'बस करो' ! तेज तर्रार आवाज़ और वह ज़मीं पर। आंखों में भय! क्या यही वह अन्त है, जिसे पाने के लिए हर कोई विद्रोही बन रहा है। "आंजन्य" का रोम रोम कांप रहा था , वह गर्म ज़मीं अब ठंडी पड़ चुकी थी। मद्धम धुंध जो 'ऐरो मॉडल' से निकल रही थी अब बंद हो चुकी थी। धीरे धीरे आंजन्य की नजर अपने कमरे की दीवार पर लटकी एक चलचित्र पर लिखे वाक्य पर गई "अन्त या शुरूआत"। अब जाकर चिंता मुक्ति हुई!
"अब और कब तक यह रोज का , तमाशा"। काश! " मैं भविष्य में पैदा हुआ होता एक इशारा और सारे काम खत्म"!...एक ऐरो मॉडल बनाते हुए, अपने आप से ही बडबडा रहा था। "दिलचस्पी तो बहुत है वैज्ञानिक परियोजनाओं में लेकिन ये फॉर्मूला मेरा काम क्यों नही कर रहा।"........'हे ईश्वर'!!!!....एक विस्फोट हुआ।
जब हम उनमें होते हैं तो सपने वास्तविक लगते हैं। जब हम जागते हैं तभी हमें एहसास होता है कि वास्तव में कुछ अजीब था ।.......
'पांव के नीचे की ज़मीं खिसक गई'...क्योंकि वह वाकई ज़मीं पर नहीं था। आंखों में तेज़ धूप लगी जो फागुन की नशीली तो नही थी। आंजन्य ने खुद को एक टॉवर के झुकते सिरे पर खड़ा पाया जहां से शायद आसमान का क्षितिज उसे यही दिखाना चाहता था। आह!! एक कंपन उसके शरीर में हुआ। "स्विश एण्ड व्हर्ल", एक गोलाकार शीशे में, बंद कुर्सी उसके सामने आई और वह सीधा उसके अंदर जा बैठा।
शीशे पर काली - पीली परत खुद चढ़ गई क्योंकि आगे जो होने वाला था वह....! आंजन्य की आँखें फटी की फटी रह गईं। वह तो अपने विमान की कुर्सी... में हवा में तो था , पर मानो जैसे आस पास की सारी दुनिया भी हवा में ही थी जैसे 'डंडी से अलग उड़ता बूढ़ी का बाल' जिसका आयाम है परन्तु अस्तित्व नहीं!....
दृश्य बहुत भयानक.....
सूर्य एक तपाए हुए सुवर्ण से सीधा खौलता अंगारा बन गया था। उसका ताप तो शीशे से छुप गया परंतु विक्राल रूप आंखों में समा गया था। मीलों तक इंसान या इंसानियत का कोई सुराख नही दिखा। आंजन्य के मन में बहुत सी शंकाएं जन्म ले चुकी थी। 'क्या वह भविष्य में है..?'....'क्या दुनिया खत्म हो गई..?' 'क्या यह वही अन्त है या शुरूआत....!'.....एक बार जब कोई विचार मस्तिष्क पर हावी हो जाता है, तो उसे ख़त्म करना लगभग असंभव होता है। नीचे की ओर ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है क्या???...
हवाई उड़ान थोड़ी कम सतह पर आई ,.... "हे"!! खून सूख गया। वह लहराते वृक्ष, वह झरता झरना , वह इधर उधर घूमते जानवर सब मनुष्य की आकांक्षाओं की आग में झुलस गए। धरती 'द ब्लू प्लैनेट' हर एक विनाश के रंग से ढक गई।
काला- वह तम अग्नि की राख से।
इतना पारदर्शी दहशतिए मंजर... , मीलों-मीलों तक नीचे , जहां भी नजर जा रही थी सिर्फ खंडर। वह ऊंची इमारतें, वह ऊंची चिमनियों ने गला घोंट दिया और पृथ्वी के 'फेफड़ों' तक हवा ही नहीं पहुंचने दी। महासागरों का पानी द्वीपों को खा चुका था!!..... अंजन्य का आधा घंटा आधे सहस्राब्दी की तरह गुजरा !!!
टर्र टर्र टर्र!! ... टकराव में 'एक मिनट' बाकी है। टर्र टर्र!! टकराव में , 'पचास सेकंड' बाकी है ..... आंजन्य घबराया इधर उधर कुछ समझ नहीं आया, टकराव में 'तीस सेकंड'..... अचानक सामने गोल घुमावदार कम से कम सौ मीटर लंबे चौड़े खंबे पर पड़ी... 'बीस सेकंड'..... 'दस सेकेंड'...., आंजन्य ने मस्तिष्क में सोचा फिर एक कंपन....हवाई कुर्सी का तेज़ घुमाव और वह सीधा सफेद फर्श पर। कुछ देर बाद , पांव ठोस हुए तो अपने चेहरे से सारे विषम भाव मिटते हुए पाया।
उसे क्या मालूम था, कि यह सिर्फ कुछ पलों की हवा थी जो आंधड़ में तब्दील होने में ज्यादा वक्त नहीं लेगी। सफेद फर्श, सफेद दीवारें मानो चीख चीख कर रंग भेदने के लिए कह रही हों...
जिस तरह झील के दो सिरे नही मिलते उसी प्रकार उस दुनिया को देख कर आंजन्य अपनी बुद्धी को भी नही मिला पा रहा था। जिस प्रकार का प्रौद्योगिकीकरण उसने देखा मानो जैसे "आकाश गंगा" भेद दी है। खंबे से जुड़ी एक दूसरी दुनिया थी!.... "मुकद्दर की रेखा फांद....हवा पर बसी इंसानों की बस्ती"। मनुष्य के मस्तिष्क की गर्जना...का अद्भुत नजारा था!!!...
क्षितिज पर चल रही सूर्य की किरणों पर नाच रही थी इंसानों की "कॉन्शियसनेस(चेतना )और थिंकिंग (चिन्तन)"। चलने वालों में आंजन्य अकेला था उसकी मनोदशा ठीक वैसी ही थी जैसे 'टाइप' 4 सिविलाइजेशन के बीच 'टाइप' 0 सिविलाइजेशन का एक छोटा जीव। वह दुनिया मीलों तक आसमान में "वलय" की तरह बसा था। फॉसिल ईंधन की हीट डेथ करने के बाद "ब्रह्मांडीय अभियांत्रिकी" का अनूठा खेल चल रहा था।.......सुखी बेजान 'धरती' नीचे रो रही है और ऊपर आंजन्य की सरल भाषा में कहे तो "वर्ण-संकर डायसन स्फेयर" अपना ही "इकोसिस्टम" बनाए हस रहा था। हाईड्रोजन और कॉर्बन डाइऑक्साइड का पेड़ जिसमे संचरण और स्टीमुलेशन के द्वारा खुद , "ग्रोथ और ऑक्सीजन" का विस्तार हो रहा था। यह एक उदहारण मात्र था "बुद्धि निपुणता" का जिसमे पानी के झरने से लेकर ग्लेशियल टेक्नोलॉजी तक सब बना हुआ था।
आंजन्य को पहले चरण की चीज़ें काफी लुभावनी लगीं लेकिन मन में एक भावनाओं का गुंबत फूटा और आगे बढ़ने की चाह में "दूसरे चरण" में जा पहुंचा! वह चरण ने उसकी असल जिंदगी शीशे पर उतार दी..., वह साइंटिफिक फिल्में देखता था तो उसी की भाषा में उसने उस चरण को "रेशेपिंग दी स्ट्रक्चर ऑफ़ स्पेस एंड टाइम" का नाम दे दिया.....। जो बना था गोलाकार वलय के अगले भाग "जीवन शैली" में । "माप और समानता" में सटीक एक जैसे लम्बाई और चौड़ाई...। पहली बार लोगों को देख कर उसके दिल को ठंडक पहुंची। वह उनसे बात करने को आगे बड़ा लेकिन उसका एनकाउंटर कुछ अच्छा नहीं हुआ। उन लोगों के पास खुद के प्रोपल्जन परिवहन मशीनें थी जो उनके मस्तिष्क से जुड़ी थी यानी वही मशीन जो आंजन्य को यह तक लेकर आई। मतलब "...वह मशीन से वार्प ड्राइव कर रहे थे..... ओह माय गुडनेस...!!" , आंजन्य जोर से बोला....मानो उसके लिए ये फॉर्मूला जान न बहुत जरूरी था।....जैसे वार्प ड्राइव स्पेस में तेज़ी से घूमने को संभव करता है, वैसे ही मेरे कॉलेज के प्रतियोगिता मुझे हर दिशा में घुसा देते हैं!"... "अब इससे मैं वो सब हासिल कर लूंगा जो मैं चाहता हूं ".....सिर्फ यही नहीं हर एक मैकेनिज्म इतना परिपक्व था...। वह अपनी पूरी क्षमता से निर्बाध संचार और संसाधन साझा कर रहे थे। ......"अपने चरम पर राजनीतिक शुचिता के साथ मानवता का उत्सव मुझे आश्चर्यचकित करता है"....पर इसी के साथ लोगों के चेहरे पर जो अलगाव के निशान, भी झलक रहे थे...। उसे पता चला "अनौपचारिक गतिविधियाँ अक्सर उदासीनता ही लाएंगी।"...
बम धमाका!!! आह भरी!!! वह अब तक एक घुसपैठ के रूप में जाना जा चुका था। पहले चरण में भी उसकी हरकतें मापी जा रही थी। उसकी बेसिक ह्यूमन इंस्टिंक्ट चालू हो गई और अब उसका एक ही मकसद था कही से भी उस फॉर्मूला का पता लगाना जो वह अपने घर जाकर अपने प्रोपल्जन मॉडल में लगायेगा और प्रतियोगिता जीतेगा। आह !! एक "इंफिल्टरेटिंग ननोबोट चैट हथियार".... से हमला हुआ। अपना बचाव करते हुए वह हथियार उसकी बाह पर लग गया जिस पर लिखा था... "क्वांटम विघटन"..... अंजन्य ने सही वक्त पर 'मानस कंपन' करी और वह उस हथियार से कोलैप्स होते होते बचा। उसका पढ़ा हुआ विज्ञान उसके काम आया। वह सीधा तीसरे चरण में जा पहुंचा...!
हे भगवान !! यही उचित समय था इन्हे याद करने का आंजन्य ने "हा हा हा ".... कटाक्ष भरी हसीं ली ......लेकिन सबसे भयंकर चरण में आकर वह गायब हो गई!! क्योंकि यह चरण एक "स्फेरिकल शेल" के अंदर बसा "छोटे ऑर्बिटिंग सेल्स" का मायावी जाल था!!.....
अलग-अलग "मंडल" और उनमें चल रहा था "कॉस्मिक एनर्जी हार्नेसिंग" का काम। छिप छिपाकर वह पहुंचा "मंडल XE" में जिसमे एक "वार्प होल" खुला हुआ था,.......लेबोरेटरी रिसर्च चल रही थी!....जेनेटिक मैनिपुलेशन का नजारा इतना कठोर था की दिल कांप उठा........इन लोगों ने अपने आपको एक विक्राल साम्राज्य में ढाल लिया था जो हर एक चीज तबाह करने में जुटा था।...
"मंडल TY" में इनफॉर्मेशन युद्ध चल रहा था , डाइमेंशनल हथियार की भरमार थी। आंजन्य का दिमाग घूम गया.....पहले के दो चरण अब उसे तथ्यात्मक नजर आने लगे। अब तक उसके पीछे "रियलिटी ऑल्टर्ड सेना" पड़ चुकी थी जो एक "नेनोटेक फंडामेंटल फोर्स" से कम नहीं थी।...... अस्तित्व तो मिट गया लेकिन आयाम सामने था वही "खंबा" जिसमे से वह बाहर आया था जिसपर यह सब टिका था.....वह सामने था!! विद्युतीकरण के ज़रिए आंजन्य उसके अंदर जा पहुंचा और उसका शरीर दहल उठा!! वहां मौजूद थे उसके जैसे लोग जो स्टीमुलेशन से बाहर निकल गए थे...... राज़ जान गए थे अकल्पनीय विनाश का.....!!
पृथ्वी से जुड़ा था वह खंबा जो अभी भी उसके ही रिसोर्सेज पर अपनी इस "धोखेबाज नगरी" का संचालन कर रहा था। "ग्लेशियर से लेकर ननोबोत हथियार" तक सब एक झूठ का परचम था।...
आंजन्य जो बर्बादी चोरी मक्कारी में विश्वास रखता था अब उसे समझ आया की सुनहरा भविष्य,...चमक धमक से नही बल्कि विनम्रता और स्थिरता से आयेगा।....
अचानक "तेज हवाएं" और "बायो तूफानी हथियार" ने अंजन्य के विमान को तहस नहस कर दिया और वह चिल्लाया बस करो!!!! और वह जमीन पर , आंखों में भय लेकिन , अब उसके अंदर कुछ कर दिखाने की चाह थी, अपनी धरती के लिए काम करने की ओर उसका ऋण चुकाने की।.....हम भविष्य की कल्पनाएँ करते रहना चाहिए लेकिन अगर हमारी कल्पनाएँ हमें भयभीत कर देती हैं तो वही थमना एक सही विकल्प है।