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ब्लॅड का प्रैशर शूगर का प्रहार। फलने लगा है रोगों का बाजार।
आराम के जंगल में तन उलझा। कूलर का पानी ए सी की बहार।
दवाईयां हर घर में आने लगी है। खुलने लगा है डाक्टर का द्वार।
तन मन से हर आदमी दुखी है। नानक दुखियों का सब संसार।
दवा पर निर्भर होता गया बंदा।
होता नहीं रहा फिर भी उपचार।
सैर करता न साईकिल चलाता। ले कर आया घर में मोटर कार।
आर्युवेद पर भरोसा कम करता। होता नहीं इक पल भी इंतजार।
सोहल मरीज लेता फालतू दवा। चल पड़ा हम से सबका व्यापार।