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एक नन्ही परी है आज आई,
घर में थोड़ी सी नाराजी छाई,
आज जो ये, बेटी हैं आई,
कल का संकट है लाई,
समाज से इसकी सुरक्षा का हैं, खतरा!
दहेज और ब्याह के खर्चे है सत्रह,
आज जो गई स्कूल,
कल शिक्षा की ज़बान चलेगी,
पढ़ लिख जो लिया तूने,
सत्ता का शासन लेगी,
आज नही तो कल, अधिकार का आधापन,
खोखले समाज का सादापन,
इस दुनिया का मैला दर्पण,
एक सिरे पर तौलता, माता पिता का अर्पण,
बेटी हूं! तो छीने अधिकार मेरे,
बेटा होती तो, तोड देती समाज बंधन तेरे,
बस! अब डर लगता हैं,
कि, आज़ादी के बंदिशों में ना रह जाऊं,
फिर, इस दर्द को ना सह जाऊं,
आज जो मैने कहा,
कल, तुम और मैं फिर कह पाएं।

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