्रत राजा की दशा देखकर अपने मंत्रियों से कारण जानना चाहा, तो वे लोग सब बात स्पष्ट बता दिए। देव्रत को यह जानकर खुशी हुई कि वह राजा के दुःख को शीघ्र ही दूर कर देंगे। देव्रत मछुआरे से मिलने निकल पड़े। मछुआरे ने राजकुमार को देखकर आने का कारण पूछा तो उन्होंने सब बातें उन्हें बता दी। उन्होंने कहा, "आपके सिर्फ कहने से नहीं होगा, आपको इसके लिए प्रतिज्ञा करनी होगी।" देव्रत ने तुरंत अपनी प्रतिज्ञा का उन्हें सुनाया, जिससे पृथ्वी, आसमान, पर्वत और दिशाएँ हिल गईं और देवता उस पर फूल बरसाने लगे। उसी दिन से देव्रत का नाम भीष्म पड़ गया। वे अपनी प्रतिज्ञा के बल पर सत्यवती को लेकर राजा के पास आ गए। राजा को भीष्म की बातों को जानकर काफी दुख हुआ। कुछ दिन बाद राजा को सत्यवती से दो पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। बाद में विचित्रवीर्य राजा बने और उनके पुत्र धृतराष्ट्र और पाण्डु हुए, जो महाभारत के प्रमुख पात्र बनें। इन दोनों से कौरव और पाण्डव का जन्म हुआ। कौरव के ओर से दुर्योधन का नेतृत्व था और पाण्डव के तरफ से युधिष्ठिर। दोनों के बीच संग्राम कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ। दोनों सेनाओं के मुख्य रूप से दो गुरु थे: द्रोणाचार्य और परशुराम, जिनके के शिष्य क्रमशः अर्जुन और कर्ण थे।
इस युध्द के शरुआत से पहले अर्जुन ने शिव की तपस्या करके दिव्यास्त्र प्राप्त किए। इधर कर्ण छल से परशुराम से शिक्षा प्राप्त किया, लेकिन बाद में परशुराम उन्हें शाप दे दिए। जब वे जाने की ये क्षत्रिय हैं। इनकी कथा कुछ इस प्रकार है- कर्ण उनको अपने आप को ब्रह्मण बताकर उनका शिष्य बना।
अचानक एक दिन की बात है, वे गुरु के साथ एक वृक्ष के पास बैठे थे। ठीक उसी समय परशुराम को नींद आ गई और वे उनके जंघे पर माथा देकर सो गए। गुरु की नींद गहरी थी। वे गुरु की सुरक्षा में तत्पर थे। उसी समय एक घातक कीड़ा उन्हें काटना शुरू किया, जिससे उसे काफी पीड़ा होना शुरू हुआ, लेकिन वे गुरु की नींद की रक्षा में लीन रहे। आखिर गहरी जख्म जब हुआ तो खून बहने लगा, जिसके गर्म स्पर्श से गुरु जग गए, तो उन्होंने देखा और सब जाना। तब कुपित होकर उसने उन्हें शाप दिया कि जब तुम्हें हमारे दी गई शिक्षा की विशेष आवश्यकता होगी तो वो काम नहीं करेगा।
इसी शाप के वजह से कर्ण अर्जुन के हाथों मारा गया। पाण्डव के ओर से श्री कृष्ण महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। युध्द के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिए। इस युध्द में बड़े-बड़े योध्दा मारे गए।
आखिर में भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध हुआ। इस युद्ध के प्रारंभ में दुर्योधन का पराक्रम ऐसा था कि भीम घबरा गए, क्योंकि उसका शरीर पत्थर का था। दोनों में युद्ध घमासान चला। भीम की स्थिति को देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ संकेत दिए, जिससे भीम गदा का भीषण प्रहार दुर्योधन के जंघा पर किया और उनका अंत कर दिया।
उनके मारे जाने के बाद कौरव वंश का अंत हो गया, और पाण्डव की ओर से युधिष्ठिर राजा हुए। भारत में इन्हीं का वंश महाभारत युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
इस प्रकार शान्तनु वीर, साहसी और न्यायप्रिय राजा थे, जिन्हें परम प्रतापी माना गया है। महाभारत ग्रंथ में भी उनकी कहानी प्रमुख हिस्सा है। इनसे संबंधित और भी प्रचलित कथाएँ हैं। साथ ही, उनकी दोनों पत्नियों गंगा और सत्यवती की भी रोचक कहानियाँ मिलती हैं।