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तू अपना देख, मैं अपना देखूं
चल कुछ पन्ने तू फार कुछ मैं फेंकू
क्या हाल बना लिया हैं यार गरीबी का सफलता की खोज में
क्यों जिया मर मर के अपनी हर्षिता की खोज में
जला डाला बचपन यूं ही रो रो किताबों तले
क्यों अब इन सुखी दरस्तों पर आंसू पिघले
आ चल तुझे सिखा दूं कि जिंदगी क्यों हो गई बेवफा
क्यों अपने ही हो गए हैं आज तुझसे खफा
यार बुरा हैं नशा चाहे कोई भी कैसा भी और कभी भी
कुछ पंख तो बचाओ अपने अरमानों से की खोल पाओ पिंजरे की चाबी
आज अभी छोड़ नशा और कर ले प्यार जो कुछ हैं उससे
अब देख की तेरे कंधे किसी भी बोझ से न तरसे।।

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