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"पता नहीं मेरी बहन कब आएगी?" रोहन मन ही मन बड़बड़ाते हुए...हाल में एक कोने से दूसरे कोने तक तेज कदमों से कभी चक्कर लगाता तो कभी सोफे पर बैठकर अपनी बहन खुशी को फोन लगाने लगता।

तभी रोहन की माँ रचना ने कहा "तू इतना क्यों बावला हुए जा रहा है? बताया तो खुशी ने की वो ट्रैफिक में फंस गई है। आती होगी।"

"मेरे सब दोस्तों ने राखी बंधवा ली। और फोटो भी अपनी अपनी बहनों के साथ सब जगह अपडेट कर दी। एक मैं हूं जो अब तक इंतजार कर रहा हूँ। इसीलिए कहा था मैंने की मैं चला जाता हूं लेने लेकिन नहीं मना कर दिया मुझे।"

"रोहन बाबा आप कुछ खा पी लो सुबह से आपने पानी भी नहीं पिया है।" कमला ने कहा

"नहीं ताई मैं राखी बंधवाकर ही कुछ भी खाऊंगा।"

तभी डोर बेल बजी ,भागकर रोहन ने दरवाजा खोला देखा तो दरवाजे के बाहर खुशी खड़ी थी खुशी घर के अंदर दाख़िल हुई। जिसे देखते रोहन खुश हो गया। और गुस्सा भूल उसकी फिक्र करने लगा।

"ये ले पहले पानी पी। रास्ते में तुझे कोई परेशानी तो नहीं हुई" रोहन ने गिलास का पानी पकड़ाते हुए खुशी से कहा

"भैया! अब मैं बड़ी हो गयी हूं। आपकी बहन अब एम.बी.ए कर रही है। कोई छोटी बच्ची नहीं। आप इतनी फिक्र मत किया करो।"

"पानी मैं बाद में पीऊंगी, चलो पहले राखी बांधती हूं।"

दोनों भाई बहनों का प्यार देखकर कमला और रचना का मन अतीत के गलियारों में चला गया।

रक्षाबंधन के दिन आठ वर्षीय रोहन उदास मन से हाथ में फुट बॉल लिए अपनी बालकनी की खिड़की पर अकेला बैठा था. खिड़की से नीचे अपने संग के सभी हम उम्र बच्चों के हाथ मे राखी थी रोहन खिड़की से कभी उन बच्चों की कलाई देखता तो कभी खुद की। रोहन का हाथ खाली था. अपना खाली हाथ देखकर वो वही अपना मुंह दबाए सुबक सुबक कर रो रहा था।

तभी कमरे में उसकी मां रचना ने प्रवेश किया। तो देखा रोहन का कमरा बिल्कुल व्यवस्थित है। उसने रोहन से कहा "क्या बात है रोहन? तुमने तो आज कमरे से कोई खिलौने नहीं उठाये...ना ही तुम दोस्तों के साथ खेलने गए आज तो बड़ी शांति है।"

रचना के इतना बोलने पर भी रोहन ने कोई जवाब नहीं दिया। और चुपचाप बालकनी में पैर लटकाए बाहर की तरफ देखता रहा।

रोहन का ऐसा व्यवहार देखकर रचना का दिल घबरा गया। वो झटपट से रोहन के पास आयी। और सिर पर हाथ रखकर कहा "रोहन क्या हुआ बेटा?"

रचना ने देखा तो रोहन रो रहा था वो रोहन को बालकनी से उठाकर कमरे में लेकर आयी। और बोली "क्या हुआ रोहन तुम रो क्यों रहे हो, किसी ने तुम्हें कुछ कहा क्या?"

रोहन रोता हुआ माँ के गले से लिपटकर बोला "माँ! मेरे सब दोस्तों के पास बहन है तो मेरे पास क्यों नहीं? आज के दिन मेरे सब दोस्त राखी बांधकर आते है सिवाय मेरे"

माँ ! मुझे भी एक बहन लाकर दे दो, मैं पक्का वादा करता हूं, मैं अपनी बहन की हमेशा रक्षा करूंगा. उसको कभी रोने नहीं दूंगा।

बेटे की बात सुनकर रचना के दिल मे टीस उठी. उसने अपने पति अमर की तरफ देखा और सोचने लगी... बेटे को कैसे समझाये? कि उसकी मां उसके लिए बहन नहीं ला सकती।

शादी के दस सालों बाद बड़ी मुश्किल से आई.वी.एफ की मदद से तो रोहन का जन्म हुआ था। रचना के मायके और ससुराल में ऐसा कोई नहीं था जो रोहन को राखी बांध सके।

तभी अमर ने रोहन को बहलाते हुए कहा "रोहन बेटा मेरे हाथों में भी तो राखी नहीं बंधी। क्योंकि आप की तरह मेरे पास कोई बहन नहीं। जरूरी नहीं कि सबके पास सब कुछ हो।"

पापा की बात को अनसुना कर रोहन रोते हुए जिद करने लगा और कहा "लेकिन मुझे बहन चाहिए।"

रचना सोच ही रही थी कि क्या कहकर वो रोहन को मनाए। की तभी उसकी काम वाली बाई कमला की तीन वर्षीय बेटी खुशी ने अपने नन्हे नन्हे कदमों से कमरे में प्रवेश करते हुए अपनी तोतली भाषा में कहा "लोहन भैया, मैं बांध दूँ राखी, मैं हूं ना।"

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खुशी की बात सुनकर रोहन एक दम से चुप हो गया। और उसे अपनी गोद मे उठाकर बोला "तुम्हें राखी बांधनी आती है।"

खुशी "हाँ" में सिर हिलाकर अपने हाथों में ली राखी रोहन को दिखायी। जिसे देखते रोहन की आंखों में चमक आ गयीं।

उसने पलटकर रचना से कहा "माँ मैं खुशी को अपनी बहन बना लूँ।"

तब तक कमली आँचल में हाथ पोंछती भागती हुई खुशी के पीछे आयी और बोली " माफ कीजिएगा! मेमसाहब बहुत बोलती है ये बच्ची है इसको क्या पता हमारे आप में फर्क।"

"रोहन बाबा लाओ मुझे दे दो खुशी को, ये आपकी बहन नहीं बन सकती। ये राखी तो मैंने इसके जिद करने पर इसको चुप कराने के लिए 10 रुपये की बाजार से दिला दी थी। इसकी आपकी कोई बराबरी नहीं।"

रचना ने रोहन की तरफ देखा तो खुशी के गोद से हटते रोहन वापस उदास हो गया।

तभी रचना ने कहा "कमला! रुको।"

"कमला !अगर तुम्हें एतराज ना हो तो क्या खुशी रोहन को राखी बांध सकती है?"

"मेमसाहब मुझे क्यों एतराज होगा?"

मुझे तो लगा ,कही आप खुशी की बातों का बुरा तो नहीं मान गयी।

"उलटा अच्छा ही है जिंदगी भर के लिए ना सही कुछ दिनों के लिए ही सही इसको भाई बहन के रिश्ते का प्यार तो मिल जाएगा। वरना इस अभागन के भाग में भाई का प्यार कहा जिसको बाप का ही प्यार नहीं नसीब हुआ।"

"कमला, ऐसा कहाँ लिखा है कि गरीब लड़की किसी की बहन नहीं बन सकती? तू चिंता मत कर खुशी का नसीब बहुत अच्छा है। उसे जिंदगी में सब कुछ मिलेगा। आज से वो रोहन की बहन हुई।"

फिर उसने रोहन से कहा "रोहन चलो तैयार हो जाओ।"

कमला तू बच्चों को देख "मैं अभी आती हूं बाजार से"

रचना बाजार जाकर खुशी के लिए नए कपड़े और राखी के उपहार लेकर आयी। घर आकर रचना ने दोनों बच्चों को तैयार किया, राखी की थाली में राखी, रोली, अक्षत और आरती रखकर थाली को अच्छे से सजाया। फिर खुशी के हाथों रोहन को राखी बंधवाई अपनी कलाई पर राखी देखकर रोहन की खुशी का ठिकाना ना था। उसने खुशी को अपनी गोद में लेते हुए कहा "खुशी आज से तेरा ये भैया तुझे दुनिया की सारी खुशियाँ देगा। और जिंदगी भर तेरी रक्षा करेगा। ये तेरे भाई का तुझसे वादा है।"

तभी रोहन ने कहा "माँ! जरा हमारी फोटो तो लेना।"

रोहन की आवाज से रचना यादों से बाहर आयी। उसने दोनों भाई बहनों की फोटो खींची और फोटो खींचने के बाद कहा "अब चलो, तुम दोनों खाना खाने।"

तभी कमला ने कहा "मेमसाहब मैं आप सब की आजीवन कर्जदार रहूंगी। आप सब ने जो खुशी के लिए किया। वो आज के जमाने में कोई नहीं कर सकता।“

रोहन बाबा ने तो सचमुच भाई होने का सारा फर्ज निभाया। वरना मैं गरीब उसको इतना कहां पढ़ा लिखा कर काबिल बना पाती?

"कमला! रिश्ते सिर्फ नाम के लिए नहीं बनाये जाते।"

रिश्ते बनाकर निभाना भी पड़ता है। और क्या खुशी मेरी बेटी होती तो मैं उसे ना करती? वो बात अलग है कि मैंने बेटी को जन्म नहीं दिया। लेकिन खुशी को बेटी माना तो था। हम इस काबिल थे मैं और तेरे साहब दोनों नौकरी करते थे। इसलिए ये कर पाए और बिना तेरे साथ दिए भी ये सम्भव ना होता। क्योंकि पीछे से तेरे भरोसे ही तो छोड़ जाती थी मैं दोनों बच्चों को। मेरी तो ईश्वर से प्रार्थना है इनका ये प्यार यूँ ही जिंदगी भर बना रहे, अब चलो बच्चों के लिए खाना निकालते है। 

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