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कहां से कहां आ गए हैं हम, 
नए युग में ख़ुद को भुला रहे हैं हम,
 पहले थी इंसानियत भरी दया भावना की दीवार, 
आज भाई-भाई कर रहा है एक दूसरे पर अत्याचार, 
पहले शिक्षा का मूल मंत्र था घर संसार, 
आज शिक्षा की डोरी केवल प्रॉफिट व्यापार,
 पहले दूर मीलों तक सफर करती कदमों की चाल, 
आज चलने के लिए करते मोटर गाड़ी का इस्तेमाल, 
पहले हर दिन सुहावना होता था, 
आज केवल दिन गुजारना पड़ता है, 
पहले किसान की खेती थी, 
अब मिशन खेती बन गया है, 
पहले संदेश डाक पत्र हुआ करते थे,
 आज स्मार्टफोन का जमाना है,
 पहले मेहमान नवाजी का इंतजार था, 
आज अपनों का ही जाने का इंतजार है,
 पहले नमक रोटी खाने में थी प्रसन्नता, 
आज ढेरों व्यंजनों को पाकर भी संताप है,
 डूबता जा रहा कल का भविष्य, जिसमें रहता आज का संसार है।

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