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सुना, पढ़ा रामायण हम ने, और बहुत बार मंचन देखा है,
अद्भुत शिक्षा प्रद बातों का, पाया एक अनुपम लेखा है,
एक सीधी सादी बात मगर हम, न सीखे बचपन, यौवन में,
अगर ध्यान देते कुछ इस पर, कभी न पाते दुख जीवन में।
दशरथ ने बात केकैयी की मानी, राम को वन में भेजा,
अगर भेजते नहीं, तो केकैयी, खा जाती उन का भेजा,
राम ने सीता की मानी तो, सोने के हिरन को लेने भागे,
पत्नी की जिन जिन ने मानी, देखो भाग्य उन्हीं के जागे।
अगर मानते नहीं राम तो, क्या भगवान् कभी बन पाते ?
दशरथ जी भी धीरे धीरे, वक्त की मिटटी में दब जाते,
आज राम घर घर पुजते हैं, और दशरथ भी याद आते,
पत्नी के आज्ञाकारी बनकर, जग में कितनी इज्जत पाते।
था प्रकाण्ड ज्ञानी रावण, जिस ने पत्नी की बात थी टाली,
पागल ने अनादिकाल तक, मरने, जलने की सजा पाली,
आज हजारों साल बाद भी रावण, मरता है, जलता है,
और आज्ञाकारी पतिओं का, जग में सिक्का चलता है।
लेकिन अब पछताना कैसा, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत,
देख सुखमय वैवाहिक जीवन का, यही मूलमन्त्र है एक,
अब यह बात अकल में आई, ना करनी थी मनमानी,
जो पत्नी की बात न माने, वही सब महामूर्ख, अज्ञानी।