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समय किसी के लिए नहीं रुका,
समय चलता नहीं — बस भागता गया।
पलभर में बचपन बीत गया,
चाहकर भी वो पल ठहर ना पाया।

वो खूबसूरत लम्हे बीत गए ऐसे,
जैसे कल की ही कोई बात हो वैसे।
अभी तो चलना ही सीखा था,
फिर ये दुनिया की दौड़ में कैसे आ गए?

वो स्कूल का टिफिन छोड़,
क्यों लगी है मेस में होड़?
स्कूल का होमवर्क लगता था पहाड़,
अब असाइनमेंट्स के नीचे दबे हैं आज।
एक जैसे यूनिफ़ॉर्म में मुस्कुराने वाले वो बच्चे,
खो गए हैं इस रंगीन दुनिया की भीड़ में।

सुलझा हुआ जीवन,
कहाँ उलझ गया?
दुनिया की भागदौड़ में हमने,
अपना सुनहरा बचपन खो दिया।

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