Photo Credit: myindianews

एक तरफ़ लड़कियां पदक जीत रही हैं वहीं दूसरी ओर शर्लिन चोपड़ा, पूनम पांडे, गहना वशिष्ठ जैसी महिला है जो सेक्स रैकेट में काम करती थी और अब चिल्ला रही है की इनके साथ धोखा हुआ है। साफ़ बात है की क्या औरत का मन पुरुष से अलग होता है? क्या अगर एक औरत चाहे तो शारीरिक श्रम कर के पैसा नही कमा सकती?

लेकिन एक ऐसी ब्रेन वाशिंग संस्था का शिकार है कुछ लड़कियां जिनको पता है कास्टिंग काउच से लेकर सेक्सुअल फेवर तक, पर उनके दिमाग में वो अभिनेत्री है जिन्हे फिल्मफेयर से लेकर राष्ट्रीय पुरस्कार मिले है। इनको यह कह कर फुसलाया जाता हैं की विदेशी अदाकारा भी तो न्यूड दृश्य करती है।'

गेम्स ऑफ थ्रोन की अमिलिया क्लार्क से लेकर शरोन स्टोन की 'बेसिक इंस्टिंक्ट' का हवाला दिया जाता है। इनके अन्दर ललक से ज़्यादा लालच है। और इसी का फायदा उठाया जाता है राज कुंद्रा जैसे गैर जिम्मेदार और शातिर बिजनेसमैन द्वारा। एक पहलू यह भी है की भारत के अंदर लॉकडाउन ने बहुत से कारोबार की कमर तोड़ी है जिसका जिम्मेदार सीधे सरकार को कहा जा सकता है। 

अगर वैश्यावृति या अश्लील कार्यो में बढ़ोतरी हुई है तो उसके पीछे कही न कही सरकार द्वारा एक तबके को हाशिए पर ला कर छोड़ देने वाले कृत्य है। इसमें कोई दो राय नही की जिन महिलाओं के साथ शोषण हुआ है उनके लिए सरकार को आर्थिक मदद करनी अनिवार्य होनी चाहिए। 

वहीं बात अगर यूरोप की करें तो वहां के पूर्वी हिस्से में गरीबी है। वहा पर 60 वर्ष की आयु की औरते भी पॉर्न में उतर रही है क्योंकि उनको घर चलाना है और उनकी संस्कृति में एक दूसरे पर आश्रित नहीं होते। अगर जिम्मेदारी से निर्णय लेकर कोई कार्य होता है तो वो एक अलग बात है पर ख़ुद शॉर्ट कट अपनाने में शोषित पीड़ित बन कर बाद में अपने को बेचारी दिखाना कहां की परिपक्वता है?

Discus