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नए घर का शुभागमन करना था तो कोई शुभ कार्य भी करवाना था, इसलिए हमने मां जगदम्बा माता रानी के जागरण का आयोजन किया था । सभी रिश्तेदारों, सगे-संबंधियों को और मित्रों को न्योता दिया गया था । रात्रि जागरण सर्दियों का मौसम सभी व्यवस्था यथोचित हो आखिर हमारे अतिथि हमारे देव होते हैं ।और उनका ध्यान रखना हमारा कर्तव्य, अपनी और से हमने सभी व्यवस्थाएं अच्छे से सुनियोजित की थीं। लगभग सभी अतिथि मातारानी के जागरण में उपस्थित हुए जिन्हें हमने बुलाया था सभी ने बहुत उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया सब बहुत प्रसन्नचित्त थे की उनका स्वागत अच्छे से हुआ और नए घर की बधाइयां देते हुए घर सुन्दर बना है उपमा देते रहे ।

अगला दिन था सब कुछ मातारानी का जागरण सभी कुछ अच्छे से हो गया था मैंने मातारानी को शुक्रिया अदा किया। आखिर एक परम्परा और निभानी थी कौन-कौन लोग आए थे क्या-क्या उपहार लाए थे देखने का सिलसिला शुरू हुआ, लगभग सभी मेहमान आए थे जिनको हमने बुलाया था ।

तभी एक एक कीमती उपहार पर नजर पड़ी... अरे ये मेरा बचपन का मित्र है आज बहुत बड़ा आदमी बन गया है, फिर भी इसका बड़पन्न है ये हमारे घर आया ये मेरा मित्र बचपन से ही दिल का बहुत अच्छा है, तभी तो इतने आगे निकल गया आज क्या नहीं है इसके पास हम तो इसके आगे कुछ भी नहीं... ये ना जाने कितनी दौलत का मालिक है, वास्तव में इसकी अच्छाई और सादगी ही इसे इतने आगे लेकर गई है । सके घर जाकर कुछ उपहार देना चाहिए और इसका शुक्रिया भी अदा करूंगा की ये हमारे घर अपना कीमती समय लेकर आया, कल ही जाऊंगा इसके घर ।

अगले दिन मैं अपने मित्र के घर जाने के लिए अच्छे से तैयार हो गया और एक सुन्दर सा उपहार भी लिया उसके लिए ...

मैं खुश था और स्वयं में गर्वानवित महसूस कर रहा था की शहर का इतना बड़ा आदमी मेरे घर के मुहूर्त में आया, आखिर रास्ता तय हुआ मैं अपने मित्र के घर के बाहर खड़ा था जहां पहले से ही दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे, उन्होंने मुझे मेरा नाम, पता और वहां आने का कारण पूछा, मैंने कहा वो मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं, और कल वो मेरे घर के मुहूर्त पर माता का जागरण था वहां भी आए थे, और तुम्हें तो सब पता होगा, वो सुरक्षाकर्मी बोले हां पता है वो गए थे अच्छा तो वो तुम हो बड़े भाग्यशाली हो जो साहब तुम्हारे घर आए वो ऐसे ही किसी के घर नहीं जाते, अब बोलो तुम्हे उनसे क्या काम है ।

मैं उनसे बोला उनका मित्र हूं उनसे मिलना है ।

एक सुरक्षा कर्मी ने अपने कैबिन मे से फोन किया ।

फोन पर उत्तर मिला वो आज बहुत व्यस्त हैं जरूरी काम हो तो या तो शाम तक इंतजार करे या फिर किसी दिन आये।

अब मैं थोड़ा सकुचाया धनी सेठ का मिजाज समझ आया मैंने सुरक्षा कर्मी को बोला कि वो बोले मैं उनका बचपन का मित्र रमेश हूं।

सुरक्षाकर्मी देखो हमें पता है अगर साहब ने मना कर दिया तो समझो मना कर दिया फिर चाहे उनका कोई भी रिश्तेदार हो...

फिर भी तुम कहते हो तो देखता हूं एक बार फिर फोन करके ,सुरक्षाकर्मी ने फोन किया, उत्तर मिला मैं कोई कृष्ण नहीं हूं और ना ही वो सुदामा ।

मन में हजारों प्रश्न थे अगर कुछ नहीं तो फिर वो मेरे घर उस आयोजन में क्यों आया....

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सुरक्षाकर्मी अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था उसने मुझे पानी पिलाया, फिर बात करने लगा, अच्छा तो आप और साहब बचपन में साथ पड़ते थे बहुत अच्छे मित्र थे, मैंने सिर हिला कर उत्तर दिया हां ....

सुरक्षाकर्मी बोला तुम एक सज्जन व्यक्ति हो इसलिए तुमसे कह रहा हूं, जब इंसान के पास पैसा आ जाता है ना तब उसका सब कुछ उसका पैसा उसकी हैसियत होता वो किसी का नहीं होता बस वो को भी करता है ना दिखावे के लिए ऐसे वो कई जगह जाते हैं समाज को दिखाने के लिए और तुम्हारे घर भी आए समाज को दिखाने के लिए की देखो मैं कितना समाजिक और व्यवहारिक हूं सब कुछ अपना रुतबा बढ़ाने के लिए ।

कल को ये भी हो सकता है, की अगर तुम कहीं रास्ते में दिखो तो वो तुम्हे पहचानने से भी इंकार कर दें ।

ये दिखावे की दुनिया है भैय्या इनके लिए पैसे सेबड़ा कुछ भी नहीं...

दिखावे की दुनिया से बेहतर मैंने अपने घर लौट जाना समझा और मैं उल्टे पांव घर लौट आया।

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