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"अनुक्ति कहा है? कही नज़र नहीं आ रही." अनुक्ति की बुआ उसकी माँ से पूछती है.

"अपनी सहेली के यहाँ गई है." अनुक्ति की माँ बताती है.

"आज के दिन क्या काम आ गया. उसके सगे भाई की शादी की रस्में शुरू होनी है आज से तो."

"दो दिन बाद उसकी गेट की परीक्षा है. उसी की तैयारी में लगी है."

"किंतु भाई की शादी में?"

"उसका मानना है कि शादियां तो होती रहती है किंतु भविष्य में सफल होकर अपने पैरों पर खड़े होना अधिक आवश्यक है."

"ठीक है, अब यह तो उसी का निर्णय है."

अगले दिन शाम को सभी लोग महिला संगीत के लिए तैयार हो कर होटल पहुंचे. अनुक्ति अपने रोज़ के कपडो में आई और अपनी माँ से पूछी "मुझे कितनी देर रुकना पडेगा."

उसकी माँ ने कहा "अनुज आ जाए, उससे मिल कर चली जाना."

"उससे क्यू मिलना है?"

"तू उसकी शादी में शामिल नहीं हो रही है तो कम से कम एक बार बात तो कर ले उससे."

"उसी ने तो काहा था कि मैं निश्चिंत अपनी तैयारी करू."

"अनुक्ति, तू यहाँ क्या कर रही है?" अनुज पूछता है.

"भाई!" अनुक्ति अनुज के गले लगकर कहती है. "माँ ने यह कहकर रोका हुआ था कि मैं आपसे मिलकर जाऊ."

"मिल ली ना, अब जा तू और अपनी तैयारी पर ध्यान दे."

अनुक्ति होटल से अपनी सहेली के घर चली गई.

अगले दिन अनुक्ति भाई भाभी को बधाई देने रिसेप्शन मे गई. मंच पर जाकर बोली "बधाई हो, भाई और भाभी. भाभी, परिवार मे आपका स्वागत है."

"धन्यवाद दी. फेरों तक रहोगे ना?" भाभी ने पूछा.

"रुकने का सोचा तो नहीं, पर आप चाहे तो रुक जाउंगी."

"कोई ज़रुरत नहीं है, तू जा. बाद में तुझे भाभी के साथ ही रहना है." अनुज ने कहा.

अगले दिन, अनुक्ति के माता पिता, भाई भाभी सभी बहुत खुश थे. उनको यकीन था, अनुक्ति अपनी परीक्षा में बहुत अच्छा करेगी.

अनुक्ति ने सभी का आशीर्वाद लिया. "भाभी, मैं आते वक्त आपकी शादी का तोहफा लेते आउंगी."

"दी, आप अपनी परीक्षा में सफल हो, यही मेरा तोहफा होगा."

अनुक्ति को उसके पिता ने दही शक्कर खिलाया, और वह घर से चली गई.

वह परीक्षा देकर घर आई, और सभी को काहा कि उसकी परीक्षा काफी अच्छी हुइ है.

लगभग एक माह के बाद. अनुक्ति अपनी सहेली के साथ घुमने गई. तभी उसके पिता उसे फोन करके बताते है "बेटा, तेरी परीक्षा का परीणाम आने वाला है २ घंटे में."

"हाँ, पापा. मुझे पता चला. मैं राशि के साथ हू, परीणाम देखकर ही घर आउंगी." अनुक्ति ने कहा.

"ठीक है, बेटा."

२ घंटे बाद, अनुक्ति ने अपनी सहेली, दृष्टि से कहा "मुझमें हिम्मत नहीं है, तू देख परीणाम."

दृष्टि ने परीणाम देखा. और वह मौन रह गई.

"कुछ बताएगी, क्या हुआ?" अनुक्ति ने पूछा.

"तू खुद ही देख ले."

अनुक्ति ने दृष्टि से फोन लिया और देखते ही देखते उसके अश्क बहने लगे. दृष्टि ने अनुक्ति को गले लगाया, और अनुक्ति सिसक सिसक कर रोने लगी.

"मैं यह लेकर घर नहीं जा सकती." अनुक्ति ने कहा.

"कैसी बात कर रही है?"

"अब कुछ बचा ही नहीं है."

"क्या नहीं बचा. सब वेसे का वेसा ही है."

"तू नहीं जानती, मेरे घरवालो को पूर्णतः विश्वास था, की मै सफल रहुंगी. अब मैं उन्हें कैसे बताउंगी कि मेने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया."

"वे हर जगह तेरे साथ थे ना, तो तू यह कैसे सोच सकती है कि वे अब तेरा साथ नहीं देंगे."

"बात साथ की नहीं है दृष्टि, मै शर्मिंदा हूँ. मैंने उन्हें निराश कर दिया."

"अनुक्ति, शर्मिंदगी वाली तो बात ही नहीं है. हमारे घरवाले हमसे यही चाहते है कि हमारे प्रयासों में कमी ना रहे."

"मेरी असफलता इस बात का प्रमाण है कि मेरे प्रयासों में कमी रह गई."

"अच्छा बताओ, क्या तुमने तैयारी करते वक्त कोई लापरवाही की थी, या क्या तुम पूर्णतः तैयारी में खोइ नहीं थी."

"हाँ, मेने बहुत मेहनत की थी, लेकिन.... "

"तुमने मेहनत करी ना, बस बात यही खत्म. अब रोना बंद कर और घर चल सब राह देख रहे होंगे."

घर पहुचकर, जैसे ही अनुक्ति ने दरवाजा खोला, उसके माता, पिता, भाई, भाभी सभी एक साथ बोले, "बधाई हो!"

अनुक्ति कुछ कहती उससे पहले उसकी भाभी बोल उठी, "हमने आपकी सफलता की खुशी में एक पार्टी रखी है कल."

"लेकिन भाभी, मैं असफल हो गई. मेरा परिणाम निराशाजनक रहा." अनुक्ति ने निराश मन से कहा.

"तो क्या हुआ, कम से कम तुमने कोशिश करी. जो कोशिश करते हैं उन्हें आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलती है." अनुक्ति के पिता ने समझाया.

"किंतु पापा, आपको मुझपर इतना विश्वास था कि आपने परिणाम के पूर्व ही पार्टी का सोच लिया था. किंतु मेने आपका विश्वास तोड़ दिया." अनुक्ति ने कहा.

"अच्छा, किसने कहा कि हमने तुम्हारी सफलता की खुशी में पार्टी रखी. हमने तुम्हारे प्रयासों को सराहने के लिए पार्टी रखी थी, न की तुम्हारी सफलता के लिए." अनुक्ति के भाई ने विश्वास दिलाया.

"लेकिन मेरी सारी मेहनत तो व्यर्थ ही चली गई." अनुक्ति ने कहा.

"बेटे, मेहनत कभी व्यर्थ नही जाती. तुमने जो पढा, क्या वो कभी आगे काम नहीं आएगा. ज़रुर आएगा, मैं जानती हूँ." अनुक्ति को उसकी माता ने समझाया.

"हाँ, तो अब अपनी मनोस्थिति ठीक करो, और कल की पार्टी की तैयारी करो." अनुक्ति को उसकी भाभी ने कहा.

अगले दिन, पार्टी में अनुक्ति ने खूब मोज किया. अपनी पुरानी असफलता को भूल कर, आगे आने वाले अवसरों पर ध्यान दिया और उनमें सफलता प्राप्त करने की तैयारी में लग गई. 

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