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वर्षों पहले देखा था उसे पहली बार,
सर्द हवा में खिलती धूप सी थी वो।
उसकी आँखों का झील सा नीलापन,
अब भी मेरी स्मृतियों के आँगन में
लहरों की तरह हिलोरें लेता है।
हर वर्ष ठानता हूँ
इस बार विदा दूँगा अपने मन को,
अब नहीं बुनूंगा उसके सपनों के जाल,
अब नहीं खोजूंगा उसकी छवि
भीड़ में किसी अजनबी चेहरे पर।
पर फिर भी...
तीसरे फरवरी की इस रात में,
आँखें आँसुओं से भर जाती हैं।
क्योंकि सच तो यह है,
कि मैं अब भी देखना चाहता हूँ उसकी आँखें,
सोचता हूँ शायद किसी दिन
वो भी मुझ पर वैसे ही नज़रें टिकाएगी
जैसे मैंने हर पल उसे देखा है।
वर्षों बीत गए
हर नए वर्ष से उम्मीद लगाता हूँ,
"अब मैं आगे बढ़ जाऊँगा,"
पर प्रेम ऐसा नहीं होता
जो समय की दीवारों से टकरा कर ढह जाए।
वो नहीं जानती,
पर मैं जानता हूँ,
कि एकतरफा प्रेम भी प्रेम होता है।
और शायद यही मेरी सबसे सुंदर पीड़ा है।
वो पास नहीं फिर भी हर साँस में बसती है,
जैसे धड़कन जानती हो कि लौटेगी नहीं फिर भी इंतज़ार करती है।
वो एक पल की नज़र थी,
पर मैंने उम्र भर की प्यास मान ली।
वो इत्तेफ़ाक़ से मिली थी,
पर अब हर साँस उसके नाम का इंतज़ार करती है।
चाँदनी से कह दिया मैंने,
तुम मत आना आज 
क्योंकि वो अब भी मेरे अंधेरों में उजाला बनकर रहती है।

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