प्रलोभन के पथ पर, चल पड़ता है इंसान, प्रलोभन के पथ पर, चल पड़ता है इंसान,
झूठ को अपनाता है, मानता है पहचान।
सच का भार छोड़, भ्रम में खोता है,
आत्मा का उजियारा, अंधेरे में डूब जाता है।
क्योंकि आसान है झूठ, मीठी सी एक प्यास,
सच्चाई कठिन है, उसका राह दूभर और उदास।
इंसान दौड़ता है परछाईयों के पीछे,
सच को नकारता, छलना को सींचे।
यही तो है अव्यवस्था, मन की विडम्बना,
हर कदम पर बिछी झूठ की बिछावन।
प्रलोभन में झुककर वो खुद को हराता है,
हर जीत में, भीतर से खो जाता है।
जो स्थाई नहीं है, वही लगती है सच्ची,
छल के इस बवंडर में, खोजता है स्थिरता की कच्ची।
जब आँखें खुलती हैं, पर देर हो चुकी होती है,
हर सत्य की तलाश अब धुंधली हो चुकी होती है।
क्या यही है जीवन का सच्चा मार्ग?
या फिर सच्चाई में है कोई अनकहा स्वर्ग?
इंसान सोचता है, फिर रुक जाता है,
पर प्रलोभन में पड़कर, वही राह अपनाता है।
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