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परछाई हूँ मैं,
अंतरमन के भाव की,
अंतरमन के गूंज की,
शब्दों में व्यक्त होती हूँ।
परछाई को नया रूप देने के लिए
कलम मेरे भाव और गूंज की धड़कन बन जाती है। कलम मेरे शब्दों को मेरी छवि में हुबहु डालकर मेरी
मुझसे पल पल पहचान कराती है।
लिखी जाती हूँ सरलता से,
सहजता से पन्नों पर,
मेरी छवि मेरी मुस्कान के रूप में
अमिट छाप छोड़ जाती है।
जब पढ़ती हूँ अपने ही शब्दों को,
खुद से जुड़ जाती हूँ,
हर बार खुद से जुड़कर नए विचार,
नई सोच के बीज अंतरमन में बो जाता है,
फिर नए भाव, नई गूंज का पुनः जन्म हो जाता है,
फिर परछाई बन जाती हूँ,
अंतरमन के भाव की,
अंतरमन के गूंज की।

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