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यज्ञ से जन्मी यज्ञसेनी थी,
द्रुपद राजा की पुत्री वो द्रौपदी थी|
अग्नि जिसकी भाग्यरेखा थी,
पांचाल नरेश की पुत्री वो पांचाली थी|
विवाह हुआ जगत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर से,
परंतु विधि का विधान कुछ और था|
माता कुंती के वचन रक्षा करते हुए,
पांच पांडवो से जोड़ा उसने संबंध था|
ये तो बस आरंभ था,
होने वाला बड़ा षड्यंत्र था।
जब पाया युधिष्ठिर ने द्युत का न्यौता,
क्षत्रिय होने के नाते किया निमत्रण स्वीकार,
शकुनि के साथ मिलकर दुर्योधन ने किया छल,
पांडवो का सारा हर लिया बल।
दास बने वो आधर्मी दुर्योधन के,
हाय! धर्म की हुई बड़ी हार थी।
इतने पर भी दुर्योधन ना हुआ शांत,
किया युधिष्ठिर को विवश,
दांव पर लगी अब द्रौपदी थी।
धर्म के नाम पर, वो लगी थी दांव पर,
हुआ उसका घर अपमान था।
निर्वस्त्र करने की इच्छा से,
दुर्योधन ने अपनी सीमा लांघी थी,
कुरूवंश के अंत की ये तो शुरुआत थी।
पर सहायता मिली श्री कृष्ण की,
द्रौपदी की लाज बची थी।
अधर्मियो से भरी उस सभा में,
द्रौपदी हुई अपमानित थी।
क्या अपराध था उसका?
क्यों हुआ इतना बड़ा अन्याय?
यह सवाल आज तक पूछा जा रहा है,
की क्यों हर बार नारी ही सहती अत्याचार है?
भीष्म, द्रोण जैसे वो लोग क्यों अक्सर चुप रहते है?
क्या नारी का स्थान यही?
क्या नारी का सम्मान यही है?
लेकिन, जब जब नारी का हुआ अपमान,
तब तब लड़ा गया महाभारत युद्ध।
नारी ही शक्ति, नारी ही भक्ति,
नारी ही इस जग की निर्माता।
नारी का अपमान नही, सम्मान करो,
क्योंकि वही है जगत की भाग्यविधाता।

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