अभी तो थामकर हाथ, चलना सिखाया था,
आज वही हाथ छोड़, विदा कर रहे हो।
हे पिता, ये तो तू ही जाने
तेरा हृदय है कितना मजबूर... या मजबूत।
कभी चोट मुझे लगी, तो आह तुझसे निकली,
पर कभी दर्द तेरा, तूने दिखाया नहीं।
तो आज विदाई की इस घड़ी में,
ये अश्रुधारा क्यों छिपाई नहीं?
हे पिता, ये तो तू ही जाने
तेरा हृदय है कितना मजबूर.... या मजबूत।
सब कुछ सिखाया तूने जीना, बढ़ना, मुस्कुराना,
पर खुद से दूर रहना, कभी सिखाया नहीं।
क्या यही थी शिक्षा की अंतिम परीक्षा?
तेरी गोद से उठकर किसी और घर को अपनाना?
इन रस्मों-रिवाजों की भीड़ में,
कहीं खो न जाए ये हमारी प्रीति।
हे पिता, ये तो तू ही जाने
तेरा हृदय है कितना मजबूर...