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रुक जाओ! ज़िंदगी की भागदौड़ से,
थोड़ा वक्त अपने लिए निकाल लो।
समय का चक्र तो घूमता रहेगा,
पर तुम… कुछ पल ठहर जाओ।

सोचो—मन की गहराइयों में उतरकर,
सुनो—अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को।
कौन हो तुम? कहाँ से आए हो?
क्या जो दिख रहा है वही सच है?
या, जो सच है वो हम देख ही नहीं पा रहे है?

ऐसे कितने ही प्रश्न होंगे,
जिन्होंने किसी न किसी क्षण
तुम्हें भीतर तक विचलित किया होगा।
अनगिनत अनसुलझे प्रश्नों के
उत्तर खोजने की कोशिश भी की होगी।

पर यदि अभी तक नहीं किया—
तो व्यर्थ है यह दुर्लभ मानव जन्म।
मत गँवाओ इसे…
क्योंकि इंसान का जन्म केवल जीने के लिए नहीं,
जागने के लिए होता है।

ठहरो, 
खोजो वह सत्य जो आँखों से नहीं,
चेतना से देखा जाता है।
सोचो...पर बाहरी तौर पर नहीं
मन की गहराई में उतरकर।

और फिर जियो—
ऐसे कि हर श्वास अर्थ बन जाए,
हर दिन साधना बन जाए,
और यह जीवन…
सिर्फ बिताया न जाए—
अर्थपूर्ण हो जाए।

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