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मधुरेश एक प्रतिभावान छात्र था । वह जितना प्रतिभाशाली था उतना ही सौम्य और सुशील था । वह दशम् कक्षा में पढ़ता था । सभी शिक्षकों के आंखों का तारा भी था । उसके साथ एक लड़की भी पढ़ती थी। उसका नाम भारती था । नाम के अनुरूप ही वह सौन्दर्य की मलिका तथा अपनी सहेलियों की प्यारी थी। पता ही नहीं चला कि कब दोनों एक -दूसरे के प्रेम-पाश में बॅध गए । मूक प्रेम का परवान चढ़ने लगा । सरस्वती पूजा के दिन सायंकाल भारती धवल परिधान में अपनी सहेलियों के साथ आरती के समय अपने कोकिल आवाज में जब भजन गायी थी तो सारा वातावरण गुंजायमान हो गया था । मधुरेश आत्म विभोर हो गया। आज वह एक सुन्दर गुलाब का फूल उपहार स्वरूप देकर अपने प्यार का इजहार कर ही दिया। ऐसा लगा कि भारती शायद इस इन्तजार में पहले से थी । उसे ऐसा लगा कि आज उसे सारा जहाँ मिल गया । वह जब अपने घर गई तो बदली-बदली सी लग रही थी ।

रात को खाने के मेज पर वह मधुरेश की प्रशंसा करते थक नहीं रहीथी। उसके माता-पिता भी उससे मिलने को उत्सुक हो गए । अगले रविवार को मधुरेश को खाने पर बुलाने का आमंत्रण भिजवा दिए । मधुरेश अपने व्यवहार से उनलोगों को भी प्रभावित कर दिया। शायद नियति को यह मंजूर नहीं था । दशम् की परीक्षा में मधुरेश पूरे जिला में टाॅप किया था वहीं भारती भी तिसरे स्थान पर रही । इसी बीच भारती के पिताजी का ट्रान्सफर बैंगलोर हो गया ।अब उसे उस शहर को छोड़ना पड़ेगा। दोनों एक पार्क में मिले और बोले कि बस इतने दिनों की यादों के सहारे ही आगे समय काट लूंगा ।

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दोनों आंसुओं की धार में अपनी संभावित विरह वेदना को महसूस करते रहे। आखिर भारती शहर छोड़ कर चली गई और मधुरेश भी दिल्ली रवाना हो गया । इधर +2 करने के बाद मधुरेश आई. आई. टी. करने के बाद अच्छे पैकेज में नोकरी करने लगा और भारती भी एक आई. टी. सेक्टर में सिस्टम मैनेजर के रुप में कार्यरत हो गई । आज दोनों को पृथक हुए सात वर्ष बीत चुके थे। इस बीच मधुरेश के पिताजी तीन वर्षों से उसे शादी करने की जिद्द कर रहे थे लेकिन मधुरेश उस पर कभी ध्यान नही देता ।

एक दिन मधुरेश की माँ मधुरेश के गर्म कपड़ों को सुखाने के लिए पेटी को खोली तो उसमें से एक लिफाफ मिला जिसमें भारती की लिखी हुई एक चिट्ठी और उसकी एक तश्वीर रखी हुई थी । माताजी को मामला समझते तनिक भी देर नहीं लगी । वह उसे लेकर अपने पति के हाथ में दे दी । अब कहीं बात पक्की करके कहीं उसकी शादी करवा देनी है । उसके जन्म दिन के दिनही उसके माथे में सेहरा बंधवा देना है नहीं तो लड़का हाथ से बेहाथ हो जाएगा। आखिर उसका जन्मदिन आ ही गया । मधुरेश प्लेन से उसी दिन पहुचा । जन्मदिन की जबरदस्त तैयारी की गई थी। मधुरेश अपने पापा से पूछा कि आप मुझे गिफ्ट में क्या देंगे? उन्होंने कहा- मैंआशीर्वाद के सिवा और दे ही क्या सकता हूँ। रीटायर्ड जो हो गया हूँ। केक काटने का रश्म हो चुका था। लोग पूरा इन्ज्वाय कर रहे थे। तभी पिताजी मधुरेश के हाथ में सिन्दूर की डिबिया थमाते हुए बोला कि बेटा मेरी यह अन्तिम मुराद पूरा कर दो । सामने सजी-संवरी एक दुल्हन घूंघट लिए खड़ी थी ।

मधुरेश का हाथ-पांव कांपने लगा । वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। कुछ देर सोचने के बाद वह अपने माता- पिता के लिए अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गया। वह अपने कांपते हाथों से दुल्हन की मांग को सिन्दूर से भर दिया। आशीर्वचनों और बधाइयों से हॉल गुंज गया। जब दुल्हन घूंघट उठा कर मधुरेश के पांव छूए तो भारती को देख कर मधुरेश को जन्नत का नजारा दिखने लगा। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह खुशी के मारे रो पड़ा । वह बोल उठा धन्य है मेरे माता- पिता जिन्होंने मेरे जीवन का सबसे अनमोल उपहार दिया है, जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था । देव तुल्य माता पिता को शत-शत नमन ।।

बच्चों की "कुछअनकही सी बातों को,

माँ- बाप बखूबी समझते हैं,

बिनु मांगे देते वह नजराना,

जिसे कहने में बच्चे बहुत सहमते हैं। "

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