Image by Enkhtamir Enkhdavaa from Pixabay कैसी बाजी कब चाल चली।
कैसे पिटे कहां खा मार गए।
बिन ज्ञान के समंदर में उतरे।
बीच मझधार डूबे न पार गए।
मोहरे सब पड़े धरे रह गए।
वक्त पे टूट गए बेकार गए।
नांगे आना नांगे चले जाना।
हारे जुआरी हाथ झार गए।
वादा था साथ निभाने का।
न जाने कहां चले यार गए।
आस थी जो काम आएंगे।
वक्त पे वो सब बिसार गए।
सोहल गैरों में कहां दम था।
अपने ही हम को मार गए।
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