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वो जो कांपते हाथों से माथा सहलाते थे,
हर रात तकिये पर चुपके से आँसू बहाते थे,
जो सोचते थे – “बेटा ही होगा सहारा हमारा,”
उन्हीं का नसीब इक बेटी ने सँवारा।
जब आई वो, तो घर में सन्नाटा छा गया,
जश्न के शोर में एक कोना चुपचाप सा रह गया।
रिश्तेदारों ने आँखें चुराईं,
कुछ ने तो यूँ तक़दीर तक लानतें बरसाईं।
मगर जो कंधे झुके थे उस दिन,
वही कुछ बरसों में तनकर खड़े हो गए।
जो आँखें भविष्य से डरती थीं,
अब सपनों से लबालब भर गईं।
“वो जो कहते थे कि बेटी पराया धन होती है,
आज वही कहते हैं कि बेटी ही सबसे बड़ा धन होती है।”
रानी लक्ष्मीबाई ने जब तलवार उठाई थी,
तो दुनिया ने जाना कि बेटी भी वीर कहलाती है।
कल्पना चावला जब आसमान को छूकर आई,
तो सबने माना कि सपने पंखों से नहीं, हौसले से उड़ते हैं।
“एक लड़की वह होती है जो जीवन को रोशन कर देती है।”
— मलाला यूसुफ़ज़ई
साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, मैरी कॉम की जीत ने,
हर पिता को गर्व से सिर उठाने का हक दिया।
सुष्मिता सेन ने जब खुद को पहचाना,
तो हर लड़की को ख़्वाब सजाने का सबक दिया।
“औरत की सबसे बड़ी ताकत उसकी सोच होती है,
क्योंकि जब वो ठान ले, तो कुछ भी असंभव नहीं।”
— इंदिरा गांधी
जो एक दिन समाज से हार मानने चले थे,
आज उनकी आँखों में उजाले हैं।
जिन्हें विरासत का डर था,
आज कहते हैं—“हमारी पहचान हमारी बेटी के नाम से है।”
उसके कदमों की थाप से रास्ते बदल गए,
उसकी कलम से किस्से नए लिखे गए।
बेटा न होने की कमी की जो कभी कसक थी,
वो बेटी के साहस में कहीं घुल सी गई।
“बेटियां फूल नहीं, वो तो आग का शोला होती हैं,
जो खुद जलकर भी, दूसरों का जीवन रोशन कर देती हैं।”
— सुभद्रा कुमारी चौहान
और जब उसने पहली बार माँ का हाथ थामा,
थके हुए पिता को अपना कंधा थमाया,
तब खुद तक़दीर ने भी कलम रख दी,
क्योंकि अब वो नहीं, बेटी उसका भविष्य लिख रही थी।

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