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वर्तमान युग में, मानसिक स्वास्थ्य किशोरों और युवाओं के लिए एक गंभीर और जटिल समस्या बन गई है। उन पर शिक्षा का भारी दबाव, सामाजिक उम्मीदें, मोबाइल और इंटरनेट की लत, नींद की कमी और आत्म-संदेह जैसी कई समस्याएँ मानसिक असंतुलन का कारण बन रही हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए, भारत की प्राचीन जीवनशैली प्रणाली — योग — एक प्रभावी उपाय के रूप में सामने आती है। योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं है; यह मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने की एक विधि है, जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से शांति और संतुलन प्रदान करती ।

योग शब्द संस्कृत के “युज” धातु से निकला है, जिसका अर्थ है जोड़ना। यह जुड़ाव केवल शरीर और मन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा के साथ एक संबंध स्थापित करने की भी बात करता है। योग की जड़ें हजारों साल पहले भारत में फैली हैं और इसके गहरे सिद्धांतों का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, भगवद्गीता, महाभारत और योगसूत्रों में किया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि योग केवल पतंजलि के सिद्धांतों तक सीमित नहीं है; गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के दौरान मानसिक संतुलन और कर्तव्य की जिम्मेदारी के लिए योग का महत्व बताया। पतंजलि के अष्टांग योग में आठ महत्वपूर्ण अंग शामिल हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनमें से प्राणायाम, ध्यान और धारणा का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब हम प्राणायाम के माध्यम से अपनी श्वासों को नियंत्रित करते हैं, तो इससे हमारे मस्तिष्क में शांति और संतुलन स्थापित होता है। ध्यान हमारी सोच को वर्तमान क्षण पर केंद्रित करने में मदद करता है, जिससे मन की बेतरतीबी कम होती है और एकाग्रता तथा भावनात्मक संतुलन में वृद्धि होती है।

आधुनिक विज्ञान अब इस प्राचीन भारतीय परंपरा की महत्वपूर्णता को मान्यता दे रहा है। मनोविज्ञान और मस्तिष्क विज्ञान के अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि योग का अभ्यास करने से मस्तिष्क में कोर्टिसोल, जो एक तनाव हार्मोन है, का स्तर कम हो जाता है। इसके साथ ही, सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे “खुशी के रसायनों” का स्तर बढ़ता है। न्यूरोप्लास्टिसिटी का सिद्धांत यह दर्शाता है कि मस्तिष्क जीवन के सभी चरणों में नए अनुभवों के अनुरूप अपने आप को बदल सकता है। योग और ध्यान मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं, जिससे किशोरों की एकाग्रता, निर्णय लेने की क्षमता और भावनात्मक संतुलन में सुधार होता है।

कई अध्ययन और कार्यक्रमों ने योग के फायदों को प्रमाणित किया है। मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि जो छात्र रोजाना 30 मिनट योग करते हैं, उनमें तनाव का स्तर कम होता है, पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ती है, और आत्मविश्वास में सुधार होता है। उत्तर प्रदेश सरकार और आयुष मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘स्कूल योग कार्यक्रम’ में हजारों छात्रों ने हिस्सा लिया और उन्होंने अनुभव किया कि योग ने उन्हें परीक्षा के समय मानसिक शांति और आत्मनियंत्रण प्रदान किया। एक काल्पनिक मगर यथार्थपूर्ण उदाहरण इसे और स्पष्ट करता है। दसवीं कक्षा का छात्र राहुल परीक्षा के दबाव से जूझ रहा था। उसकी नींद कम हो गई थी, सिर में लगातार दर्द रहता था और उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा था। स्कूल की योग शिक्षिका ने उसे कुछ सरल योगाभ्यास सिखाए, जैसे अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और शवासन। मात्र तीन हफ्तों के भीतर, उसने मानसिक स्पष्टता, बेहतर ध्यान और गहरी नींद का अनुभव करना शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप, उसका प्रदर्शन भी बेहतर हुआ और उसने पहले से ज्यादा शांत और आत्मविश्वासी महसूस करना शुरू कर दिया। आज के युवा वर्ग को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से एक प्रमुख समस्या मोबाइल और सोशल मीडिया की बढ़ती लत है। यह न केवल समय का दुरुपयोग करती है, बल्कि मानसिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है। इससे नींद की गुणवत्ता में गिरावट आती है, अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है, और बेतरतीब व्यवहार में वृद्धि होती है। हालांकि, योगाभ्यास के जरिए इस तकनीकी आदत को नियंत्रण में लाया जा सकता है, क्योंकि यह मन को आंतरिक रूप से केंद्रित होने की कला सिखाता है।

किशोरों और छात्रों के लिए योग को जीवनशैली में शामिल करना अत्यंत आवश्यक है। यदि वे प्रतिदिन केवल १५-२० मिनट भी योग और ध्यान करें, तो उनका मानसिक संतुलन स्थिर रहेगा। सुबह उठकर कुछ देर सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और ध्यान करना, और रात्रि में योगनिद्रा का अभ्यास उन्हें मानसिक रूप से शांत और तरोताज़ा रखेगा। स्कूलों में भी योग की नियमित कक्षाएँ आयोजित की जानी चाहिए जिससे बच्चों में यह आदत बचपन से ही विकसित हो सके। योग केवल मानसिक शांति प्रदान करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मानसिक ताकत का स्रोत भी है। यह युवाओं को आत्म-निरीक्षण, आत्म-स्वीकृति और आत्म-उन्नति के लिए प्रेरित करता है। जब एक छात्र योगाभ्यास करता है, तो वह केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं करता, बल्कि अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए भी आत्म-चिंतन करता है। वह बाहरी जगत के शोर से दूर हटकर अपने भीतर के आत्मविश्वास की आवाज़ को सुनना सीखता है। यही योग का असली उद्देश्य है — सिर्फ शरीर को लचीला बनाना नहीं, बल्कि मन को स्थिर और आत्मा को ऊर्जावान बनाना। योग न सिर्फ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह आज के समय की एक अनिवार्य आवश्यकता भी बन गया है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की बढ़ती संख्या, विशेष रूप से युवा वर्ग में, यह दर्शाती है कि केवल दवाएँ या परामर्श समाधान नहीं हैं। हमें एक ऐसी जीवनशैली अपनानी होगी जो संतुलन, संयम और शांति को बढ़ावा दे। योग एक ऐसा साधन है जो हमें बाहरी सफलता के साथ-साथ आंतरिक शांति की ओर भी अग्रसर कर सकता है।

पतंजलि के शब्दों में कहा गया है, “योगः चित्तवृत्ति निरोधः,” जिसका मतलब है कि योग का मूल उद्देश्य मन की चंचलता को नियंत्रित करना है। जब मन स्थिर होता है, तब व्यक्ति अपने जीवन की सबसे बड़ी चुनौती — खुद को जानने की — में सफल हो सकता है। इस दृष्टिकोण से, योग आज के युवाओं के लिए एक मित्र, मार्गदर्शक और मानसिक स्वास्थ्य का सहारा बन गया है।

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