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साहित्य के बिना समाज, और समाज के बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। साहित्य और समाज दोनों का ही मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। साहित्य समाज का दर्पण है...
"साहित्य भूतकाल के सारे राज, अपने गर्भ में समेटे है।
नहीं कुछ रहता छुपा, सब कुछ पारदर्शक है।"
एक साहित्यकार समाज की वास्तविक तस्वीर को सदैव अपने साहित्य में उतारता रहा है। मनुष्य परस्पर मिलकर समाज की रचना करते हैं इस प्रकार समाज का और साहित्य का घनिष्ठ संबंध है।
आदिकाल के वैदिक ग्रंथों और उपनिषदों से लेकर वर्तमान काल तक साहित्य ने सदैव ही मनुष्य को प्रभावित किया है।
जैसे श्री तुलसीदास जी ने रामायण को अपने शब्दों से सजाया तो वेदव्यास जी ने कृष्ण की गीता को। इन्होनें उस समय की सामाजिक व्यवस्था नैतिक मूल्य और रहन-सहन को एक ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया और वह पुस्तकें हमारी मार्गदर्शक, हमारी पूजनीय बनी। संस्कृति का एक हिस्सा एक आदर्श बन गई।
उसके बाद कई राजा महाराजाओं का राज्य आया और साहित्यकारों ने उस समय की विवेचना अपने अपने तरीके से की।
कोई भी साहित्यकार हो, वह जिस काल में होते हैं उसी काल के बारे में लिखते हैं और हमारे लिए साहित्य विरासत के रूप में छोड़ जाते हैं।
एक साहित्यकार जो एक प्रबुद्ध बुद्धिजीवी के रूप में जाना जाता है, यह उम्मीद की जाती है कि वह समकालीन साहित्यकारों और उनके साहित्य का विवेचन और मूल्यांकन नहीं तो परिचयात्मक विवरण अवश्य तैयार करेगा।
समय के गर्भ में क्या क्या छुपा हुआ है, साहित्य इन्हीं घटनाओं दुर्घटनाओं का ब्यौरा हमें देता है और आने वाले समाज के लिए ज्ञान का खजाना खोल देता है। समाजवादी विचारधारा और उस पर आधारित सामाजिक व्यवस्था जो मानव के नए भविष्य का पर्याय बनती है।
साहित्य समाजवादी व्यवस्था के स्वप्नदर्शी और वास्तविक समाजवाद को दर्शाता है। समाज अपने उन साथी लेखकों के बारे में सोचता है जो स्वयं तो चले गए और हमें अपने समय और काल से अवगत करा गये। आज वे सम्माननीय साहित्यकार स्वयं तो नहीं लेकिन हमारे लिए एवं आने वाले समय के लिए साहित्यिक पुस्तकें छोड़ गये। यही पुस्तकें हमें उस दुनिया की सैर करवाने में भी सक्षम है।
इतिहास की घटनाएं आज की पीढ़ी को कैसे पता चलेगी, अगर साहित्य नहीं होगा। नई पीढ़ी हमेशा पुरानी पीढ़ी में व्याप्त हर समय की, विशेषकर प्रत्येक सैद्धांतिक या व्यवहारिक जटिलता के समाधान के लिए साहित्य से मार्गदर्शन और निर्देशन की आशा और अपेक्षा रखती है, और नई नई खोज और संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे देश और समाज को सही राह चुनने में आसानी होती है। बुनियादी रूप से अपने देश की परंपरा परिस्थिति और संभावनाओं के अनुकूल अपना रास्ता खोजने की कोशिश करती है।
साहित्य में समाज में होने वाली सम-सामयिक घटनाओं, समस्याओं और कुरीतियों का विवरण दिखता है जो भविष्य के समाज को प्रेरणा और समाज के हितों के बारे में बताता है, जिससे प्राचीन समाज, मध्य कालीन समाज और वर्तमान समाज का अध्ययन किया जाता है।
समाज और साहित्य का संबंध अटूट है, साहित्य के द्वारा ही समाज को एक नई सोच नई ऊर्जा और प्रेरणा मिलती है।
आज की नई परिस्थिति में व्यापक बौद्धिक समुदायों और श्रमजीवी जनसाधारण में ऐसे नए तत्व उभर रहे हैं और सक्रिय हो रहे हैं जो स्थिति को नई दृष्टि से देखने के लिए आतुर है एवं
साहित्य ही इनका प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक है।
साहित्य इन्हें क्या सही क्या गलत का आकलन करने की क्षमता प्रदान करता है।