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एक लड़की/ महिला संस्कारी कब मानी जाती है ? वो क्या मापदंड हैं जिनसे हम किसी लड़की/ महिला को संस्कारी घोषित करते हैं। चलिए आज मेरे साथ संस्कारी शब्द को कुछ अलग स्वरुप में समझते हैं।

सबसे पहले हम संस्कार शब्द को समझेंगे। संस्कार हमारे पूर्वजों व यूँ कहिये हमारे धर्म का वह ज्ञान है जो हमें दिशा प्रदान करता है। सही संस्कारों का ज्ञान होने से हम अपना जीवन सही तरीके से जी सकते हैं।

हमें अपने पूर्वजों से अनेक प्रकार के संस्कार मिलते हैं खासकर हम औरतों को जैसे जो औरत खाना अच्छा बनाती है वो संस्कारी है , जो घर के सारे काम बिना शिकायत के करती है वो संस्कारी है , जो सर पर पल्ला रखती है वो संस्कारी है आदि आदि।

अब यहां पर मैं कुछ सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ। अगर कोई औरत सर पर पल्ला रखती है मगर हर समय अंदर ही अंदर बुरे विचार या दूसरों के लिए अपशब्द बोलती है तो क्या वो संस्कारी है ? अगर कोई लड़की/ महिला खाना अच्छा बनती है मगर हमेशा अपने मुख से दूसरों के लिए बद्दुआ निकालती है तो क्या वो संस्कारी है ? अगर कोई लड़की/ महिला हमेशा दूसरों को देखकर जलती है तो क्या वो संस्कारी है ?

अब जब मैंने ये सारे सवाल खुद से पूछे तो मुझे मेरे मन ने अलग ही जवाब दिए। यहां मैं यह बताना चाहूंगी की आखिर ये सवाल मेरे मन में आए कैसे। दरअसल सब मुझे बोलते हैं की मैंने अपनी बेटी को बिगाड़ दिया है क्यूंकि मैंने उसे खाना बनाना नहीं सिखाया या घर का कोई और काम नहीं कराया। इन सब बातों से जब मैंने अपने अंदर खोजा तो पाया की ये लोग कितने नादान हैं। संस्कारी होने के लिए खाना बनाना या पल्ला रखना आवश्यक नहीं।

असली संस्कार वो हैं जो हमें वो शिक्षा दें जिनसे हम अपनी सोच को विकसित कर सकें। मेरे सोच जो मुझे मेरे माता पिता से मिली उसके अनुसार मेरी नज़र में जो संस्कारी की परिभाषा है वही मैं अपनी बेटी को सिखाती हूँ। मैं उसे समझाती हूँ - कभी किसी के लिए बुरा नहीं सोचना और न बोलना , हमेशा अपनी थाली को ही देखना , बुरे वक़्त मैं अपनों का साथ कभी मत छोड़ना मगर गलती होने पर समझना भी , चाहे खाना बनाना न आए मगर कभी किसी के मुँह का निवाला नहीं छीनना , चाहे सफाई न करनी आए मगर किसी और के घर या सड़क पर कूड़ा नहीं फेंकना।

ये और ऐसी कितनी ही बातें हैं जो मैं संस्कार के तौर पर अपनी बेटी को देना चाहती हूँ। इसलिए अगर कोई बोलता है कि कुछ नहीं सिखाया न संस्कार दिए तो तरस आता है ऐसे लोगों और उनकी सोच पर। मगर इसमें गलती उनकी भी नहीं। सदियों से चली आ रही घिसी पिटी परम्परा इसके लिए ज़िम्मेदार है जहाँ एक औरत को घर, खाने , पूरे कपड़े पहनने जैसी बातों से ऊपर उठने ही नहीं दिया जाता।

अब सही समय है संस्कार शब्द की परिभाषा को थोड़ा सा बदलने की , उसमें थोड़े परिवर्तन की। तभी सही मायने मैं संस्कार शब्द का अर्थ सार्थक होगा।

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