2009 का साल ओडिशा के लिए एक ऐसी घटना के साथ जुड़ा था, जिसने न केवल प्रमोदिनी रौल की ज़िंदगी को बदल दिया, बल्कि पूरे देश में एसिड अटैक के खिलाफ कदम उठाने और उन्हें रोकने की ज़रूरत को समझा गया। प्रमोदिनी, एक 16 साल की लड़की, जो अपनी ज़िंदगी में खुश थी, एक ऐसी दर्दनाक घटना का शिकार हुई, जिससे न केवल उसकी तस्वीर, बल्कि उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति भी बदल गई। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के दर्द की नहीं, बल्कि सामाजिक और कानूनी बदलाव की भी मिसाल है।
नमस्कार दोस्तों,
मेरा नाम मधुलिका गोयल है। मैं एक लेखिका हूं। दोस्तों, आज की यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जो 2009 में हुई थी। तो आइए, इस कहानी को शुरू करते हैं।
बात है 2009 की, जब प्रमोदिनी मात्र 15 साल की, हंसती-खेलती स्कूल की होनहार छात्रा थी। प्रमोदिनी पढ़ाई में बेहद प्रतिभाशाली थीं प्रमोदिनी एक क्लासिकल डांसर भी थीं, जिसमें उन्होंने कई जिला स्तर के मेडल जीते थे। प्रमोदिनी का सपना था कि वह एक आईएएस अधिकारी बनें। प्रमोदिनी की दो बहनें भी हैं। वह काफी छोटी थीं जब उनके पिताजी का निधन हो गया था।
प्रमोदिनी की मां ने हमेशा उनका साथ दिया। वह जानती थीं कि उनकी तीन बेटियां हैं और आगे चलकर लड़कियों को हर क्षेत्र में संघर्ष और सर्वाइव करना होगा। शुरू से ही प्रमोदिनी की मां ने अपनी बेटियों का हर चीज में भरपूर समर्थन किया। खासकर जब उनके जीवन में ऐसा कोई हादसा हुआ, जब प्रमोदिनी का 11वीं कक्षा शुरू हुआ, उसी समय वहाँ एक आर्मी ग्रुप ट्रेनिंग शिप के लिए आया हुआ था। उनमें से एक 28 वर्षीय लड़का, जो ओडिशा का ही था और आर्मी में था, उसने स्कूल के बाहर एक बार प्रमोदिनी को देखा और उसे प्रमोदिनी से प्यार हो गया।
जैसे ही उसने प्रमोदिनी को देखा, उसने तुरंत प्रमोदिनी के परिवार को शादी का प्रस्ताव भेज दिया। प्रमोदिनी के परिवार ने इस शादी के लिए साफ-साफ मना कर दिया। लेकिन वह आदमी, जो प्रमोदिनी के पीछे पड़ा हुआ था, बार-बार उनकी फैमिली को परेशान करने लगा। प्रमोदिनी की फैमिली ने भी कई बार उस लड़के को समझाया, और प्रमोदिनी ने भी उसे समझाने की कोशिश की।
प्रमोदिनी ने उससे कहा, "देखो, मेरे कुछ सपने हैं जो मुझे पूरे करने हैं। बार-बार मेरा पीछा मत करो, नहीं तो ये चीजें आगे चलकर मुझे परेशान करेंगी।" प्रमोदिनी ने उसे कई बार समझाया। लेकिन इतना समझाने के बाद भी उसने प्रमोदिनी की बात नहीं मानी। उसने सोचा कि वह ऐसा करता रहेगा और एक न एक दिन प्रमोदिनी हार मान ही जाएगी क्योंकि वह एक लड़की है।
उस लड़के ने फिर बार-बार प्रमोदिनी को परेशान करना शुरू कर दिया। यह सिलसिला दो साल तक चलता रहा।
एक दिन, जनवरी 2009 में, जब प्रमोदिनी स्कूल से निकल रही थी, तब उसने प्रमोदिनी का हाथ पकड़ लिया। उस समय प्रमोदिनी बहुत रोई और उससे कहा, "मेरा हाथ छोड़ो।" लेकिन उसने प्रमोदिनी का हाथ नहीं छोड़ा।
प्रमोदिनी ने गुस्से में आकर उसे एक थप्पड़ मारा। वह थप्पड़ लड़के के चेहरे पर न लगकर उसकी गर्दन पर लगा, क्योंकि वह बहुत लंबा था। उस घटना के बाद प्रमोदिनी अपने घर गई और स्कूल के बाहर जो घटना घटी थी, उसके बारे में उसने घर में पूरी बात बताई। यह सुनकर प्रमोदिनी के जो चचेरे भाई थे, उन्होंने उस आदमी की पिटाई कर दी।
मारपीट के बाद, उस आदमी ने प्रमोदिनी के घर पर फोन किया। प्रमोदिनी को घर में सभी प्यार से "रानी" बुलाते थे। उसने फोन पर कहा, "अब मैं रानी को कभी परेशान नहीं करूंगा।"
इस फोन कॉल के बाद काफी समय तक वह आदमी स्कूल के बाहर दिखाई नहीं दिया। सबकुछ ठीक लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि अब सब सही हो गया है। प्रमोदिनी भी अब आराम से स्कूल आने-जाने लगी।
प्रमोदिनी अब अपनी जिंदगी सुकून से जी रही थी। इसी तरह कुछ महीने निकल गए। 18 अप्रैल को प्रमोदिनी अपने चचेरे भाई के साथ मौसी के घर गई थी।
"यहां से जा, नहीं तो मैं सच में लोगों को बुलाऊंगी और तुझे पिटवाऊंगी," प्रमोदिनी ने गुस्से में कहा। लेकिन उस लड़के ने प्रमोदिनी की बात को बिल्कुल भी नहीं माना। उसके हाथ में एक बोतल थी, जिसे वह प्रमोदिनी के सामने खोल रहा था और कह रहा था, "अगर तू मेरी नहीं हुई, तो किसी की नहीं होने दूंगा। अंजाम बहुत बुरा होगा।"
प्रमोदिनी को उस समय ऐसा लगा कि वह शराब पी रहा है, क्योंकि वह आदमी बीयर की बोतल में एसिड भरकर लाया था, ताकि किसी को इसका शक न हो। प्रमोदिनी को भी इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है।
उस आदमी ने वह बोतल खोली और प्रमोदिनी के सिर पर एसिड डालना शुरू कर दिया। प्रमोदिनी ने उसे रोकने की कोशिश की और बोली, "ये क्यों डाल रहे हो?" लेकिन उसने प्रमोदिनी की बात नहीं सुनी।
एसिड डालने के बाद वह आदमी वहां से भागा और चिल्लाकर बोला, "तू मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं होगी।"
एसिड का असर प्रमोदिनी पर तुरंत शुरू हो चुका था। उसकी बॉडी मोम की तरह पिघल रही थी, बाल झड़ते जा रहे थे। एक कान पूरी तरह से नीचे गिर चुका था। एसिड उसकी आंखों में भी जा चुका था, जिससे प्रमोदिनी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
लोगों की भीड़ वहां यह सब देख रही थी, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया।
इतने में प्रमोदिनी का चचेरा भाई वहां पहुंचा और प्रमोदिनी को घर ले गया। घर पहुंचने पर प्रमोदिनी की मां ने अपनी बेटी को इस हालत में देखा। वह अपनी बेटी को ऐसी हालत में नहीं देख सकती थीं। उन्होंने प्रमोदिनी को अपनी गोद में उठाया और तुरंत अस्पताल ले गईं।
प्रमोदिनी को अस्पताल ले जाते समय उनकी मां का एक तरफ का कंधे से नीचे का हिस्सा पूरी तरह से जल रहा था, क्योंकि उन्होंने प्रमोदिनी को गोद में उठाया था। लेकिन वह एक मां थीं, अपनी बच्ची को ऐसी हालत में देखना उनके लिए असहनीय था।
पहले प्रमोदिनी को जिला अस्पताल ले जाया गया। लेकिन जिस अस्पताल में प्रमोदिनी को ले जाया गया, वहां के डॉक्टरों ने प्रमोदिनी का ठीक से ध्यान नहीं रखा। उसे केवल नशे का इंजेक्शन देकर दूसरे अस्पताल में भेज दिया। जिस अस्पताल में प्रमोदिनी को भेजा गया, वहां बेड तक नहीं था। प्रमोदिनी 23 दिनों तक बिना बेड के ज़मीन पर पड़ी रही। 3 दिनों तक उसके ज़ख्मों पर पानी तक नहीं डाला गया, और एसिड पूरी तरह से उसकी बॉडी में समा चुका था।
इसकी वजह से प्रमोदिनी कोमा में चली गई। इसके बाद प्रमोदिनी को आई.सी.यू में शिफ्ट किया गया। 26 घंटे के बाद प्रमोदिनी कोमा से बाहर आ गई, लेकिन उसका नीचे का हिस्सा पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो चुका था और उसकी दृष्टि पूरी तरह से चली गई थी।
9 महीने बाद प्रमोदिनी के फूफाजी, जो उनके घर का पूरा खर्च चला रहे थे, उन्होंने बीच में ही प्रमोदिनी का इलाज रुकवा दिया और उसे घर ले आए। उन्होंने कहा, "अब मैं और खर्चा नहीं कर सकता।" ऐसा नहीं था कि प्रमोदिनी के फूफाजी के पास पैसा नहीं था। उनके पास पर्याप्त पैसा था, लेकिन प्रमोदिनी एक लड़की थी, और इसी वजह से वे उस पर और खर्चा नहीं करना चाहते थे।
प्रमोदिनी की मां पर यह बात गहरा आघात बनकर आई। यहां तक कि परिवार के कुछ लोगों ने कहा, "इसे ज़हर देकर मार दो। यह सड़ चुकी है।" किसी ने उसे "भूतनी" कहा और सवाल उठाया, "इसे क्यों ज़िंदा रखा है?"
प्रमोदिनी को अपने ही परिवार से इस तरह की बातें सुननी पड़ीं, जो किसी भी इंसान के लिए असहनीय है।
दोस्तों, मैं मधुलिका गोयल यहाँ कुछ कहना चाहती हूँ। आज शर्म आती है कि हम एक ऐसे समाज में हैं जहाँ लोगों की इतनी घटिया सोच है। समाज आगे तो बढ़ रहा है, लेकिन उनकी सोच वहीं की वहीं है। बेटियाँ आगे बढ़ रही हैं, लेकिन सिर्फ काँटों पर चलकर, मरकर।
समाज के काँटों में उलझी हुई,
बेटियाँ हर रोज़ बिखरी हैं।
सपनों की जो चादर ओढ़े,
वो अक्सर फटी और जली हैं।
आगे बढ़ने की चाहत में,
हर कदम एक संघर्ष बनता है।
लेकिन सोच वही पुरानी है,
जैसे हर दिन खुद को वो खोता है।
नारी के हौसले को देखकर,
क्या किसी ने उसकी क़ीमत समझी है?
जो कांटों पर चलती जाती है,
क्या कभी उसकी राहों को समझा है?
समाज, क्या तुम नहीं देख पाते,
कैसे वो हंसते हुए गिरकर फिर से उठती है।
नारी का हर दर्द, हर आंसू,
जो चुपके से आँखों में छलकती है।
सपने हैं तो हों उड़ानें,
आगे बढ़ने की चाहत कभी न रुकें।
समाज की परिधि में अब बदलाव आए,
नारी का हर कदम अब सफलता की ओर बढ़े।
समाज की सोच को बदलना है,
बेटी को अब अपनी पहचान बनानी है।
काँटों में जो रहीं हैं जीती,
वो अब आकाश पर नई सर्जना लिखेंगी।
प्रमोदिनी को अब घर ले कर आ गया था। 5 साल बीत चुके थे, प्रमोदिनी के अब घाव गलने लगे थे। 2014 में प्रमोदिनी के एक सीनियर ने पैसे इकट्ठा किए और कहा कि अगर हम प्रमोदिनी का फिजियोथेरपी कराएंगे, तो प्रमोदिनी बिल्कुल ठीक हो जाएगी। वहाँ प्रमोदिनी का इलाज शुरू हुआ। वह एक प्राइवेट हॉस्पिटल था, जहाँ प्रमोदिनी की मुलाकात एक अच्छे इंसान से हुई, जो उसी हॉस्पिटल में डॉक्टर थे। उनसे प्रमोदिनी की मुलाकात हुई और धीरे-धीरे वह प्रमोदिनी की माँ से मिले और प्रमोदिनी से बातचीत शुरू की, क्योंकि वही प्रमोदिनी का इलाज कर रहे थे। इस दुनिया में अच्छे लोग भी होते हैं, दोस्तों।
प्रमोदिनी ने कभी हार नहीं मानी। प्रमोदिनी को उस एसिड ने नहीं हराया था। उस एसिड से जो दर्द हुआ, वह इतना भयंकर था कि वह दर्द सिर्फ प्रमोदिनी ही महसूस कर सकती थी। उस डॉक्टर ने प्रमोदिनी को 4 महीने में चलना शुरू करा दिया। 2015 में प्रमोदिनी अपने घर आ गई और उसने चलना शुरू कर दिया। रात में चेहरे को ढक कर वह चलती थी। चलते वक्त प्रमोदिनी सिर्फ एक ही बात सोचती थी, "क्या गलती थी मेरी?" यह सोचकर चुपचाप, अपराध पर सवाल न उठाते हुए, सब प्रमोदिनी को कहते थे," मैं तो बस एक IAS ऑफिसर बनना चाहती थी, अपना एक सपना पूरा करना चाहती थी।
धीरे-धीरे प्रमोदिनी एक फाउंडेशन से जुड़ी, एक ऐसी फाउंडेशन से जहाँ पहले से ही एसिड अटैक की शिकार और भी लड़कियाँ थीं। आज प्रमोदिनी उस फाउंडेशन की हेड हैं। उड़ीसा में इस मुद्दे पर लोग बातचीत नहीं कर रहे थे। प्रमोदिनी ने इस पर आवाज उठाई और कहा, "आवाज उठाओ, एसिड अटैक जो लड़कियाँ हैं, वो अपना चेहरा न छुपाए, चेहरा दिखाए, क्योंकि गलती हमारी नहीं है।"
2017 में प्रमोदिनी का एक ऑपरेशन हुआ, चेन्नई में। 2017 में 9 सितंबर को प्रमोदिनी ने उस आदमी के खिलाफ आवाज उठाई जिसने एसिड अटैक किया था। एक आर्मी वाले को अरेस्ट करने के लिए बहुत सारे प्रूफ चाहिए होते हैं, और यह वही आर्मी वाला था जिसने एसिड अटैक किया था। प्रमोदिनी ने हार नहीं मानी और 2017 में प्रमोदिनी ने सीएम साहब को ट्वीट किया। 30 में रिप्लाई आने के बाद प्रमोदिनी सीएम से मिली और सीएम के पास जाते ही उस आर्मी वाले को अरेस्ट कर लिया गया। 2017 में 25 नवम्बर को उस आर्मी वाले को अरेस्ट कर लिया गया।
आज प्रमोदिनी की शादी हो गई है उसी डॉक्टर से, जो प्रमोदिनी का इलाज कर रहा था। आज प्रमोदिनी अपनी लाइफ में खुश हैं और उन लड़कियों की मदद कर रही हैं जो इस दर्द से आज भी सर्वाइव कर रही हैं।
मैं मधुलिका गोयल, जो जो एक लेखिका हूँ इस लेख को लिख रही हूँ, सोच रही हूँ कि प्रमोदिनी जैसी कितनी लड़कियाँ आज भी उस दर्द में हैं और समाज मदद न करके उनकी समस्याओं को और बढ़ा रहा है। मैं, मधुलिका गोयल, इस लेख के माध्यम से सरकार से अनुरोध करती हूँ कि इस देश की जो बेटियाँ एसिड अटैक का शिकार हुई हैं, उनकी मदद करें। इस फाउंडेशन को मदद दें। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध है कि उड़ीसा में जो हुआ है, उन बेटियों की मदद करें। जाते जाते, मैं इन बेटियों के लिए एक कविता लिखूँगी।
आँखों में जो ख्वाब था, वो अब सच होगा,
हर लड़की की जिंदगी में अब बदलाव होगा।
हिम्मत से उठो, और आगे बढ़ो,
हर दर्द से परे, एक नया सूरज चमकेगा।
आत्मविश्वास से रोशन हो हर राह,
बिन खौफ के जीवन की नई दिशा दिखेगा।
सपनों को पूरा करने की जो चाहत थी,
अब किसी भी बंदिश से नहीं रुकेगा।
हम सब मिलकर आवाज़ उठाएंगे,
हर लड़की की मदद करेंगे,
साथ मिलकर इस अंधेरे को दूर करेंगे,
यह समाज फिर से उम्मीद से भर जाएगा।
आइए, हम सब मिलकर इन बेटियों के लिए खड़े हों,
उनकी मदद करें, उनका साथ दें,
क्योंकि इन बेटियों का दर्द हमारी जिम्मेदारी है,
सपने साकार होंगे, जब हम सब साथ चलेंगे