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आज हम सब आपकी अदालत मे है। आप जो भी फैसला सुनायेंगे हम सबको मंजूर होगा। आपके फैसले के खिलाफ हम कही भी नहीं जा सकते है क्योंकि आपके ऊपर कोई अदालत नहीं है कोई कोर्ट नही है ।

आपकी कोर्ट मे भी ये केस बरसो बरस से चल रहे है, तारीख पर तारीख हम सबको मिलती रही है। लेकिन हम सब किसी तारीख पर कभी तो समय पर पहुंच पाये कभी हमने वकील को मोटी रकम देकर तारीख आगे बढ़वायी है। और हाँ, कभी तो हमने झूठे गवाह खडे करते केस का चेहरा ही बदलने की कोशिश की है। लेकिन छोटी छोटी कोर्ट से बच निकले है लेकिन हाईकोर्ट मे जब हमारे केस जायेंगे तो हमारे लिये कोई रास्ता नही बचेगा।झूठे गवाह भी मुकर जायेंगे, वकीलों की नहीं चल पायेगी हाई कोर्ट मे। हम सब अपने अपने अपराध स्वीकार करते है।हम सब हत्यारे है,हम सब खूनी है।

हम अपराधी है हम सब ये स्वीकार करते है देश में जो युवा बच्चों की आत्महत्याए हो रही है बच्चे आत्महत्याये कर रहे है उसके लिऐ बच्चो से ज्यादा हम दोषी है उनके माता पिता। किस प्रकार ? हम ये भी स्वीकार करते है।कई बार बच्चो पर अंको का प्रेशर बनाने लगते है, उसकी तुलना दूसरे बच्चों से करते है। जिससे बच्चा गिल्टी का शिकार हो जाता है। हममे से कई अपने बच्चों को ताने दे देकर मानसिक रूप से प्रताडित करते है तो कहीं उसे शारीरिक कष्ट भी देते है चोट भी पहुंचते रहे है।

आये दिन अखबारों में ये न्यूज देखने को मिलती है बोरखेल मे नन्हे बच्चे गिर गये और उनकी मौत हो गयी| नन्हे बच्चे जिनकी उम्र पाँच साल, सात साल, कही कही तो दूधमुहे होते है। बड़े बड़े गहरे खुदे गड्ढ़े में नन्हेबच्चो को निकालने के लिये प्रशासन की पूरी टीम दिन रात लगती है।जैसे कुछ समय पहले बोरवेल मे बच्चा गिर गया,पूरी टीम दिन रात लगी थी। साल भर के बच्चे,सात साल के बच्चे, खुले बोरवेल मे गिर करते हैं,घर वालो को पता ही नही चलता है बच्चो के प्रति क्या ये लापरवाही नहीं ?पूरी टीम मेहनत करती हैं।फिर भी वो बच्चा नही बचा पाते |इसमे हम प्रशासन को दोष देते है। जबकि हत्यारे तो हम है छोटे छोटे बच्चे खुदे हुए गहरे बोरवेल मे गिरते कैसे है? यही समझ नहीं आता। कई केसो में ये देखा गया है घर परिवार वाले सभी आसपास ही रहते है फिर भी बच्चा गिर जाता 'है।मतलब हम मासूमो के प्रति लापरवाह रहते है।

हम ये भी कबूल करते है हमने अपनी बेटियो के पंख काटे है। पंख काटकर उनको हमने कैद किया है।जंजीरो से जकड़कर रखा है बेटियो को हमने बिना वजह की पाबंदी और हमारी संकुचित विचार‌धारा ने मार दिया है। हाँ, ये भी सच है मुट्ठी भर बेटियो ने दी गयी आजादी का गलत फायदा उठाया है। लेकिन इससे सभी बेटियो को दोषी नही माना जा सकता है। हम सब कुछ प्रतिशत बेटियो के गलत कदमो से डर जाते है आंतकित रहते है सभी बेटिया ऐसी ना हो जाये।

कुछ बेटियाँ आसमान मे तितली जैसी बनना चाहती है संतरगी रंगो से अपनी तरक्की की नयी परिभाषा लिखना चाहती है। कामयाब होना चाहती है। पढना चाहती है।अपनी प्रतिभा को निखारना चाहती है।हम अपनी बेटियो को डाँटते फटकारते रहते है,बिगडते है।हमलोग उनकी प्रशंसा नही करते है। हम कूपमंडूप है,हम इंसानी रूपी मेढको के लिये एक बंधी बंधायी लीक है जिस पर हम चलते रहते है। बेटियों के लिये हम वही निश्चित जीवन शैली ही सोचते है। इसके आगे का हम नहीं सोच पाते है। कही इसकी पढाई बीच मे छुड़वा देते है कही मारपीट करते हैं।पढ़ लिखकर क्या करेगी ? जाना तो पराये घर ही है। बेटिया बुझ जाती है, खुशियों को हम नाग के समान डस लेते है।

एक बात ये भी बतायेंगे, कि सदियो से सुनते आ रहे हैं, माँ देवी का रूप होती है भगवान होती है।ममता का सागर होती है।

लेकिन जज साहब,ऐसा सब दूर नही होता है।ये सदियो से एक सामान्य धारणा है।बेटियो पर अत्याचार करने मे माँ भी कम दोषी नही होती है,कही कही वो पत्थरदिल होती है। बेटियो पर अत्याचार करने मे वो भी पीछे नही हटती है।मार पीट के साथ हत्याये भी कर देती हैं ,जज साहब माँ हत्यारी भी होती है।

हम बेटियो की शारिरिक मानसिक दोनों रूपों मे हत्याए करते आ रहे है|लेकिन कोर्ट से बचते रहे है।

बेटियो को हम बेमेल शादियों के लिये भी दबाब बनाते रहते हैं।

और जबरदस्ती शादी भी कर देते है|

हम दहेज के लिये भी हत्याये करते है। हम ये नही कहते कि सभी दहेज के लोभी है। समाज में अच्छे लोग भी है जो दहेज नही लेते बेटी,बहुओ को प्यार दुलार सम्मान देते है। पर दहेज के लिये और शराबी कबाबी पतियो द्वारा जब बेटिया सतायी जाती है, तो हम अपनी परंपराओ की दुहाई देते हैं। बेटियो की मदद नहीं करते है।कम ही लोग ऐसे हैं जो बेटियो की मदद करते है।

हम बच्चो और बेटियो के प्रेम के भी दुश्मन है| सही है, कि समय बदल रहा है।लोग जाति धर्म से ऊपर उठकर भी शादियाँ कर रहे है करते रहे हैं।ये पुराने युग से चला आ रहा है।लेकिन हम लोग ठहरे “लकीर के फकीर" सड़ी गली जंजीरों को काटकर नही फैकते।झूठे अहम, घमन्ड अकड में रहते है।हम लोग छोटी सोच वाले हो जाते है।यहाँ पर।खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पाते।

लेकिन जज साहब, कही कहीं बेटियो के चुनाव भी गलत होते है अपनी मरजी से घर से भागकर शादी करती है, फिर मार दी जाती है और टुकडो में मिलती है। इसलिये आप फैसला सुनाते समय दोनो पक्षो पर नजर रखे, ध्यान दें।

एक अपराध हम ये भी स्वीकार करते है कि आज की पीढ़ी में संघर्ष करने की ताकत,मानसिक रूप से मजबूती समाप्त होती चली जा रही है। उसने कही हम भी जिम्मेदार है। टीवी एक्ट्रेस तनीशा शर्मा की आत्महत्या इस बात का सुबूत है।

हम लोगो ने लड़ना नही लिखाया बच्चियों को,बच्चो को मानसिक कमजोरी के चलते कई बार आत्महत्या करते है|जीवन इतना सस्ता नही होता किसी से ब्रेकअप होने के बाद खत्म कर दिया जाए। वो रिश्ता जीवन में एक ही रिश्ता नहीं होता,उसके पहले माता पिता जिन्होंने पालपोसकर इतना बडा किया अपने टेलेन्ट, अपने माता पिता को भूलकर अगर एक रिश्ता सबसे ऊपर मान लिया जाए तो खुद तनीशा भी कही ना कहीं दोषी है।

फ़िल्मी दुनिया में पिछले कुछ वर्षो से आत्महत्याए बढ गयी है।

जज साहब, ये आत्महत्याए नयी नहीं है,होती आयी है पहले भी। लेकिन सभी आत्महत्याए तो नही करते ?आज टी वी और फिल्मी दुनिया की नयी पीढी पुराने फिल्म स्टार के संघर्ष,मेहनत,लगन आँसुओ को नही पढ़ती| अगर बड़े बड़े सितारों के संघर्ष को पढ़ ले तो आत्महत्या की बात सपने मे भी नही सोचे।

दुनिया में अपनी जादू भरी आवाज से पहचानी जाने वाली लता दीदी का संघर्ष कभी पढ़ा है आज की पीढ़ी ने ?फिल्मी दुनिया शहंशाह बच्चन साहब का संघर्ष पढ़ा है ?लगातार अनेको फिल्मे फ्लॉप के बाद सफलता मिली है।अनेको बार उपेक्षा भी मिली क्या उन्होंने आत्महत्या का सोचा? ऐसे अनेको सितारे है जिनके प्रेम सम्बंध टूटे है|असफल हुए,असमय मौते हुई लेकिन आत्महत्या को नहीं संघर्ष को अपना हथियार बनाया और सफल हुए।

इसलिये जज साहब कही तो ये भी दोषी है।पूरी तरह से हम दोषी नही है| हमारी गलती ये है हमने संस्कार व्यवहार की शिक्षा नहीं दी है|इसके लिये हम कसूरवार है।

आज हम सब अपने पाप इसलिये भी स्वीकार करते हैं क्यों कि हम खुद की नजरो मे गिर चुके है। खुद की नजरो और आत्मा से गिरे,मरे व्यक्तियो को सुकून नहीं मिलता है।एक बैचेनी छटपटाहट होती है जो हमे चैन से रहने नहीं देती| हम सब जीवित जरुर है लेकिन मुर्दों के समान है|क्योंकि हमारी आत्माए मर गयी है।दया करुणा मर गयी है हमारे भीतर। हम सब हत्यारे है।हमें फाँसी दो जज साहब, हमें फाँसी दो जज साहब।

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