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कैसी बाजी कब चाल चली।
 कैसे पिटे कहां खा मार गए।

बिन ज्ञान के समंदर में उतरे।
 बीच मझधार डूबे न पार गए।

मोहरे सब पड़े धरे रह गए।
 वक्त पे टूट गए बेकार गए।

नांगे आना नांगे चले जाना।
हारे जुआरी हाथ झार गए।

वादा था साथ निभाने का।
 न जाने कहां चले यार गए।

आस थी जो काम आएंगे।
 वक्त पे वो सब बिसार गए।

सोहल गैरों में कहां दम था।
 अपने ही हम को मार गए।

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