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अहं त्वयि स्निह्यामि।
ये शब्द जैसे हल्के से छूते हों हवा को,
जैसे अधूरी बातों को मिल जाए किनारा।

तेरे होने से,
हर सुबह में एक गीत बज उठता है,
हर रात चुपचाप मुस्कुराती है।
तेरी आवाज़,
जैसे ठहरे हुए पानी में कंकड़ का गिरना,
मेरा सारा अस्तित्व लहरों में बिखर जाता है।

तू जब देखता है,
तो लगता है जैसे मैं खुद को देख रहा हूं,
तेरे सवालों में मिलती है मेरी हर तलाश।

तेरी हंसी,
जैसे पेड़ों की छाँव में छुपा हुआ सूरज,
जो कभी आँख मिचौली खेलता है,
तो कभी सीधा दिल पर दस्तक देता है।

अहं त्वयि स्निह्यामि।
कहने को बस कुछ शब्द हैं,
पर इसके पीछे छुपा है एक पूरा ब्रह्मांड,
जहां हर तारा, हर आकाशगंगा
सिर्फ तेरी ओर खिंचती है।

मैंने सोचा था प्यार मुश्किल होता है,
पर तेरे साथ सब कुछ सरल है,
जैसे तितली को फूल तक पहुंचने के लिए
किसी नक्शे की ज़रूरत नहीं।

तेरी आंखों में एक सवाल है,
और जवाब भी,
दोनों में खुद को खो देना चाहूंगा।

अहं त्वयि स्निह्यामि।
यह सिर्फ प्रेम नहीं,
यह मेरी सांस है,
मेरा होना है।  

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