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प्राचीन काल से ही मानव ने जल का प्रयोग जाना है और आवश्यकतानुसार प्रयोग करता आ रहा है। सब जानते हैं कि जल ही जीवन है और जल के बिना सब जग सूना है। मानव ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे और जीव जंतु के लिए जल अत्यधिक और अनिवार्य माना जाता है। जल के बिना सभी का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। हमारे सौर मंडल में केवल पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है जहां जल और आक्सीजन है जो कि जैव जगत के लिए आवश्यक माना गया है। इसी लिए पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है।
जग प्रसिद्ध है कि जल में ही सबसे पहले जीवन का उद्भव हुआ था। पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद चारों तरफ जल ही जल व्याप्त था। लाखों साल के बाद महाद्वीप और महासागरों का निर्माण हुआ। पृथ्वी के 71% भाग पर सागर और महासागर ( हिंद महासागर, अंध महासागर, अंटार्कटिका और प्रशांत महासागर) स्थित है और सबसे बड़ा सागर भूमध्यसागर है। केवल 29% भूभाग स्थल है जिसमें एशिया, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया , उत्तर और दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका महाद्वीप स्थित हैं जबकि सबसे बड़ा द्वीप ग्रीनलैंड है।
पृथ्वी जलीय ग्रह मानी जाती है और 97% जल सागरों और महासागरों में पाया जाता है। यह जल खारा होने के कारण जैव जगत के लिए उपयुक्त और उपयोगी नहीं माना जाता है। केवल 3% ही जल मानव और जैव जगत के लिए उपयुक्त है। उसमें से आधा से अधिक भाग हिम के रूप में हैं। जोकि हिमाच्छादित रूप में ध्रुवीय क्षेत्रों, अंटार्कटिका और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। केवल एक प्रतिशत से अधिक जल द्रव्य रूप में महाद्वीपों में ही मिलता है। यह उपयोगी जल नदियों, नहरों, झीलों और तालाबों में प्राप्त होता है। यही नहीं भारी मात्रा में भूमिगत जल पृथ्वी के आंतरिक भाग में पाया जाता है।
उपयोगी और स्वच्छ जल का प्रयोग पीने सहित घरेलू कार्यों के साथ कृषि में सिंचाई, उद्योग और निर्माण कार्यों में किया जाता है।जल का प्रयोग जीवों एवं पेड़- पौधों के लिए आवश्यक है।जल परिवहन तो किसी भी प्रकार के जल क्षेत्र में किया जा सकता है।
विश्व में कुल 165000 नदियां हैं जिसमें सबसे लम्बी नदी अमेजान है जो कि दक्षिण अमेरिका में बहती है। विश्व की प्रमुख नदियां - मिसीसिपी, मिसौरी ( अमेरिका), नील, जायरे (अफ्रीका), वोल्गा, डेन्यूब, राइन, रोन , पो (योरोप), दजला -फरात, ह्वांग हो, यांगत्सीकांग, गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र,सतलुज (एशिया) मरे और डार्लिंग (आस्ट्रेलिया) हैं।
हमारे विश्व की जनसंख्या आठ अरब (800 करोड़ ) हो गई है और यह लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व के सभी भागों में जल पर्याप्त नहीं है। गर्म और ठंडे मरूस्थल में वर्षा कम होने से जल की कमी बनी रहती है। ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा कम और हिमपात अधिक होता है। यूरोप में आल्प्स और एशिया में हिन्दूकुश से लेकर हिमालय पर्वतमाला तक हिमाच्छादित क्षेत्र है। जहां पर हिमनद ( ग्लैशियर जोकि धीमी गति से चलने वाली हिम की नदी) की भरमार है।
विश्व में पर्याप्त जल की आपूर्ति नहीं है... केवल यूरोप और उत्तरी अमेरिका में स्थिति सामान्य है लेकिन दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में स्थिति सामान्य नहीं है बल्कि चिंता जनक है। उष्णकटिबंध क्षेत्रों और गर्म और ठंडे मरूस्थलों में पर्याप्त जल की बड़ी समस्या है। इसके लिए वहां के लोग कई - कई मील जाकर पेयजल लाते हैं।
रही बात हमारे देश भारत की है। यह विश्व का सातवां बड़ा क्षेत्रफल में राष्ट्र है। हमसे बड़े देश - चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्राजील हैं। और भारत की जनसंख्या चीन के समकक्ष 140 करोड़ हो गई है। यही नहीं कुल क्षेत्रफल का 45% भूमि खेती योग्य है जो कि विश्व के किसी भी बड़े देश के पास नहीं है। भारत में कुल 400 नदियां, उपनदी और सहायक नदी हैं। अकेले मध्य प्रदेश में 206 नदियां हैं जोकि सर्वाधिक है। भारत की अधिकांश नदियां पूर्व की ओर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।केवल सिंधु, नर्मदा और ताप्ती पश्चिम में बह कर अरब सागर में विलीन हो जाती हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तर भारत की नदियां सदानीरा हैं और वर्ष भर बहती रहती है क्योंकि वे नदियां ग्लेशियर से उद्भव होती हैं। ये नदियां हैं --सिंधु , गंगा, ब्रह्मपुत्र, कोसी, गंडक, यमुना, चंबल, गोमती आदि। जबकि दक्षिण भारत की नदियां ऋतुवत हैं जो कि मानसून ऋतु में अच्छा बहती हैं और शुष्क गर्मी में प्रवाह कम हो जाता है। प्रमुख नदियां हैं - नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, ब्राह्मणी , सुवर्णरेखा।
भारत में जल के साधन - नदियां, नहरें, झील, तालाब और कुएं हैं जिनका जल उपयोग घरेलू कार्यों पेयजल सहित, कृषि सिंचाई, उद्योग और निर्माण कार्य में किया जाता है। यही नहीं जितना जल भूमि के ऊपर पाया जाता है उससे अधिक जल भूमि के नीचे (भूमिगत) पाया जाता है। लेकिन जल का वितरण असमान रहा है इसीलिए बाढ़ और सूखा इसके दो पहलू हैं।
स्वतंत्रता के बाद बाढ़ वाले क्षेत्रों में बांध का निर्माण किया गया और सूखा क्षेत्र में बड़े जलाशयों का निर्माण किया गया। देश में भाखड़ा नांगल बांध, दामोदर नदी घाटी, हीराकुद, नर्मदा, तुंगभद्रा, जैसे करीब 95 बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना को पूरा कर जल को हर क्षेत्र में आपूर्ति का कार्य किया गया। हिमाचल प्रदेश में विश्व का सबसे बड़ा मानव निर्मित सागर गुरु गोविंद सागर का निर्माण किया गया।राजस्थान में जल समस्या को समाप्त करने के लिए विश्व की सबसे बड़ी नहर राजस्थान नहर ( अब इंदिरा गांधी नहर) को बनाया गया। इससे राजस्थान के थार मरूस्थल में नहर के माध्यम से जल पहुंचाया गया है। और काफी हद तक अकाल की समस्या को हल किया गया है।
भारतीय जल विशेषज्ञों ने उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत से जोड़ने की योजना बनाई थी जिसमें दक्षिण भारत में सूखा और जल की कमी को दूर किया जा सके। इस पर अंग्रेजों ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि स्वतंत्रता के बाद 1980 में इस परियोजना पर विचार किया गया लेकिन भारी धनराशि के कारण स्वीकार नहीं किया गया। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस परियोजना को मंजूरी देकर कार्य प्रारंभ किया गया लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस पर रोक लगा दी। 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष रूचि दिखाते हुए परियोजना को आगे बढ़ाया। यह 3.2 लाख करोड़ रुपए की योजना है। और इसको पूरा करने में एक दशक से भी अधिक का समय लग सकता है और लागत की धनराशि बढ़ भी सकती है। अभी हाल ही में केन बेतवा नदी को जोड़ने का कार्य पूरा हो चुका है। इस परियोजना से उत्तर की नदियां जब दक्षिण से जुड़ जायेगी तब वर्षा का अतिरिक्त जल सूखा प्रभावित क्षेत्रों और दक्षिण के पठारी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति संभव हो सकती है।
अब समय आ गया है कि सभी भारतीयों को जल के महत्व को समझना होगा और जल की बरबादी को रोकने के लिए सभी भारतीयों को शिक्षित करके सजग और जानकार बनाना होगा। भारत में नगर- नगर, ग्राम - ग्राम को स्वच्छ जल से जोड़ना होगा। भारत में 2500 छोटे - बड़े शहर और 5.5 लाख गांव हैं जहां 140 करोड़ नागरिक रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकार ग्रामपंचायत, नगर पालिका और नगर निगम के माध्यम से जल की आपूर्ति कर इस समस्या को हल कर रही है। मरूस्थल और पर्वतीय क्षेत्रों में जल उपलब्धि बड़ी समस्या है। नागरिकों को 2-2 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। मानसून फेल और सूखा प्रभावित होने पर सरकार टैंकर से पानी की आपूर्ति करती है।
वर्षा जल संग्रहण योजना को नगरों और महानगरों में अनिवार्य किया गया है जिसमें सभी मकान अपने क्षेत्र के वर्षा जल को संचयन करेंगे और बाद में उपयोग कर लेंगे। नहीं तो यह जल बह कर नदियों में मिल जायेगा और फिर बह कर सागर में मिल जायेगा।वहीं जल खारा जल में मिलकर अनुपयोगी हो जाता है।
स्वतंत्रता के बाद भूमिगत जल का अति दोहन कृषि में सिंचाई, घरेलू कार्यों और निर्माण कार्यों में किया जा रहा है जिससे भूमिगत जलस्तर तेजी से घटता जा रहा है यही चिंता का विषय है। सरकार और किसान और शहरी नागरिक इस विषय पर तेजी से ध्यान नहीं दे रहे हैं। कई दशक के बाद यही समस्या विकराल हो जायेगी। दक्षिण भारत के बड़े महानगरों में यह समस्या प्रारंभ हो गई है। भूमिगत जल को केवल पेयजल के रूप में ही प्रयोग किया जाए और कृषि सिंचाई में कम से कम उपयोग किया जाए। सरकार ट्रीटमेंट प्लांट को प्रोत्साहित कर इस्तेमाल किये जल को साफ करके सिंचाई, उद्योग और निर्माण कार्यों में ही सफलतापूर्वक प्रयोग करे। इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित और शिक्षित करने की आवश्यकता है।उत्तर और दक्षिण की नदियों के मिलने से देश में जल की आपूर्ति से यह समस्या कुछ हद तक दूर हो सकती है।