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चाह मेरी आँखों की यह है,
देखूँ अधरों पर मुश्कान,
चाह मेरे कानों की यह है,
सुनता ही रहुँ प्रभु गुणगान ।

चाह मेरे नाकों की यह है,
हर सांस में पनपें कृपानिधान,
जिह्वा की चाहत ऐसी है,
पल-पल जप लूं, सुन्दर प्रभु- नाम।

त्वचा की चाहत ऐसी है,
हर पल माँ का आभास मिले,
शरीर के सारे अंगों को,
पल-पल प्रभु सकाश मिले ।

मानव स्वरूप में प्रेषित हूँ,
दानव से क्षुब्ध और शोषित हूँ,
संहारक रुप में , राम कहाँ?
गज के त्राणक, नारायण कहाँ?

मेरे खून के एक- एक कतरा से,
जन-जन को खुशियाँ खूब मिले,
इन्सान कोई ना रुठे हमसे,
सबकी बगिया भरपूर खिले ।

अब चाह मेरी भी सुन गिरिधर,
मन दुखे कभी ना प्राणी को,
याचक न बनूँ जीवन में कभी,
लिखता रहूँ, सुखद-कहानी को,
लिखता रहूँ, सुखद-कहानी को । 

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