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रात का उल्लू तो मुझे उसकी यादों ने बना दिया है,
मुझे कलम का शिकार उसे लिखने की आदत ने बना दिया है,
यारों इश्क़ मुकम्मल होता तो मैं अल्फ़ाज़ों का हुज़ूर न होता,
कम्बख्त मुझे शायर तो उसकी नफरत ने बना दिया है,
दूरी का ये अकेलापन, खामोशी के शोरों ने बना दिया है,
मुझे अपराधी तो उसके भृम के दहशत ने बना दिया है,
यारों उसकी इस चाहत को किसी की नज़र न लगे,
क्योंकि मुझे शायर तो उसकी नफ़रत ने बना दिया है,
मेरी ये पसंद उसकी अदा ने बना दिया है,
मुझे कामियाब तो उसकी नापसंदी की चाहत ने बना दिया है,
वो मुझे यूँ ही बद्दुआ देती रहे,
क्योंकि शायर तो मुझे उसकी नफ़रत ने बना दिया है,
मेरी इतनी बड़ी पहचान तो उसकी हसरत ने बना दिया है,
उसकी करेले सी नज़र अंदाज़ी को मैंने उलझे अलफ़ाज़ का शरबत बना दिया है,
यारों वो मुझे शब्दों का बादशाह बनाने के लिए अनदेखा कर रही है,
आखिर मुझे शायर तो उसकी नफरत ने बना दिया है।