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प्रकृति पर अधा धुंध प्रहा र रो को ,
धुएं का उठता ये गुबा र रो को ,
मत बहा ओं पा नी में कचरा ,
नदि यों को रखो सा फ सुथरा ,
पा ली थी न का उपयो ग रो को ,
उनको खुले में यू न फेंको ,
खूब सा रे पेड़ लगा ओ,
झो ला लेकर बा जा र जा ओ,
जैवि क खेती का करो प्रचा र,
मृदा का नि रंतर करो उपचा र,
स्वस्थ्य पर्या वरण की यही कहा नी ,
शुद्ध मि ट्टी ,हवा और पा नी ,
वर्तमा न मा नव का आचरण,
झेल न पा ता क्यों पर्या वरण,
पेड़ रो ज का टे जा ते,
जंगल रो ज उजा ड़े जा ते,
हवा एक दम हुई वि षैली ,
लेकि न कि सी ने कहां खबर ली ,
वैसे ही नदी का पा नी मैला ,
हमने डा ला एकदम वि षैला ,
अब मि ट्टी की क्या बा त करें,
पा ली थी न का प्रयो ग दि न रा त करें,
चा हे को ई भी फसल रो पी ,
जमकर डा लते यूरि या डी एपी ,
कुल मि ला कर है हा लत ऐसी ,
पर्या वरण की है ऐसी की तैसी ,
अब ग्लो बल वा र्मिं ग से हम जल रहे हैं,
गलेशि यर अब धी रे धी रे पि घल रहे हैं ।
हम भले एयर कंडी शनर में कैद हो रहे हैं।
पर ओजो न परत में भी छेद हो रहे हैं।
पर्या वरण को सच में बचा ना हो गा ।
सबसे पहले खूब पेड़ लगा ना हो गा ।
सबको ये बा त बता नी हो गी ।
धरती पर हरि या ली ला नी हो गी ।

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