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तारीख़ आती रहती है वही बार-बार
तारीख़ आती रहती है वही बार-बार,
पर दिन वो नहीं आते,
जब हँसते थे बार-बार,
बेवजह बेकार।
वो बचपन की मासूम बातें,
दोस्तों संग बिताए वो रातें।
बिना किसी चिंता, बिना किसी भार,
हँसी की गूँज थी चारों ओर, बस प्यार।
स्कूल की छुट्टियाँ, गर्मियों की धूप,
खेल के मैदान, और वो पानी की बूंद।
वो बेमतलब की मस्ती, वो नटखट शरारत,
हर दिन में खुशियों की नई इबारत।
वो बारिश में भीगना, वो छत पर दौड़,
कागज़ की नावें, और वो बारिश की होड़।
तारीख़ें तो बदलती हैं, पर वो दिन नहीं आते,
यादों की परछाईं में, हमें वो फिर बुलाते।
वो चाँदनी रातें, और तारों की बारात,
आंगन में बिछी चारपाई, और सुनहरे ख्वाबों की बात।
दादी की कहानियाँ, और माँ की लोरी,
सपनों में खो जाना, वो प्यारी सी निंदोरी।
वो पतंगों का त्योहार, और मकर संक्रांति की रौनक,
छत पर दोस्तों का जमघट, और मस्ती की झनक।
वो रंग-बिरंगी पतंगें, आसमान में उड़ान,
हर पतंग की कहानी, थी जैसे इक नई जान।
वो कंचों का खेल, और गुल्ली-डंडे का जोर,
दोस्तों के संग बिताए पल, थे सबसे अनमोल।
वो मिट्टी की खुशबू, और खेतों की सैर,
हर पल में था सुकून, हर दिन था खैर।
वो गर्मियों की छुट्टियाँ, और आम का बाग,
टिप-टिप करती बारिश, और कच्चे आम का राग।
वो झूले की पींगें, और दोस्तों का साथ,
हर लम्हा था खास, हर पल था नायाब।
अब भी याद आती है, वो खुशियों की रुत,
वो बचपन की मिठास, और वो सजीव वक्त।
तारीख़ आती रहती है वही बार-बार,
पर दिन वो नहीं आते,
जब हँसते थे बार-बार,
बेवजह बेकार।
यादों के झरोखों से, झाँकते हैं वो पल,
मन को छू जाती है, वो हँसी की हलचल।
जीवन की इस दौड़ में, भुला ना पाएंगे,
वो सुनहरे पल, जो हमें फिर से रुलाएंगे।
आज भी मन में वही हँसी की आवाज़,
बेवजह की बातें, और वही प्यारा अंदाज़।
तारीख़ आती रहती है वही बार-बार,
पर दिन वो नहीं आते,
जब हँसते थे बार-बार,
बेवजह बेकार।
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