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हे वृषभानुनंदिनी,
त्याग की पूर्णता हो तुम,
प्रेम की पराकाष्ठा हो तुम,
ममता की मूर्त हो,
श्रीकृष्ण की पूरक हो।

वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी हो तुम,
संपूर्ण जगत की स्वामिनी हो तुम।
वृषभानु की लाड़ली,
कृष्ण की प्राणप्रिया,
करुणा का सागर हो तुम।

भाव की अधीश्वरी हो तुम,
भक्ति की आदि शक्ति हो तुम,
तुमसे ही श्रीकृष्ण की लीला है,
तुमसे ही सम्पूर्ण भक्ति-सक्ति है।

भाद्रपद शुक्ल की तिथि अष्टमी,
जब ये धरा हुई धन्य थी,
नन्ही राधा की किलकारियां,
भानु महल में गूंजी थी।
प्रियतम को देखे बिन जिसने,
खोले नहीं अपने नेत्र थे।

प्रियतम के सुख के लिए, 
किया जिसने मान था,
वह माननी श्री राधा थी।
सदैव रही जो किशोरी थी।

रास विलासिनी, रस विस्तारिणी 
कृष्ण की स्वामिनी, ऐसी हमारी राधा प्यारी।

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