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आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था
जब उसे पता चला की उसका अंश
एक नन्हा सा जान आने वाला है
उसकी दो के संख्या को तीन में बढ़ाने वाला है
बहुत खयाल रखती थी वो अपना मेरे खातिर
दर्द भी वो सहे जा रही थी मेरी खातिर
मां दर्द में खुद को सता रही थी
पर मुझ नन्ही सी जान पर खूब प्यार लूटा रही थी
वक्त भी बढ़ रहा था
अब तक मां ने मुझे रूई के फाहे की तरह संभाल रखा था
अपनी नाजुक सी ममता से मुझे इतने महीने पाल रखा था
हां अब वक्त बढ़ रहा था और मां का दर्द भी
ममत्व का प्रेम भी और ममता का फर्ज भी
समय की सुइयां अपनी गति से चल रही थी
कभी कभी तो इस ममत्व को देखकर
वो अपनी आंखें मूंद लेती थी
इस असहाय दर्द के बीच कभी कभी
मेरी शारीरिक गतिविधियां मां के मन को बड़ा सुकून देती थी
ऐसे मेरा मां के साथ और मां का मेरे साथ कुछ महीना बीत गया
अब तक मैं भी खूब हलचल करना सीख गया
खाना भी नहीं खाया जाता है उससे
फिर भी मेरे खातिर वो खाती है
मैं भी सोचता हूं कभी कभी की
जब मैं दुनिया में आऊंगा तो मां कितना प्यार करेगी
जो मां अभी से इतना प्यार लुटाती है
वो भी दिन निकट आ रहे थे
जब मां मुझे अंधेरे से रोशनी में लाने वाली थी
अपने कोख से उठा के अपनी छाती से लगाने वाली थी
थोड़ी सी घबरा रही थी मां
पर वो चिंता भी मेरे खातिर थी
खुद के दर्द को मां कभी नहीं जताती थी
मुझको लेकर ऐसा होगा वैसा होगा
की लाल मेरा कैसा होगा
अपने मन में हजारों सवाल भर लेती थी
जो होती कभी अकेली
तो मां मुझसे हजारों बातें कर लेती थी
इसी प्रेम में पलकर नौ महीने की घड़ियां बीत गई
आज हार गया था जग सारा
और मेरी मां की ममता जीत गई
आखिर आ ही गया वो दिन जब मां मुझे दुनिया में लाने वाली थी
एकांत में भी मां मुझे अपने आंचल में छुपाने वाली थी
आज सुबह से ही मां का दर्द कुछ ज्यादा था
पर अपने बच्चे के लिए सबकुछ लगता आधा था
आज मां अस्पताल पहुंच आई थी
क्यूंकि आज एक औरत की मां से लड़ाई थी
अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी मां दर्द से कहार रही थी
फिर भी अपनी हर सांस में अपने लाल को ही पुकार रही थी
अब मां के दर्द की कहारें ज्यादा बढ़ रही थी
आज एक मां अपने बच्चे के लिए असहाय दर्द से लड़ रही थी
जिसे मैं समझता था अपना छोटा सा घर
आज वो पूरा जहां निकला
रोया मैं भी हल्का हल्का सा
और मेरे मुंह से पहला शब्द ' मां ' निकला
मां मां मां मां मां
बेसुध होकर मां थी लेटी
ना पूछा उसने बेटा है या बेटी
मेरी नईया को पार लगाने
मां बनकर पतवार आ गई
जा लिपटा जब मैं उसके सीने से
मानों मां के लिए पूरी बहार आ गई
ना जाने कैसा जादू था उसके आंचल में
मैं छिपते ही उसमे सो गया
रहा नहीं मैं इस दुनियां में
ना जाने कहां मैं खो गया
मेरे होठों की मुस्कान मां को बड़ा विचलित करती थी
हिलना डुलना मेरे हाथों पैरों का मां को बड़ा आनंदित करती थी
मां के हाथों से हर रोज मालिश पाकर
मैं बहुत अलसाया सा हो गया था
मेरी मां का ममत्व मेरे लिए साया सा हो गया था
बड़ी ताकत थी मां के दूध में
की मैं एक नए रूप में ढलने लगा था
थोड़ा सी चंचलता लेकर घुटनों के बल चलने लगा था
जब भी मां मुझे अपनी गोद में उठाती थी
ना जाने कितना लाड लगाती थी
मैं भी उसके गले की माला को
अपनी उंगलियों में उलझा लेता था
मां की नन्हीं सी गोद में सारा जहां पा लेता था
उम्र बढ़ रही थी या फिर मैं बड़ा होने लगा था
अपने नन्हें लड़खड़ाते कदमों से खड़ा होने लगा था
छोटी छोटी चीजें मां मुझे बता रही थी
धीरे धीरे मां मुझे मां कहना सीखा रही थी
ऐसे मेरी मां का और मेरा कुछ महीना बीत गया
तुतलाते हुए ही मैं मां कहना सीख गया
आज घड़ी की सुइयां वक्त को बढ़ा रही थी
क्यूंकि आज मेरी मां मुझे कलम पकड़ना सीखा रही थी
अचानक से ये लड़खड़ाते कदम किसी से टकरा गए
अनजाने में ये गहरे चोट खा गए
चोट लगी थी मुझको
पर मां तड़प कर रोई थी
जो जाग रहा था मैं दर्द में
तो मां भी कहां रात भर सोई थी
मैं सलामत खड़ा था उसके सामने
फिर भी मां मेरी सलामती की दुआ मांग रही थी
सारी खुशियां भर भर के दे दिया था उसने मुझको
फिर भी न जाने मेरे लिए क्या क्या मांग रही थी
पहली बार कलम चलानी मां ने सिखाई थी
आज मैंने टूटे फूटे अच्छारो में कलम चलाई थी
क्या मांगता कुछ और मैं सबकुछ मैंने पा लिया था
दुनियां भर से बचाकर मां ने अपने सीने में छुपा लिया था
सच ही तो कहते हैं की जब भगवान धरती पर नहीं रह सके
तो उन्होंने मां को बनाया है
तभी तो हर किसी ने मां बाप के रूप में भगवान को पाया है
वक्त बढ़ा और मैं भी बड़ा हुआ
मां की उंगली पकड़ते हुए आज बिन सहारे खड़ा हुआ
कभी राजा रानी तो कभी परियों की कहानी सुनाती थी
जब करता कभी ना नुकुर मैं खाने में
तो एक निवाला बस खाले बेटा ऐसे कहके बहलाती थी
शायद जादू था उसके हाथों में जो खाना रहता बहुत ही स्वाद भरा
बड़े प्यार से रखती थी मेरे सिर पर मां हांथ अपना आशीर्वाद भरा