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रात है... या मेरी रूह का अंधेरा,
दीवारों पर साये रेंगते हैं,
जैसे मेरी तन्हाई का मज़ाक बना रहे हों।
तेरे बिना ये कमरा कब्र बन चुका है,
जहां मैं हर रोज़ ज़िंदा दफ्न होता हूँ।
मैंने दोस्तों के चेहरों को भूलना शुरू कर दिया है,
उनकी हँसी अब मेरे कानों को चीरती है।
खुशियों का नाम सुनता हूँ तो दिल में खरोंच उठती है,
जैसे कोई पुराना ज़ख्म फिर से रिसने लगा हो।
तू नहीं आई,
पर तेरी यादें आकर मेरी छाती पर बैठ जाती हैं|
जैसे किसी बंजर पेड़ पर बैठा काला कौवा,
जो जाने कब तक टिका रहेगा।
मैंने सोचा था इश्क़ खूबसूरत होता है,
पर ये कैसा प्यार है जो,
दिल को चीर कर खून से लथपथ कर गया?
मैंने अपनी रगों में बहते दर्द को महसूस किया,
जब हर धड़कन ने तेरा नाम लिया।
हाँ, मैं तुझे याद करके ही सांस लेता हूँ,
तेरा नाम मेरी नब्ज़ में पिघलता रहता है।
रात जब चुप होती है,
मैं अपने ही सिसकने की आवाज़ से डर जाता हूँ।
शायद इश्क़ की ये मौत ही मेरी ज़िंदगी है।
हाँ, मैं तुझे याद करके सबको भूल चुका हूँ,
और शायद खुद को भी।
तेरी आँखों की गहराई में डूबा था कभी,
अब वो अंधेरे मेरी रूह पर क़ब्ज़ा किए बैठे हैं।
तेरे बिना ये दुनिया बेमानी लगती है,
हवा सांस देती है, पर मैं ज़िंदा नहीं।
मैंने चाँद से पूछा था तेरा पता,
वो चुपचाप काले बादलों में छिप गया।
सितारे भी अब जलते नहीं मेरे लिए,
शायद उन्हें मेरी तन्हाई से डर लगने लगा है।
तेरी आवाज़ मेरे भीतर गूँजती है,
जैसे वीराने में बजती घंटियाँ,
हर गूँज एक नश्तर बनकर चुभती है,
फिर भी मैं इस दर्द से इश्क़ करता हूँ,
क्योंकि ये तेरी निशानी है।
मैंने तुझे पाने के लिए ख़ुद को खो दिया,
तेरी यादें मेरी धड़कनों की दीवारों पर लिखी हैं,
जिन्हें कोई मिटा नहीं सकता।
रातों को जागकर मैंने उन यादों को सींचा है,
जैसे बंजर ज़मीन पर कोई आख़िरी फूल उगाने की कोशिश करता है।
मैं तुझसे अब भी मोहब्बत करता हूँ,
इस कदर कि अपने आँसुओं को भी
तेरे नाम की नज़र कर देता हूँ।
हाँ, मैं तेरी याद में सबको भुला चुका हूँ,
खुदा से भी, ख़ुद से भी।  

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