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कर्म प्रधान जगत में जीव पंचभूत नश्वर स्थूल देह धारण कर आता हैं! जगत में आने के पार्श्व में मूलत एक कारण छुपा रहता हैं और वो हैं शेष रह गए पूर्व कर्मों का दंड अर्थात प्रारब्ध.!!

प्रारब्ध को पूर्ण करने अर्थात उसे भोगने के लिए जीव को जगत में बाध्य होकर आना पड़ता हैं! कर्मों के समक्ष हर कोई जीव बाध्य हैं, निर्बल हैं और शक्तिहीन हैं! स्थूल देह में आबद्ध जीवात्मा की स्थिति पिंजड़े में कैद पंछी की भांति हैं, जो अपनी आजादी के लिए भीतर फड़फड़ाता रहता हैं परंतु विवशता के आगे वह इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकता हैं..!!

पंचभूत देह की भी कुछ बाध्यताएं होती हैं, सीमाएं निर्धारित होती हैं, जिससे परे वो नहीं जा सकता अर्थात लांघ नहीं सकता हैं! सीमाओं के भीतर रहकर यह शरीर कार्यरत हैं; क्योंकि पंचभूत देह प्रकृति के नियमों से बंधा हुआ बाध्य हैं..!!

अत: कर्मों के अधीन यह देह नए कर्मों को संग्रह करती हुई वर्तमान संसार यात्रा (जीवन) को संपूर्णता देती हुई आगे की ओर अग्रसर निरंतर रहती हैं, जैसे आकाशगंगा में ग्रह नक्षत्रों का निरंतर गतिशील अवस्था में होना.!!

मन, बुद्धि, चेतना, ज्ञान, विवेक आदि सब सहायक हैं शरीर के, जो कर्म को क्रियान्वित करने में मदद करते रहते हैं! कर्मों के क्रियान्वित अवस्था में मनुष्य शुभ - अशुभ कर्मों के पायदान पर ऊपर नीचे चढ़ता हुआ रहता हैं! मन बुद्धि द्वारा शरीर कर्म करने लालायित रहता हैं और इस श्रंखला में मनुष्य अपने स्वार्थ सिद्ध हेतु, लालच के अधीन बाध्य हो कर दुष्कर्म को अंजाम देने में जरा भी नहीं हिचकिचाता हैं..!!

संसार में लंबे समय तक जिंदा रहने की तमन्ना हम सभी की रहती हैं, कोई मरना नहीं चाहता हैं! और इस तमन्ना के कारण हम अपना हित हेतु दूसरों का अहित कर बैठते हैं; क्योंकि हमें लम्बा जीने की तमन्ना जो हैं, जो एक मिथ्या भ्रम पाले हम गुरूर में घूम रहे हैं.!!

गुब्बारे में भरी हवा उसको हल्का करके ऊपर उड़ा दिया करती हैं और गुब्बारे को मिथ्या भ्रम यह हैं कि वो अपने उद्योग से उड़ रहा हैं! चींटी को भी कुछ ऐसा ही भ्रम पैदा हो जाता हैं जब बरसात ऋतु में उसके पंख निकल आते हैं! मेंढक का भी यहीं हाल हैं कि बरसात के जल से जैसे ही जमीं भीग जाती हैं, मेंढक बाहर निकल कर शोर मचाने लग जाया करते हैं.!!

संसार में आकर जिन्होंने भी उत्पात मचाया, धमाल किया और शरारत भरी जिंदगी जीने की कोशिश की, वक्त ने उचित वक्त आने पर उनकी धुलाई बराबर की हैं! इतिहास एवम पुराण इस संदर्भ में भरे पड़े हैं! वो लोग बर्बादी के मंजर में से गुजरे हैं, जो कभी स्वयं किसी के लिए बर्बादी का कारण बने थे.!!

क्योंकि कर्म एक दिन लौट कर अवश्य आते हैं; यह शाश्वत कठोर सत्य हैं!

जरा जानलो हाल उनका भी, जिन्होंने बुरा किया;

क्या हश्र हुआ होगा!

सह-मात लग गई हैं खेल में, पासे पसर गए हैं;

क्या जश्न हुआ होगा!!

जय मां भगवती..!

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