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आज कल के बच्चे अपने जीवन को संवारने के लिए, पैसे कमाने के लिए और कुछ बच्चे अपने घर के जरूरतो को पूरा करने के लिए अपने देश से बाहर चले जाते हैं।

जब घर से बाहर बच्चे जाते है, तब उनके आखों में ढेर सारे सपने होते है। परिवार के हर एक सदस्य के मन में गम होता है। परिवार आशा और निराशा के बीच में झूलते रहते है। खैर बाद कुछ महिने या फिर एक-दो वर्ष तक ख़त का लेन देन होता है। या फिर जमाने में मोबाईल के जरीए में ता बात-चीत सिलसिला कम होता जाता है। बच्चे अपने बाल में इतनी ज्यादा मसरूफ हो जाते है की इन्हे अपने बुढ़े माँ बाप से बात करने समय नही मिलता है। उन्हे क्या पता थी, उन्हे घर में कितना ज़्यादा याद करते है ।

ख़ास तौर पर एक मा अपने बच्चे की शक्ल देखने के लिए तरस जाती है ।पर मजबूरन एक मां-बाप चुप ही रहते हैं क्योंकि उनके भेजें हुए पैसों से घर चलता है ।कितनी लाचारी और मजबूरी होती है ये किसे पता है | कोई भी ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती। इस बूढ़े माँबाप अपनी बोझिल आँखों से इस बात का इन्तज़ार करते हैं कि कब वो घड़ी आएगी जब उन्हें अपनी बच्चो के आने की ख़बर मिलेगी। जब पता चलता है कि बेटा या बेटी आ रहे हैं तब बेसब्री से उनका इंतज़ार करते हैं। जब आ जाते हैं तो बड़े गर्व से कहते हैं कि मेरा बेटा या बेटी आ गए हैं । जब वापिस चले जाते हैं तब फिर से वही उदासी वही तन्हाई और वही अकेलापन पूरी तरह से घिरे रहता है।

लेकिन यह सब तो एक कल्पना मात्र है। इसान सोचता तो बहुत कुछ है लेकिन होता तो वही है जो तकदीर मे लिखा होता है। हम जैसे मध्यम वर्गीय लोग हर तरफ़ से नाकाम हो क़िस्मत के भरोसे ही रहते हैं ।

आज कल ये बाहर जाने का चैलेंज कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही है। जो लोग पुश्तैनी अमीर हैं वे अपने बच्चों को बाहर बसने के लिए नहीं भेजेथे।अगर भेजते भी है तो की वे घूमने फिरने के लिएभेजतेहैं।उनके एक ही मक़सद होता है की जाओ औरमौजकरो।विदेश को देखो या फिर पढ़ाई पूरीकरके कोई डिग्री या डिप्लोमा लेकर वापस आ जाओ। क्योंकि उन्हें अपनी देश में ही सब कुछ उपल्बध होता है।

महत्व है को उनके पास पैसो की कमी नहीं है।

हमारे जान पहचान के एक परिवार है। उनके दो बच्चे है। एक बेटा और एक बेटी । बेटी की शादी के बाद अपने पती के साथ केनाड़ा जाकर बस गई। माँ बाप को इस बात का कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि लड़कियाँ होती ही पराया धन है । एक बार शादी के बाद लड़कियाँ अपने ससुराल वालो की हो जाती हैं। उस वक़्त वह अपने पति का साथ ही देती हैं ।अपने माँ बाप की बात मान भी नहींसकती।क्योंकि एक लड़कीके जीवन में एक आदमी के आने पर उसके जीवन में पूरा अधिकार उसके पति का ही होता है। लेकिन उन्होंने अपनी बेटे को बाहर ना भेजने का फ़ैसला लिया और वे लोग बेटे के साथ ही अपने देश में रहे ।

परतु ऐसा भी नहीं की लड़कियाँ शादी के बाद ही जाती हैं कई लड़किया स्वंय ही फिर बाहर जाकर बस जाती है ।

बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों के ज़िद के आगे झुक जाते है क्योंकि उन्हे भी अपने बुढ़ापे के कुछ सहारा की इच्छा होती है जैसे की रोटी, कपड़ा, मकान और दवाएँ ।

यही सोचकार माता-पिता उधार उठाकर या फिर अपनी कोई जामा- पूंजी लगाकर अपने जिगर के टुकड़ों को आसू भरी आँखों से परदेश में भेज देते हैं।

इधर केवल माता पिता की मुश्किले ही नहीं होती है। बच्चो को भी बाहर जाकर काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। वहां की भाषा, बहा का रहन सहन, वहा के खान-पान हर एक चीज के लिए उन्हे आपने-आप से लड़‌ना पड़ता है। और परन्तु हम सभी को पता है की जिन्दगी एक जंग इस जंग में हम सब योद्धा है। जो जीत गया वो सिकन्दर है।

माता पिता तव खुश होते है जब बच्चे अपको अभिभावको का ध्यान रखते है । उनके हर जुरुस्त को पूरा करते है। मां-बाप को दिल से अपने बच्चे के लिए ढेरों आशिवाद निकलते है। उनके रिश्तेदार और आस-पड़ोस में रहने वाले यही कहते है, "भगवान ऐसे औलाद सब को दे। जो अपने मां-बाप की जरूरतो को पूरा करते रहते है।

लेकिन, मै कहतीं हूँ की: क्या पैसा ही सबकुछ है? हमारे समाज में कई ऐसे काम होते है, जैसे, शादी-ब्याह, मृत्यु, दिवाली, दशहरा, न जाने और कितने रिती-रिवाज, खुशी और ग़म होते है। क्या वह सारे जगह पंहुंच पाते हैं ?सारे रिश्ते निभा पाते है? नही कभी नहीं। कयां इसके लिए केवल बच्चे से ज़िम्मेदार होते है? इसके लिए तो हमारे देश की अर्थ व्यवस्था भी जिम्मेदार है। अकेले हम किसी को कुछ भी नही कह सकते है। हमारे देश की मे दिन ब दिन बढ़‌ती महंगाई उपर से बेरोजगारी हमें कही न कही खोखला कर रही है, कही न कही हमारे बच्चों को हमसे दुर कर रही हैं ।

माँ बाप ढेरों पैसा लगाकर बैंक से लोन लेकर बच्चों को बढ़िया से बढ़िया शिक्षा दिलवाते हैं।। लेकिन जब नौकरी के नाम पर बच्चों के योग्यता के अनुसार पैसे नहीं मिलते है तब वो बच्चे विदेश का ही रुख करते है।

इन सब बातों के पीछे एक माँ अपनी औलाद से दूर हो जाती है। एक बाप अपने मन मसोस कर रह जाता है।

आज के जमाने में पैसो की अहमियत रिश्तों से ज़्यादा हो गयी है।

मैने देखा है जब हम गर्व से कहते है की, हमारा बेटा बाहर फलां जगह रहता है तब दिल के एक कोने से एक टीस ज़रूर उठती है । लोगो को दिखाने के लिए चहककर करबोला जाता हैं।और तो और जब अंतिम समय होता है तब अपना जिगर का टुकड़ा हमारे पास नहीं होता।

वह आता भी है तो दो तीन दिन बाद ही आ पाता है और तभी अंतिम क्रिया होती है। और फिर आजकल ज़्यादातर देखा जाता है कि ऐसे समय आभाव के कारण तैरवी कीजगह चौथे पर ही उठाला कर दिया जाता है।

वाकई में जमाना बदल गया है। अब वो समय नही है जिसमे संयुक्त परिवार होता था। अब तुकडो में परिवार है और आगे जाकर और भी टुकड़ों में बंटकर परिवार छोटा हो जाएगा | जो भी हो यह देश परदेश की बाते ही आज के समय का सबसे बड़ा मसला बन गया है , न जाने कब थमेगी ये दौड़। यह हमारी तकदीर बनती जा रही है या फिर दाना-पानी का सिलसिला ।

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